तुम कहते हो मेरे बिना कैसे रहोगे?
मानो न मेरी बात
रह लोगे..मेरी जान.
पता है,मुझे ...
हर कोई रह लेता है
हर किसी के बगैर .
मेरी बातें,वो मुलाकातें
होंगे तेरे साथ...दिन -रात.
बताओ न,फिर कैसे अकेले होगे तुम?
मैंने,इतना तो इंतजाम कर दिया है
कि
ताउम्र....
मेरी यादें,प्यार की वो सौगातें
तेरा पीछा कभी नहीं छोडेंगी .
तुम कहीं भी रहो,किसी हाल में रहो
मैं साथ रहूँगी तेरे
सांस और धडकन की तरह .
जो हमारे अन्दर ही रहते हैं .
पर, यूँ कि एहसास नहीं होता
उनके होने का .
मानो न मेरी बात
रह लोगे..मेरी जान.
पता है,मुझे ...
हर कोई रह लेता है
हर किसी के बगैर .
मेरी बातें,वो मुलाकातें
होंगे तेरे साथ...दिन -रात.
बताओ न,फिर कैसे अकेले होगे तुम?
मैंने,इतना तो इंतजाम कर दिया है
कि
ताउम्र....
मेरी यादें,प्यार की वो सौगातें
तेरा पीछा कभी नहीं छोडेंगी .
तुम कहीं भी रहो,किसी हाल में रहो
मैं साथ रहूँगी तेरे
सांस और धडकन की तरह .
जो हमारे अन्दर ही रहते हैं .
पर, यूँ कि एहसास नहीं होता
उनके होने का .
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteसच है..कुछ एहसास भीतर पलते हैं...चुपके चुपके...
विद्या....जैसे हमें सांस लेने का पता नहीं चलता...दिल के धड़कने का घडी -घडी एहसास नहीं होता...बिलकुल ऐसे ही कुछ लोगों से जुडी यादें होती हैं....जो हमेशा साथ चलती हैं.
ReplyDeleteसांस...धड़कन...हमेशा हमारे साथ होती हैं, पर इनका पता तभी चलता है जब हम इनकी ओर ध्यान देते हैं...
ReplyDeleteप्यार भी कुछ ऐसा ही अहसास है
यह कब होता है
और कब इतना सहज हो जाता है
कि इसकी सुगंध रोम-रोम मे फैल जाता है
और कभी जुदा नहीं होता
चाहे भौतिक रूप से दूरियां बढ़ जाएं
पर वो सुगंध बनी रहती है
कुछ यादों में तो कुछ उन सौगातों में
जो प्रियतम ने प्रेम के क्षणों में
रख छोड़ी थी
.
सांस आती जाती है एक लय में
रास आती जाती है जिंदगी एक वय में
साथ सांसों सा हो तो जिंदगी रसमय है
.
मनोज जी...पहले तो आपकी इस खूबसूरत टिप्पणी के लिए धन्यवाद.आपने बिलकुल सही कहा...साथ साँसों सा हो...जिसका होना यूँ तो पता न चले..पर वो हमेशा साथ रहे....और वो न हो तो दम सा घुटने लगे .
Deleteपता है,मुझे ...
ReplyDeleteहर कोई रह लेता है
हर किसी के बगैर .
जीवन जीने की प्रेरणा देती सुन्दर रचना.... निधि जी
शुक्रिया...संजय जी.
Deleteसाँस और धड़कन दोनों का ही महत्व है
ReplyDeleteसंजय जी...बिन इनके जीवन ही कहाँ है?
Deleteरहना और विवश हो रहना - दो अलग बातें हैं .
ReplyDeleteरश्मि जी....जब पता हो कि बिछडना ही है...तो यादों के सहारे ही जीना पड़ता है.अब इसे विवशता कह लिया जाए या यादों के साथ ...उसके साथ रहने का एक नया तरीका.
Deleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
यशवंत...पसंद करने हेतु धनयवाद!!
Deletebahut sundar...ye prashn har koi puchhna chahta hai....
ReplyDeleteआशा जी..प्रश्न हर कोई पूछना चाहता है ...इसका उत्तर देना बड़ा तकलीफदेह होता है..क्यूंकि यह कहना ,स्वीकारना कि तुम्हारे बिना रहना पडेगा आसान नहीं होता .
Deleteयादें अहसास हैं, याद रहती हैं सदा इसलिए तो याद हैं...
ReplyDeleteयादें तो हमेशा साथ रहती हैं......
Deleteबेहतरीन शब्द रचना ।
ReplyDeleteथैंक्स!!
Deleteकुछ खास यादें तो हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाती हैं ..
ReplyDeleteदुरुस्त फ़रमाया,आपने.कुछ यादें..अमिट छाप सी होती हैं.
Deleteआपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार 21/1/2012 को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
ReplyDeleteअनुपमा...थैंक्स!!
Deleteसुन्दर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteधन्यवाद!!
Deleteसुन्दर और बेहतरीन काव्य प्रस्तुति
ReplyDeleteआपको अच्छी लगी जान कर अच्छा लगा.
Deletebahut bahut sundar gahan bhavo ko vykt karati rachana hai..
ReplyDeleteपसंद करने के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया!!
Deletebeautiful :)
ReplyDelete:-))))
Deleteताउम्र....
ReplyDeleteमेरी यादें,प्यार की वो सौगातें
तेरा पीछा कभी नहीं छोडेंगी .
तुम कहीं भी रहो,किसी हाल में रहो
मैं साथ तो होउंगी ही
bahut hi prabhavshali rachana Tandan ji ...badhai sweekaren.
बहुत बहुत आभारी हूँ.
Delete"मैं साथ तो होउंगी ही
ReplyDeleteसांस और धडकन की तरह .
जो होते तो हैं ..
पर, यूँ एहसास नहीं होता
उनके होने का ."
बहुत सुंदर !
शुक्रिया!!
ReplyDeleteसाँसों और धडकन का तो वैसे भी साथ है उम्र भर का ... और प्रेम हो जो दो जिस्म भी ऐसे ही हो जाते हैं ...
ReplyDeleteदिगंबर जी...प्रेम ही का तो सारा खेल है...
Deleteसुन्दर कविता..
ReplyDeleteअरुण जी .....थैंक्स !!
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता।
ReplyDeleteप्रत्येक व्यक्ति के साथ प्रति क्षण कोई न कोई अवश्य रहता है, चाहे व्यक्ति के रूप में या उसकी यादों के रूप में।
महेंद्र जी...आप की बात से सहमत हूँ .
Deleteप्रेम के बगैर जीना ...एक एहसान करना होता है खुद पर ...जीवन के रंगमंच पर अभिनय करना होता है ...ऐसा अभिनय जिसमें दर्द छिपाकर मुस्कुराना पड़ता है ....कुछ यूँ कि देखने वाले को मुस्कान सच लगे ....दर्द दिखाई भी न दे
ReplyDeleteतूलिका..क्या किया जाए...यह अभिनय तो हम में से अधिकतर लोग करते हैं...अच्छा....वैसे इस के लिए हम सभी को कम से कम एक ऑस्कर...चलो ऑस्कर नहीं तो एक फिल्मफेयर अवार्ड तो मिलना ही चाहिए.
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