कई दिन से लगातार सफाई कर रही थी....
घर की दीवारों से जाले निकाले
कोनों की धूल समेटी
हरेक चीज़ झाडी -पोछी
फूलदान का पानी बदला
ऐश-ट्रे की राख पलटी
.....घर चमक रहा है
कितना सुकून मिलता है साफ़-सुथरे घर में
ना जाने क्यूँ ??????????
बस .......
तुम्हारी यादों के जाले
अपने प्यार की राख
दिल में बसी ...तुम्हारी तस्वीर की धूल
इन सब को मैं बुहार कर
बाहर क्यूँ नहीं फेंक पाती ???
बार-बार
अपनी आँखों के पानी से
धो पोंछ कर ,
चमका कर ...
अपने दिल में फिर से सजा लेती हूँ
क्यूँ?????????????
क्या बात है, बहुत सुंदर
ReplyDeleteBahut hi vaastavik...
ReplyDeleteKahte hain samay ke sath har cheez badal jati hai, yaadein bhi dhundhali pad jati hain Par bas ek teri yaad hi hai jo samay ke sath aur bhi badhti chali jati hai.. ek tera Pyaar hai jo badhata hi chala ja raha hai...
.. सुंदर रचना के लिए फिर बधाई .. निधि...
ReplyDeleteकुछ मिल गया था घर साफ़ करते करते
फिर आज इन आँखों की धुलाई हो गयी.
yaadon ke jaale nahin utarte ...
ReplyDeletenidhi ji bahut khoob likha hai aapne aabhar
ReplyDeleteमहेंद्र जी....नवाजिश !!
ReplyDeleteअनुराग....क्या बात है...आज बड़े दिन बाद याद आई ...चलो आ तो गयी...वरना तो तुमने कमेन्ट करना बंद ही कर दिया था.. यहाँ ब्लॉग पर...खैर.............शुक्रिया रचना को पसंद करने के लिए
ReplyDeleteअमित ...बिलकुल सही कहा ...कई बार घर की सफाई से आँखों में कुछ पल खटक जाते हैं...जिनकी आदत होती है कि वो आँखों को भिगो कर ही साफ़ करते हैं.थैंक्स!!
ReplyDeleteतुम्हारी यादों के जाले
ReplyDeleteअपने प्यार की राख
दिल में बसी ...तुम्हारी तस्वीर की धूल
इन सब को मैं बुहार कर
बाहर क्यूँ नहीं फेंक पाती ???
bus muh se waah nikaal diya apne...shukriya
अजयेंद्र जी...आभार,ब्लॉग पर आने ,रचना को पढ़ने एवं सराहने के लिए...साथ ही साथ टिप्पणी करने हेतु भी .
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