Thursday, July 7, 2011

यादों के जाले

कई दिन से लगातार सफाई कर रही थी....
घर की दीवारों से जाले निकाले 
कोनों की धूल समेटी
हरेक चीज़ झाडी -पोछी
फूलदान का पानी बदला
ऐश-ट्रे की राख पलटी
.....घर चमक रहा है
कितना सुकून मिलता है साफ़-सुथरे घर में

ना जाने क्यूँ ??????????
बस .......
तुम्हारी यादों के जाले
अपने प्यार की राख
दिल में बसी ...तुम्हारी तस्वीर की धूल
इन सब को मैं बुहार कर
बाहर क्यूँ नहीं फेंक पाती ???

बार-बार
अपनी आँखों के पानी से
धो पोंछ कर ,
चमका कर ...
अपने  दिल में फिर से सजा लेती हूँ
क्यूँ?????????????

10 comments:

  1. Bahut hi vaastavik...

    Kahte hain samay ke sath har cheez badal jati hai, yaadein bhi dhundhali pad jati hain Par bas ek teri yaad hi hai jo samay ke sath aur bhi badhti chali jati hai.. ek tera Pyaar hai jo badhata hi chala ja raha hai...

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  2. .. सुंदर रचना के लिए फिर बधाई .. निधि...

    कुछ मिल गया था घर साफ़ करते करते
    फिर आज इन आँखों की धुलाई हो गयी.

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  3. महेंद्र जी....नवाजिश !!

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  4. अनुराग....क्या बात है...आज बड़े दिन बाद याद आई ...चलो आ तो गयी...वरना तो तुमने कमेन्ट करना बंद ही कर दिया था.. यहाँ ब्लॉग पर...खैर.............शुक्रिया रचना को पसंद करने के लिए

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  5. अमित ...बिलकुल सही कहा ...कई बार घर की सफाई से आँखों में कुछ पल खटक जाते हैं...जिनकी आदत होती है कि वो आँखों को भिगो कर ही साफ़ करते हैं.थैंक्स!!

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  6. तुम्हारी यादों के जाले
    अपने प्यार की राख
    दिल में बसी ...तुम्हारी तस्वीर की धूल
    इन सब को मैं बुहार कर
    बाहर क्यूँ नहीं फेंक पाती ???

    bus muh se waah nikaal diya apne...shukriya

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  7. अजयेंद्र जी...आभार,ब्लॉग पर आने ,रचना को पढ़ने एवं सराहने के लिए...साथ ही साथ टिप्पणी करने हेतु भी .

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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