Monday, January 23, 2012

बहुत यकीन है ...


मुझे बहुत यकीन है ....तुमपे
और अपने प्यार पे भी .
पर.....
पता नहीं क्यूँ
फिर भी.... जब कभी
यह ख्याल भी मन में आ जाता है
कि,
तुम किसी और के साथ हो
तुम किसी और के पास हो
तो........
कुछ दरक सा जाता है दिल
कसमसा के रह जाता है .

यूँ तो यही सुना है
कि,
प्रेम....
मुक्त करने का नाम है
बाँधना प्रेम नहीं
पर,तब भी ....
क्यूँ ,आखिर क्यूँ????
पढ़ा लिखा ,जाना समझा
सब धरा रह जाता है .
क्यूँ खुद को मैं समझा नहीं पाती हूँ
क्यूँ दिल के आगे हार हार जाती हूँ
बार-बार मन अटक जाता है
तुझे खोने का डर इतना बड़ा है
कि
उसके आगे सब छोटा पड़ जाता है .

45 comments:

  1. आपकी प्रस्तुति अच्छा प्रश्न उपस्थित करती है.
    यकीन की कमी आत्मविश्वास की ही कमी लगती है.
    आसक्ति और आश्रयहीन होना डर और अनिश्चिंतता
    उत्पन्न करता है.

    मेरे ब्लॉग पर आईये,
    शायद कुछ समाधान मिले.

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  2. स्त्री चाहे कितना भी पढ-लिख जाए कुछ बातें हैं ही स्त्रीमना उनसे निज़ात पाना संभव नहीं उन्हीं में से एक है यह संशय,यह आशंका जो निराधार है पर दिल से जात्ती नहीं।

    सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति।

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    1. यहाँ स्त्री की बात नहीं है...कोई भी इंसान जो प्रेम में है ...वो स्त्री हो या पुरुष ..दोनों की स्थिति कमोबेश एक सी होती है ....मन सब जानते हुए भी यकीन करते हुए भी ...कभी कभार ...अनमना सा हो जाता है.

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  3. जब कभी
    यह ख्याल भी मन में आ जाता है
    कि,
    तुम किसी और के साथ हो
    तुम किसी और के पास हो
    तो........
    कुछ दरक सा जाता है दिल
    कसमसा के रह जाता है ... जाने प्यार में ऐसा क्यूँ लगता है !

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    1. प्यार में ऐसा ही होता है ....पर न जाने क्यूँ होता है .ऐसा .

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  4. अगर प्यार सच्चा है तो,..
    यकीनन शक की गुंजाइश नही रहती,....
    बहुत सार्थक अभिव्यक्ति सुंदर रचना,बेहतरीन पोस्ट....
    new post...वाह रे मंहगाई...

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    1. शुक्रिया!!शक की गुंजाइश तो प्यार में नहीं रहती यह तय है... पर ,तब भी न जाने क्यूँ आशंका हो ही जाती है .

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  5. राकेश जी....आपके ब्लॉग पर अवश्य आउंगी .यह यकीन,आत्मविश्वास की कमी नहीं है..प्यार पे पूरा यकीन है तब भी मन कई बार ...बहक जाता है .

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  6. प्यार में प्रश्न चिह्न?

    क्या मीरा के कृष्ण के प्रति प्रेम में यह प्रश्न चिह्न था?
    क्या चैतन्य के प्रेम में यह प्रश्न था?
    क्या राधा के प्रेम में यह था?

    नहीं!!!

