ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Wednesday, January 25, 2012
उन्मुक्त उडो.....
बहुत दिन सहेजने के बाद
आज छोड़ दिया है ,तुम्हें.
अब.......
नया आसमान है
नया एक जहां है
तैयारी करो ..
अपनी नयी उड़ान की
बाध्यता न हो,
पुरानी पहचान की .
उन्मुक्त उडो ,जी भर के जियो
पिछला सब भूल के आगे बढ़ो .
हाँ,बस इतना याद रखना
कि
जब थकने लगो
या हारने लगो ....कभी .
तो हाथ बढ़ाना
मेरा हाथ होगा थामने के लिए तुम्हें..
आस-पास ही कहीं .
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अपनों की उन्मुक्त उड़ान के लिए शुभकामनायें
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया !!
Deleteउन्मुक्त उडो ,जी भर के जियो
ReplyDeleteपिछला सब भूल के आगे बढ़ो .
हाँ,बस इतना याद रखना
कि
जब थकने लगो
या हारने लगो ....कभी .
तो हाथ बढ़ाना
मेरा हाथ होगा थामने के लिए तुम्हें..
आस-पास ही कहीं ...
यही यकीन तुम्हारे पंखों की उर्जा बनेगी
रश्मि जी आपकी इस एक पंक्ति ने जैसे मेरी इस कविता के अधूरेपन को पूरा कर दिया ...आभार
Deleteउड़ने का हौसला और थामने का आश्वासन बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteथैंक्स!!
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteजब कोई थामने वाला हो और हौसला बढाने वाला तो फिर तो उडान उन्मुक्त ही होगी।
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद!!
Deleteसकारात्मक सोच के साथ लिखी गई प्रभावी रचना ...
ReplyDeleteशुक्रिया!!
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteencouraging poem..
आभार!!
Deleteसकरात्मक अभिवयक्ति................
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद !!
Deleteजब थकने लगो
ReplyDeleteया हारने लगो ....कभी .
तो हाथ बढ़ाना
मेरा हाथ होगा थामने के लिए तुम्हें..
आस-पास ही कहीं .
वाह..वाह ...इस बेजोड़ रचना के लिए बधाई..
नीरज
पसंद करने के लिए ...थैंक्स !!
Deleteउन्मुक्त उडो ,जी भर के जियो
ReplyDeleteपिछला सब भूल के आगे बढ़ो .
हाँ,बस इतना याद रखना
कि
जब थकने लगो
या हारने लगो ....कभी .
तो हाथ बढ़ाना
मेरा हाथ होगा थामने के लिए तुम्हें
आस-पास ही कहीं ...
इस उड़ान की थकान से उबारने के लिए
और नए गंतव्यों पर उड़ान के लिए
तब तक
जब तक कि
तुम घर न लौट आओ
इस अनुभव के साथ कि
बाहर सब व्यर्थ है
अंतस ही सर्वस्व है
शुभ है!!! शुभ है!!!शुभ है!!!
बेहतरीन उन्मुक्त उड़ान
आपने बिलकुल ठीक कहा कि अंतस ही सर्वस्व है....बाकी सब व्यर्थ है और यह बात हम जितनी जल्दी समझ जाएँ उतना ही अच्छा है,हमारे लिए.
Deleteउन्मुक्त उडो ,जी भर के जियो
ReplyDeleteपिछला सब भूल के आगे बढ़ो .
हाँ,बस इतना याद रखना
कि
जब थकने लगो
या हारने लगो ....कभी .
तो हाथ बढ़ाना
मेरा हाथ होगा थामने के लिए तुम्हें..
आस-पास ही कहीं ...
तुम्हारी थकान हार को दूर करने के लिए
तुम्हें फिर से ऊर्जस्वित करने के लिए
ताकि तुम नए गंतव्यों की ओर
और ऊंची उड़ान भर सको
और तुम जान सको बाहर की व्यर्थता
और घर लौट सको
नए जन्म के साथ
बाहर व्यर्थ अंतस समर्थ
बाहर तमस अंतस चेतन
आपकी दो टिप्पणी...उसी बात को अलग अलग ढंग से आगे बढ़ा रही हैं कि बाहारी सब व्यर्थ है..निस्सार है ...वास्तव में जिसकी महत्ता है वो अंतस ही है
Deleteएक ही बात दो बार कहने में अंतर तो आ ही जाता है.
Deleteजीवन को उड़ान देती सार्थक रचना...
ReplyDeleteआपको पसंद आई...धन्यवाद .
Deleteनिधि जी...पता नहीं क्यों मेरी टिप्पणी स्पैम हो जाती हैं?
ReplyDeleteआपकी टिप्पणियों से लगता है कुछ खास दुश्मनी है
Deleteअपनी नयी उड़ान की
ReplyDeleteबाध्यता न हो,
पुरानी पहचान की .
उत्साह जगती सुन्दर रचना... गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनायें...
धन्यवाद.....आपको भी गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ.
Deleteशुक्रिया!!मैं अवश्य आउंगी आपके ब्लॉग पर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति|
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें|
आभार!!आपको भी गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें!!
Deleteसुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं....!
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं....!
साधारण में भी सुंदरता ढूंढ लेने के लिए ,आभार!!
Deleteखूबसूरत रचना..
ReplyDeleteथैंक्स:-)))
Deleteधन्यवाद!!
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