ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Monday, January 23, 2012
बहुत यकीन है ...
मुझे बहुत यकीन है ....तुमपे
और अपने प्यार पे भी .
पर.....
पता नहीं क्यूँ
फिर भी.... जब कभी
यह ख्याल भी मन में आ जाता है
कि,
तुम किसी और के साथ हो
तुम किसी और के पास हो
तो........
कुछ दरक सा जाता है दिल
कसमसा के रह जाता है .
यूँ तो यही सुना है
कि,
प्रेम....
मुक्त करने का नाम है
बाँधना प्रेम नहीं
पर,तब भी ....
क्यूँ ,आखिर क्यूँ????
पढ़ा लिखा ,जाना समझा
सब धरा रह जाता है .
क्यूँ खुद को मैं समझा नहीं पाती हूँ
क्यूँ दिल के आगे हार हार जाती हूँ
बार-बार मन अटक जाता है
तुझे खोने का डर इतना बड़ा है
कि
उसके आगे सब छोटा पड़ जाता है .
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आपकी प्रस्तुति अच्छा प्रश्न उपस्थित करती है.
ReplyDeleteयकीन की कमी आत्मविश्वास की ही कमी लगती है.
आसक्ति और आश्रयहीन होना डर और अनिश्चिंतता
उत्पन्न करता है.
मेरे ब्लॉग पर आईये,
शायद कुछ समाधान मिले.
स्त्री चाहे कितना भी पढ-लिख जाए कुछ बातें हैं ही स्त्रीमना उनसे निज़ात पाना संभव नहीं उन्हीं में से एक है यह संशय,यह आशंका जो निराधार है पर दिल से जात्ती नहीं।
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।
यहाँ स्त्री की बात नहीं है...कोई भी इंसान जो प्रेम में है ...वो स्त्री हो या पुरुष ..दोनों की स्थिति कमोबेश एक सी होती है ....मन सब जानते हुए भी यकीन करते हुए भी ...कभी कभार ...अनमना सा हो जाता है.
Deleteजब कभी
ReplyDeleteयह ख्याल भी मन में आ जाता है
कि,
तुम किसी और के साथ हो
तुम किसी और के पास हो
तो........
कुछ दरक सा जाता है दिल
कसमसा के रह जाता है ... जाने प्यार में ऐसा क्यूँ लगता है !
प्यार में ऐसा ही होता है ....पर न जाने क्यूँ होता है .ऐसा .
Deleteअगर प्यार सच्चा है तो,..
ReplyDeleteयकीनन शक की गुंजाइश नही रहती,....
बहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
new post...वाह रे मंहगाई...
शुक्रिया!!शक की गुंजाइश तो प्यार में नहीं रहती यह तय है... पर ,तब भी न जाने क्यूँ आशंका हो ही जाती है .
Deleteराकेश जी....आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी .यह यकीन,आत्मविश्वास की कमी नहीं है..प्यार पे पूरा यकीन है तब भी मन कई बार ...बहक जाता है .
ReplyDeleteप्यार में प्रश्न चिह्न?
ReplyDeleteक्या मीरा के कृष्ण के प्रति प्रेम में यह प्रश्न चिह्न था?
क्या चैतन्य के प्रेम में यह प्रश्न था?
क्या राधा के प्रेम में यह था?
नहीं!!!
प्रेम जब भी होता है पूरा ही होता है.
लेकिन हां,सांसारिक प्रेम में यह हरदम खड़ा रहता है.
क्योंकि वहां प्रेमी समक्ष होता है
बिल्कुल आप की तरह
मेरी तरह
और हमारी आसक्ति उसके प्रति
इस कदर होती है ...
हमारे मेरेपन का भाव इतना गहन होता है
कि हम उसमें किसी अन्य का प्रवेश नहीं होने देना चाहते
हमारे प्रेम में परिधी पहले बनती है
और
प्रेम बाद में आता है...
हम प्रेम में इतने डरे होते हैं
कि वहां दूसरे का प्रवेश वर्जित क्षेत्र होता है...
