ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Monday, January 16, 2012
जागो मेरे साथ ...
कितनी तन्हां रातें...
तेरे बिन गुजारी हैं.
आज.....
तुझे साथ पाके...
साँसों की सरगम पर ,
धडकनें गीत गा रही हैं .
मेरी उलझनें बढ़ा रहीं हैं .
तुम हो आगोश में..
कह रहे हो कि
बालों में उंगली फिराऊ
माथे को सहलाऊं
आँखों पे तुम्हारी
हल्का सा चुम्बन धरूं
दुलार करूँ ..लाड करूँ..प्यार करूँ
और सुला लूँ तुम्हें अपने काँधे पर .
जबकि,
मैं चाहती हूँ
कि तुम यूँ ही रहो मेरे कंधे पे सर रख के
बातें करें हम जी भर के
तुम जागो मेरे साथ
आज की सारी रात .
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कुछ मेरी भी तो सुनो... कहनी हैं जाने कितनी सारी बातें
ReplyDeleteवही तो समझाने की कोशिश है...रश्मिप्रभा जी .
Deleteबातें करें हम जी भर के
ReplyDeleteतुम जागो मेरे साथ
आज की सारी रात .
ओह निधि क्या लिखते हो आप सच में गज़ब ! कितनी सहज चाहत है आपकी !!
आनंद जी...आपकी नवाजिश है...बस,और क्या कहूँ....
Deleteप्यारी सी ख्वाहिश ..
ReplyDeleteसंगीता जी....बस पूरी होने कि उम्मीद लगा रही है.
Deleteबहुत खूबसूरत ख्वाहिश
ReplyDeleteशुक्रिया...वंदना .
Deleteमैं चाहती हूँ
ReplyDeleteकि तुम यूँ ही रहो मेरे कंधे पे सर रख के
बातें करें हम जी भर के
तुम जागो मेरे साथ
आज की सारी रात .
बहुत खूबसूरत मासूम ख्वाहिश....
हार्दिक धन्यवाद!!
Deleteमैं चाहती हूँ
ReplyDeleteकि तुम यूँ ही रहो मेरे कंधे पे सर रख के
बातें करें हम जी भर के
तुम जागो मेरे साथ
आज की सारी रात ...
पुरुष और स्त्री की चाहतों
के अंतर स्पष्ट करती
रोमानी कविता
.
आपकी चाहत पूरी हो...
मनोज जी...दो व्यक्ति ....एक ही रात में ..साथ होते हुए भी...एक दूसरे के साथ की चाहत करते हैं पर वो साथ किस तरह का हो...यहाँ अंतर है.आपको रचना अच्छी लगी...शुक्रिया!!
Deleteलाजवाब चित्रण|
ReplyDeleteथैंक्स!!
Deleteये जीवन यूँ ही गुजार जाए तो फिर क्या बात है ... कोमल जज्बात लिख दिए हैं आपने ..
ReplyDeleteकाश ...यूँ ही जीवन गुजार जाए...........
Deleteबहुत ही प्यारी और खुबसूरत पंक्तिया.......
ReplyDeleteसुषमा:-)))
Deleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....दिल की गहराइयों से
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteखूबसूरत रचना..
ReplyDelete...
"तनहा गुज़रती नहीं..
शब-ए-तन्हाई..
बहुत गुजारी है..
तनहा ज़िन्दगी..
ता-उम्र..!!!"
...
तन्हाईयों के तो पल भी नहीं कटते ..तुम पूरी रात की बात करती हो .जानलेवा होता है....यह आलम तन्हाई का .
Deleteतुम जागो मेरे साथ
ReplyDeleteआज की सारी रात
और फिर ..इस रात की
कोई सहर न हो ..
वियोग का प्रहर न हो ...
एक ..बस एक रात
........नवाज़ दो न |
तूलिका...पढ़ने के बाद बस एक ही आवाज़ आयी ...............काश !!वैसे वियोग के बिना कोई मिलन होता है क्या?
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