बारिश में भीगते हुए
बिजली के नंगे तार
उन तारों से लिपटी..
बूँदें सिमटी-सिमटी
तेरी यादें ले आयीं
कुछ मीठी -मीठी
कुछ कड़वी-कड़वी .
उन बूंदों का एक-एक करके
तार को छोड़ कर चले जाना
बिसरा तार को
ज़मीन को गले लगाना
बिलकुल वैसा ही है
जैसे...तुम्हारे किये वादे.
जब करे,तब करे
आगे चल तुम्हारा ..
उन वादों को एक -एक करके
तोडना या भूलते जाना
और
अपने नए जीवन में
बिना अपराधबोध रमते जाना .
बिजली के नंगे तार
उन तारों से लिपटी..
बूँदें सिमटी-सिमटी
तेरी यादें ले आयीं
कुछ मीठी -मीठी
कुछ कड़वी-कड़वी .
उन बूंदों का एक-एक करके
तार को छोड़ कर चले जाना
बिसरा तार को
ज़मीन को गले लगाना
बिलकुल वैसा ही है
जैसे...तुम्हारे किये वादे.
जब करे,तब करे
आगे चल तुम्हारा ..
उन वादों को एक -एक करके
तोडना या भूलते जाना
और
अपने नए जीवन में
बिना अपराधबोध रमते जाना .
बहुत खूब .. .आभार
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण ख्याल
ReplyDeletesuperbb
ReplyDeleteमन के भावों को खूबसूरती से लिखा है
ReplyDeleteशिखा जी ....आप लगातार मेरा ब्लॉग का अनुसरण कर रही हैं...शुक्रिया!
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी ..बड़े दिन बाद आपका कमेन्ट मिला...धनयवाद!!!
ReplyDeleteसंगीता जी...नवाजिश !!
ReplyDeletebahut sunder rachna nidhiji.un taaro ka ek ek kar chhod kar jana-----tumhare kiye wade.
ReplyDeletekyunn unn yadonn ko samet.....itniii vitriishnaa bhar chukey ho MANN meinnn..................abb to unn Boondonn kaa sahejnaa bhii to dekho..........Aaatii haiinn...barastii haiinn....mann ko ek bhaav de jaatii haiinn....kehtii haiinn...Bisriii yadonn ko bhool abb Aagey badhnaa SEEKHO......
ReplyDeleteआदरणीय निधि जी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
सुन्दर शब्दों से सजाई हुई बेहद बेमिसाल रचना !
बारिश में भीगते हुए
ReplyDeleteबड़ी खूबसूरती से कही अपनी बात आपने.....वाह बहुत ही सुंदर .... एक एक पंक्तियों ने मन को छू लिया!
करीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
बहुत खूबसूरत,
ReplyDeleteआभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
वंदना...बहुत आभारी हूँ...कल नहीं आ पायी ,आज किसी वक्त अवश्य आऊँगी.
ReplyDeleteसुनीला जी...... आपको बिम्ब अच्छा लगा...थैंक्स !
ReplyDeleteसंजय जी...
ReplyDeleteनमस्ते!
उम्मीद है कि अब आप पूर्ण रूप से स्वस्थ होंगे ...आपको पोस्ट पसंद आई..नवाजिश !!
बड़े दिनों से मेरा ब्लॉग आपके कमेंट्स का इंतज़ार कर रहा था....
थैंक्स.........................विवेक .
ReplyDeleteजीवन में यह अपराधबोध बना रहे तोजीवन के प्रति नजरिया भी बदल जाए और हम जीवन कि सार्थकता को समझ सकते हैं ....आपका आभार
ReplyDeleteकेवल राम जी...आपने बिलकुल ठीक कहा कि गलत करने के बाद यदि अपराधबोध हो...तो उससे अच्छी बात कोई नहीं..पर वैसे आजकल ऐसा होना ज़रा कम होता जा रहा है..
ReplyDeleteAdarniya Nidhi ji..
ReplyDeleteSadar Pradam,,,
Barish me bigati rachna ne man ko bhi bhigo diya.
Waqt mile to ap bhi ayen .... hame padhe aur hausla badhayen.
Abhar
कितनी सहजता से अपराधबोध की परिभाषा बतलाई है आपने..!!! बहुत सुंदर...!!!!
ReplyDeleteआपकी 'उपमाएं' बहुत सुंदर होती हैं..!!
रवि जी....शुक्रिया...मैं अवश्य आऊँगी
ReplyDeleteप्रियंका...अपराधबोध की परिभाषा देना जितना ही सरल ...उसके साथ जीना उतना ही दुष्कर ..है न?तुम्हें उपमाएं अच्छी लगी ...थैंक्स .
ReplyDeleteबादलों से बूंदों का साथ घड़ी दो घड़ी का ही होता है .......उनकी मंजिल तो प्यासी धरती की गोद ही होती है .....हाँ वो छोटी सी बूँद अपने क्षणभंगुर जीवन में कितनी आत्माओं को तृप्त करती चलतीं हैं ....बिजली के तारों पर तो उनका बैठना बस एक वादे के निभाने के जैसा ही होता है .... ...धरती में मिल कर खो ही तो देती है वो खुद को ....बिछड़ कर ज़िंदा कहाँ रह पाती है ..
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