शायद यह हमारे संस्कार हैं
कि प्रेम किसी एक से ही होता है...
या फिर हमारा यह भय कि प्रेम बंटने पर प्रेम नहीं रहता...
वह वासना या आरोपित घृणा का विषय बन जाता है
.
.
.
निश्चित ही प्रेम बांधता नहीं
मुक्त करता है...
पर उसमें असीम का तत्त्व अपेक्षित होता है
जो अपने प्रेम की खुशी के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देता है
वह प्रेम की सभी परिधियों से दूर निकल जाता है
उसका प्रेम ससीम नहीं असीम होकर
आनंदित होता है...
स्व में सर्व की प्राप्ति का नाम है प्यार
.
.
.
आभार इस सुंदर भाव प्रस्तुति के लिए...
मनोज जी...आभार तो मुझे आपका व्यक्त करना चाहिए कि आपने अपने अमूल्य समय में से इतना वक्त निकाल के इतनी सुन्दर टिप्पणी करी.
Deleteमीरा ,राधा,चैतन्य ....इनका प्रेम आदर्श प्रेम है.यह हमसे अलग या हमारे आदर्श इसीलिए हैं कि सामान्य जन के लिए इस प्रकार प्रेम कर पाना कठिन है.
प्रेम स्वयं में पूर्ण है..इसमें कोई दो राय नहीं है.प्रेम बंटने का भी डर न हो...दूसरे के प्रवेश की चिंता न भी हो तब भी कभी कभी मन का आशंकित होना रोक नहीं पाते.
अपना आप त्याग कर देना...अहम को भूल जाना ...यही प्यार है.मैं बिलकुल सहमत हूँ,आपसे .अक्सर,यह जानते बूझते हुए भी कि कितना भी कोई दूर हो किसी एक भी साथ हो...वो हमारा ही है ...तब भी मन को समझाना मुश्किल हो जाता है
Manojji ne jo kaha....sach magar atyant kathor hai! Kaise kar sakte hai ham aisa....prem to bandhan hai....mukt karna behad mushkil, shayad nammukin!
Deleteलगता है मेरी टिप्पणी स्पैम में चली गई है...कृपया उसे स्पैम से मुक्त करें...
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी को स्पैम के चंगुल से मुक्त कर दिया है.
Deleteशायद ऐसा इसलिए होता है कि जिसे हम बहुत प्यार करते हैं उसे खोने का डर बना रहता है ,लेकिन सच्चे प्यार में शक की नौबत आनी तो नहीं चाहिए ...
ReplyDeleteहम्म्म्म.......यहाँ प्यार पे शक की कोई बात नहीं है...बस,मन की आशंका को कहने की कोशिश है जो न चाहते हुए भी कभी कभी आ ही जाती है .
Deleteस्वाभाविक है...
ReplyDeleteप्रेम में असुरक्षा होती ही है...
वो चाहे किसी के भी बीच हो...माँ के प्रेम में कोई कमी नहीं होती मगर फिर भी पुत्र के विवाह पश्चात उसको भय लगता ही है कि उसका प्रेम बंट जाएगा...
सुन्दर रचना..
यह प्रेम ही है जो असुरक्षा की भावना को जन्म दे देता है.क्या किया जाए...इससे कोई छुटकारा भी नहीं है.
Deletesach men ye dar ye ehsasa bade ajeeb hote hain....
ReplyDeleteजो करीब होते है उनके लिए ही ऐसे एहसास होते है..जो अजीब होते हैं
Deleteन जाने क्यों होता है ऐसा ..पर होता तो है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteधन्यवाद....होता तो है...कारण भी ढूंढें नहीं मिलता .
Deleteबहुत संदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट " डॉ.ध्रमवीर भारती" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
ReplyDeleteजी..शुक्रिया.जल्द ही आपकी पोस्ट देखूंगी .
Deleteजब कभी
ReplyDeleteयह ख्याल भी मन में आ जाता है
कि,
तुम किसी और के साथ हो
तुम किसी और के पास हो
तो........