    प्रेम जब भी होता है पूरा ही होता है.
    लेकिन हां,सांसारिक प्रेम में यह हरदम खड़ा रहता है.
    क्योंकि वहां प्रेमी समक्ष होता है
    बिल्कुल आप की तरह
    मेरी तरह
    और हमारी आसक्ति उसके प्रति
    इस कदर होती है ...
    हमारे मेरेपन का भाव इतना गहन होता है
    कि हम उसमें किसी अन्य का प्रवेश नहीं होने देना चाहते
    हमारे प्रेम में परिधी पहले बनती है
    और
    प्रेम बाद में आता है...
    हम प्रेम में इतने डरे होते हैं
    कि वहां दूसरे का प्रवेश वर्जित क्षेत्र होता है...
    शायद यह हमारे संस्कार हैं
    कि प्रेम किसी एक से ही होता है...
    या फिर हमारा यह भय कि प्रेम बंटने पर प्रेम नहीं रहता...
    वह वासना या आरोपित घृणा का विषय बन जाता है
    .
    .
    .
    निश्चित ही प्रेम बांधता नहीं
    मुक्त करता है...
    पर उसमें असीम का तत्त्व अपेक्षित होता है
    जो अपने प्रेम की खुशी के लिए अपना सर्वस्व निछावर कर देता है
    वह प्रेम की सभी परिधियों से दूर निकल जाता है
    उसका प्रेम ससीम नहीं असीम होकर
    आनंदित होता है...
    स्व में सर्व की प्राप्ति का नाम है प्यार
    .
    .
    .
    आभार इस सुंदर भाव प्रस्तुति के लिए...

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    1. मनोज जी...आभार तो मुझे आपका व्यक्त करना चाहिए कि आपने अपने अमूल्य समय में से इतना वक्त निकाल के इतनी सुन्दर टिप्पणी करी.
      मीरा ,राधा,चैतन्य ....इनका प्रेम आदर्श प्रेम है.यह हमसे अलग या हमारे आदर्श इसीलिए हैं कि सामान्य जन के लिए इस प्रकार प्रेम कर पाना कठिन है.
      प्रेम स्वयं में पूर्ण है..इसमें कोई दो राय नहीं है.प्रेम बंटने का भी डर न हो...दूसरे के प्रवेश की चिंता न भी हो तब भी कभी कभी मन का आशंकित होना रोक नहीं पाते.
      अपना आप त्याग कर देना...अहम को भूल जाना ...यही प्यार है.मैं बिलकुल सहमत हूँ,आपसे .अक्सर,यह जानते बूझते हुए भी कि कितना भी कोई दूर हो किसी एक भी साथ हो...वो हमारा ही है ...तब भी मन को समझाना मुश्किल हो जाता है

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    2. Manojji ne jo kaha....sach magar atyant kathor hai! Kaise kar sakte hai ham aisa....prem to bandhan hai....mukt karna behad mushkil, shayad nammukin!

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  7. लगता है मेरी टिप्पणी स्पैम में चली गई है...कृपया उसे स्पैम से मुक्त करें...

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    1. आपकी टिप्पणी को स्पैम के चंगुल से मुक्त कर दिया है.

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  8. शायद ऐसा इसलिए होता है कि जिसे हम बहुत प्यार करते हैं उसे खोने का डर बना रहता है ,लेकिन सच्चे प्यार में शक की नौबत आनी तो नहीं चाहिए ...

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    1. हम्म्म्म.......यहाँ प्यार पे शक की कोई बात नहीं है...बस,मन की आशंका को कहने की कोशिश है जो न चाहते हुए भी कभी कभी आ ही जाती है .

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  9. स्वाभाविक है...
    प्रेम में असुरक्षा होती ही है...
    वो चाहे किसी के भी बीच हो...माँ के प्रेम में कोई कमी नहीं होती मगर फिर भी पुत्र के विवाह पश्चात उसको भय लगता ही है कि उसका प्रेम बंट जाएगा...
    सुन्दर रचना..

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    1. यह प्रेम ही है जो असुरक्षा की भावना को जन्म दे देता है.क्या किया जाए...इससे कोई छुटकारा भी नहीं है.

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  10. sach men ye dar ye ehsasa bade ajeeb hote hain....

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    1. जो करीब होते है उनके लिए ही ऐसे एहसास होते है..जो अजीब होते हैं

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  11. न जाने क्यों होता है ऐसा ..पर होता तो है ..अच्छी प्रस्तुति

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    1. धन्यवाद....होता तो है...कारण भी ढूंढें नहीं मिलता .

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  12. बहुत संदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट " डॉ.ध्रमवीर भारती" पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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    1. जी..शुक्रिया.जल्द ही आपकी पोस्ट देखूंगी .

