Monday, January 16, 2012

जागो मेरे साथ ...



कितनी तन्हां रातें...
तेरे बिन गुजारी हैं.
आज.....
तुझे साथ पाके...
साँसों की सरगम पर ,
धडकनें गीत गा रही हैं .
मेरी उलझनें बढ़ा रहीं हैं .
तुम हो आगोश में..
कह रहे हो कि
बालों में उंगली फिराऊ
माथे को सहलाऊं
आँखों पे तुम्हारी
हल्का सा चुम्बन धरूं
दुलार करूँ ..लाड करूँ..प्यार करूँ
और सुला लूँ तुम्हें अपने काँधे पर .
जबकि,
मैं चाहती हूँ
कि तुम यूँ ही रहो मेरे कंधे पे सर रख के
बातें करें हम जी भर के
तुम जागो मेरे साथ
आज की सारी रात .

24 comments:

  1. कुछ मेरी भी तो सुनो... कहनी हैं जाने कितनी सारी बातें

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    1. वही तो समझाने की कोशिश है...रश्मिप्रभा जी .

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  2. बातें करें हम जी भर के
    तुम जागो मेरे साथ
    आज की सारी रात .

    ओह निधि क्या लिखते हो आप सच में गज़ब ! कितनी सहज चाहत है आपकी !!

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    1. आनंद जी...आपकी नवाजिश है...बस,और क्या कहूँ....

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  3. Replies
    1. संगीता जी....बस पूरी होने कि उम्मीद लगा रही है.

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  4. बहुत खूबसूरत ख्वाहिश

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    1. शुक्रिया...वंदना .

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  5. मैं चाहती हूँ
    कि तुम यूँ ही रहो मेरे कंधे पे सर रख के
    बातें करें हम जी भर के
    तुम जागो मेरे साथ
    आज की सारी रात .

    बहुत खूबसूरत मासूम ख्वाहिश....

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    1. हार्दिक धन्यवाद!!

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  6. मैं चाहती हूँ
    कि तुम यूँ ही रहो मेरे कंधे पे सर रख के
    बातें करें हम जी भर के
    तुम जागो मेरे साथ
    आज की सारी रात ...

    पुरुष और स्त्री की चाहतों
    के अंतर स्पष्ट करती
    रोमानी कविता
    .

    आपकी चाहत पूरी हो...

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    1. मनोज जी...दो व्यक्ति ....एक ही रात में ..साथ होते हुए भी...एक दूसरे के साथ की चाहत करते हैं पर वो साथ किस तरह का हो...यहाँ अंतर है.आपको रचना अच्छी लगी...शुक्रिया!!

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  7. ये जीवन यूँ ही गुजार जाए तो फिर क्या बात है ... कोमल जज्बात लिख दिए हैं आपने ..

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    1. काश ...यूँ ही जीवन गुजार जाए...........

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  8. बहुत ही प्यारी और खुबसूरत पंक्तिया.......

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  9. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....दिल की गहराइयों से

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  10. तहे दिल से शुक्रिया!!

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  11. खूबसूरत रचना..

    ...

    "तनहा गुज़रती नहीं..
    शब-ए-तन्हाई..
    बहुत गुजारी है..
    तनहा ज़िन्दगी..
    ता-उम्र..!!!"


    ...

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    1. तन्हाईयों के तो पल भी नहीं कटते ..तुम पूरी रात की बात करती हो .जानलेवा होता है....यह आलम तन्हाई का .

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  12. तुम जागो मेरे साथ
    आज की सारी रात
    और फिर ..इस रात की
    कोई सहर न हो ..
    वियोग का प्रहर न हो ...
    एक ..बस एक रात
    ........नवाज़ दो न |

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    1. तूलिका...पढ़ने के बाद बस एक ही आवाज़ आयी ...............काश !!वैसे वियोग के बिना कोई मिलन होता है क्या?

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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