कुछ दरक सा जाता है दिल
कसमसा के रह जाता है ... ऐसा ही होता है प्यार......
हाँ...ऐसा ही होता है ,प्यार.
Deleteनिधि जी यही तो प्रेम होता है जहाँ वो सिर्फ़ मेरा होता है …………प्रेम बाँटा ही नही जा सकता तभी तो गोपियाँ कहती हैं …………पलकें बंद कर लेंगी और मोहन को उसमे छुपा लेंगी ताकि कोईदेख ना सके और वो भी किसी और को न देख सके…………वो तो सिर्फ़ मेरा है ये ही तो प्रेम का अद्भुत स्वरूप होता है ………बस वहीं एक छोटा सा डर काबिज़ हो जाता है।
ReplyDeleteमैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ...
Deleteकिसी रिश्ते को खो देने का डर ...बखूबी लिख दिया ...बहुत खूब
ReplyDeleteशुक्रिया!!
Deleteवाह ...बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ReplyDeleteधन्यवाद!!
Deleteतुझे खोने का डर इतना बड़ा है
ReplyDeleteकि
उसके आगे सब छोटा पड़ जाता है . bahut khoob ....
थैंक्स!!
Deleteपता नहीं क्यूँ
ReplyDeleteफिर भी.... जब कभी
यह ख्याल भी मन में आ जाता है
कि,
तुम किसी और के साथ हो
तुम किसी और के पास हो
तो........
कुछ दरक सा जाता है दिल
कसमसा के रह जाता है .
वाह वाह!! क्या बात है ,कितनी गहराई है इन शब्दों में ! धन्यवाद
आपकी कि आप ब्लॉग जगत में हैं.
SCORLEO....बहुत -बहुत शुक्रिया इज्ज़त अफजाई का.
Deleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteआपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!
Deleteबहुत सुन्दर और गहरे भावों को आपने बहुत ही सहजता के साथ शब्दों में पिरोया है---हार्दिक शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार ,पसंद करने के लिए.
Deleteप्रेम का एक लक्षण है ....हम सुध बुध खो देते हैं ...सही गलत का भान नहीं रहता ....ऐसे में ..जिसे ह्रदय में सर्वोच्च स्थान दिया उसके प्रति भी अविश्वास देश-काल में भिन्नता के कारण ...हो सकता है ...देश-काल में भिन्नता के कारण ये क्षणिक अविश्वास तो गोपियों के मन में भी कृष्ण के प्रति हुआ था ...उधौ से जो संदेसे भेजे गए उनमे कितने सवाल भेजे गए ...कितनी आशंकाएं भेजी गयीं ........मेरे हिसाब से प्रेम एक बहुत कठिन योग है .. ..एक ऐसी समाधि-अवस्था है जिसको जीवन भर साधना होता है .....शक के सवाल ,या अविश्वास के प्रश्न जैसी गलती की गुंजाईश प्रेम में नहीं होती
ReplyDeleteतूलिका...अविश्वास की स्थिति प्रेम में क्षणिक होती है क्यूंकि कुछ पलों के बाद् व्यक्ति स्वयं ही उसे नकार देता है....पर,यह अंदेशा ...खटका मन में कभी-कभार आ ही जाता है ....खास तौर पे जैसे तुमने कहा देश-काल की भिन्नता हो तो .
Deleteप्रेम से बड़ी साधना कोई नहीं...उसे साध लिया जिसने ...कुछ और साधने को शेष नहीं रहता ..उसके पास .
... It is one of your best .. Nidhi ….
ReplyDeleteपाया हो ये यकीन भी नहीं है
खोने का जिसके डर रहा हरदम
अमित....शुक्रिया!! यह खोने का डर पीछा ही नहीं छोडता क्या किया जाए ?
Deleteबहुत बढ़िया एकदम खरी बात कही है आपने,,
ReplyDeleteप्यार में खोने के डर के आगे.
पाने की ख़ुशी बहुत कम सी हो जाती है..
खोने का डर अधिक सताता है..
यही प्यार है,,,
कुछ किया नहीं जा सकता इस डर का....
Delete