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  13. जब कभी
    यह ख्याल भी मन में आ जाता है
    कि,
    तुम किसी और के साथ हो
    तुम किसी और के पास हो
    तो........
    कुछ दरक सा जाता है दिल
    कसमसा के रह जाता है ... ऐसा ही होता है प्यार......

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    1. हाँ...ऐसा ही होता है ,प्यार.

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  14. निधि जी यही तो प्रेम होता है जहाँ वो सिर्फ़ मेरा होता है …………प्रेम बाँटा ही नही जा सकता तभी तो गोपियाँ कहती हैं …………पलकें बंद कर लेंगी और मोहन को उसमे छुपा लेंगी ताकि कोईदेख ना सके और वो भी किसी और को न देख सके…………वो तो सिर्फ़ मेरा है ये ही तो प्रेम का अद्भुत स्वरूप होता है ………बस वहीं एक छोटा सा डर काबिज़ हो जाता है।

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    1. मैं आपसे बिलकुल सहमत हूँ...

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  15. किसी रिश्ते को खो देने का डर ...बखूबी लिख दिया ...बहुत खूब

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  16. वाह ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

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  17. तुझे खोने का डर इतना बड़ा है
    कि
    उसके आगे सब छोटा पड़ जाता है . bahut khoob ....

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  18. पता नहीं क्यूँ
    फिर भी.... जब कभी
    यह ख्याल भी मन में आ जाता है
    कि,
    तुम किसी और के साथ हो
    तुम किसी और के पास हो
    तो........
    कुछ दरक सा जाता है दिल
    कसमसा के रह जाता है .

    वाह वाह!! क्या बात है ,कितनी गहराई है इन शब्दों में ! धन्यवाद
    आपकी कि आप ब्लॉग जगत में हैं.

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    1. SCORLEO....बहुत -बहुत शुक्रिया इज्ज़त अफजाई का.

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  19. गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.

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    1. आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!!

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  20. बहुत सुन्दर और गहरे भावों को आपने बहुत ही सहजता के साथ शब्दों में पिरोया है---हार्दिक शुभकामनायें।

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    1. बहुत-बहुत आभार ,पसंद करने के लिए.

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  21. प्रेम का एक लक्षण है ....हम सुध बुध खो देते हैं ...सही गलत का भान नहीं रहता ....ऐसे में ..जिसे ह्रदय में सर्वोच्च स्थान दिया उसके प्रति भी अविश्वास देश-काल में भिन्नता के कारण ...हो सकता है ...देश-काल में भिन्नता के कारण ये क्षणिक अविश्वास तो गोपियों के मन में भी कृष्ण के प्रति हुआ था ...उधौ से जो संदेसे भेजे गए उनमे कितने सवाल भेजे गए ...कितनी आशंकाएं भेजी गयीं ........मेरे हिसाब से प्रेम एक बहुत कठिन योग है .. ..एक ऐसी समाधि-अवस्था है जिसको जीवन भर साधना होता है .....शक के सवाल ,या अविश्वास के प्रश्न जैसी गलती की गुंजाईश प्रेम में नहीं होती

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    1. तूलिका...अविश्वास की स्थिति प्रेम में क्षणिक होती है क्यूंकि कुछ पलों के बाद् व्यक्ति स्वयं ही उसे नकार देता है....पर,यह अंदेशा ...खटका मन में कभी-कभार आ ही जाता है ....खास तौर पे जैसे तुमने कहा देश-काल की भिन्नता हो तो .
      प्रेम से बड़ी साधना कोई नहीं...उसे साध लिया जिसने ...कुछ और साधने को शेष नहीं रहता ..उसके पास .

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  22. ... It is one of your best .. Nidhi ….

    पाया हो ये यकीन भी नहीं है
    खोने का जिसके डर रहा हरदम

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    1. अमित....शुक्रिया!! यह खोने का डर पीछा ही नहीं छोडता क्या किया जाए ?

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  23. बहुत बढ़िया एकदम खरी बात कही है आपने,,
    प्यार में खोने के डर के आगे.
    पाने की ख़ुशी बहुत कम सी हो जाती है..
    खोने का डर अधिक सताता है..
    यही प्यार है,,,

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    1. कुछ किया नहीं जा सकता इस डर का....

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सुराग.....

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