ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Tuesday, July 19, 2011
दरारें दर्द करती हैं
तुम्हारी यादों की बारिश में भीगना
मुझे बहुत अच्छा लगता है
पर,
उस बारिश के बाद
जब विरह की चमकती धूप
मुझे झुलसाती है,तडपाती है
तुम्हारी यादों की नमी को
नरमी से धीरे-धीरे सुखाती है
तब बहुत तकलीफ होती है
क्योंकि
भीग कर सूखने से
मेरे मन की गीली मिट्टी पर
दरारें उभर आती हैं
और वो दरारें बहुत दर्द करती हैं
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अहा ! बहुत ही सच्ची और dard भरी रचना ! पर एक बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआप सच में दो अलग अलग विषयों को इस भांति जोडती हैं की जैसे वो दोनों इस लिए ही बने हों !
अतिउत्तम प्रस्तुति !
आदरणीय निधि जी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत ही मार्मिक कविता...
रचना सोच रहा हूं ...किसकी तारीफ करूं सुंदर कविता की ...आपकी सोच की ...या लेखनी की जिनसे ये शब्द जन्म लेते हैं ...बेमिसाल प्रस्तुति .......जय भास्कर
बेहतरीन.
ReplyDeleteसादर
ek tees jo raah ke mod de jaate hain....hum kahe kuchh bhi lekin wo dard hamesha rehta hai............koi shabd nahi mere paas nidhu.....baht hi sanjida aur sahii varnan.........keep it up........love you hamesha nidhu.....:)))<3
ReplyDeleteनिधि जी,बहुत समय बाद इस सुंदर कविता ने हिंदी के पारंपरिक एवम साहित्यिक रूप से साक्षात्कार कराया,मन की कोमल भावनाओं और प्रकृति की प्राकृतिक गतिविधियों का चमत्कारिक समन्वय देखने को मिला......बधाई....!!!
ReplyDeletebahut khoob....aabhar
ReplyDeleteएक बार फिर आपने नये अल्फाजों और जज्बातों के साथ अपनी बात प्रस्तुत की है निधि.. इस खूबसूरत रचना के लिए फिर बधाई आपको..
ReplyDeleteहमने तो सोचा था 'बाम-ओ-दर' धुल जायेगे
बारिश आई तो दीवार पर 'काई' जम गयी
hamne to socha tha 'baam-o-dar' dhul jayenge
baarish aayee to deewar per 'kaaee' jam gayi
* 'बाम-ओ-दर' 'baam-o-dar' = balcony aur entry gate
* 'काई' 'kaaee' = moss, moss green, mossstone
आज 19- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
अद्भुत - अद्वितीय चित्रण
ReplyDeleteवाह क्या खूब लिखा है निधि जी…………बहुत ही भावपूर्ण्।
ReplyDeleteबढिया है, बहुत बढिया
ReplyDeleteआभार
आदित्य...शुक्रिया कि तुम्हें रचना इतनी पसंद आई...हाँ, दो अलग अलग चीज़ें थी पर उनको बाँधने वाला तंतु दोनों में समान था ..क्यूँ...हैं ना..
ReplyDeleteसंजय जी ....जैस ही पोस्ट डालती हूँ ...वैसे ही तुरंत आपकी प्रतिक्रया आ जाती है ...आपने इतनी प्रशंसा कर दी है कि मुझे शर्मिंदगी सी हो रही है...कि क्या कहूँ ...समझ ही नहीं आ रहा ...साथ बने रहने के लिए आभार !!
ReplyDeleteयशवंत जी...पोस्ट पढ़ने और सराहने के लिए ...थैंक्स!!
ReplyDeleteडिम्पल...तुम्हारा प्यार सहेज और समेट रही हूँ...सच में यही होता है कि दूसरों के सामने हम भले यह दिखाएँ कि सब भूल गए हैं पर अंदर ही अंदर हम वाकिफ होते हैं इस बात से कि कहीं कुछ नहीं बदला...जहां पहले दर्द होता था वहीँ आज भी होता है .
ReplyDeleteशंकर जी...आप पहली बार्मेरे ब्लॉग पर आये...रचना को पढ़ा ,सराहा एवं टिप्पणी करी...सबके लिए धनयवाद!!आप बड़ी उदारता से प्रशंसा करते हैं...इसमें कोई दो राय नहीं है..!!
ReplyDeleteप्रियंका....हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteसंगीता जी...आभार !!
ReplyDeleteराकेश जी...थैंक्स...अपना समय देने के लिए !!
ReplyDeleteवन्दना जी...तहे दिल से आपका शुक्रिया !!
ReplyDeleteमहेंद्र जी...धन्यवाद!!
ReplyDeleteअमित ...सुन्दर शेर...!!!पोस्ट की कीमत बढ़ गयी ...आप जैसे नए बिम्बों को सराहने वाले यूँ ही मिलते रहेंगे ...तो ये कोशिश जारी रहेगी ...
ReplyDeleteनिधि जी
ReplyDeleteनमस्कार
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना....एक एक शब्द भावों को समेटे हुए है .......
जी निधि जी ऐसा ही होता है.
ReplyDeleteबारिश में भीगने के बाद अक्सर वाईरल हो ही जाता है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
जीवन के दोनो पहलुओं को नकारा नही जा सकता……सुंदर रचना। कभी धूप कभी छावं…
ReplyDeleteकुमार जी....नमस्ते!!मेरी इस भावपूर्ण प्रस्तुति को पसंद करने के लिए शुक्रिया .
ReplyDeleteराकेश जी ....सच कहा आपने...बारिश का मज़ा भी अलग है...और जब यह वाइरल देती है तो उस सज़ा को भी झेलना पड़ता है ...यादों की तपिश....वाकई किसी बुखार से कम नहीं होती...
ReplyDeleteसूर्यकांत जी....जीवन में सुख -दुःख,विरह-मिलन,मिलन -विछोह,धुप-छाँव...सब आते जाते हैं...यह इंसान पे है कि वो किस परिस्थिति में स्वयं को कैसे....संतुलित रखता है .पसंद करने के लिए धन्यवाद !!
ReplyDeleteसच है रिश्ते जब सूकने लगते अहिं तो दरारें आ जाती हैं .. शायद उसी वक्त प्रेम की फुहार की जरूरत होती है ...
ReplyDeleteयादों की बारिश हो और मैं न आऊं.... उठने दो दर्द की लकीरें ...यादें तो हैं
ReplyDeleteदिगंबर जी...रिश्तों को हमेशा सिंचन की आवश्यकता होती है...प्रेम की फुहार ...उन्हें मुरझाने नहीं देती
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी....आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती है और जब जब ...मेरी किसी पोस्ट पर आप अपनी प्रतिक्रया व्यक्त करती हैं तो मेरा मन प्रसन्न हो जाता है....शुक्रिया!!
ReplyDeleteबारिशों से जुड़ी किसी की याद हो तो बारिश की बुँदे भी जला जाती हैं पुरे जिस्म को..
ReplyDeleteखूबसूरत लिखा है आपने..:)
bhut sundar likha hai aapne...bhut badhiya..:)
ReplyDeleteअभी...ऐसा ही होता है न...जब बारिश से किसी की याद भी जुडी हो !थैंक्स!!पसंद करने के लिए .
ReplyDeleteसत्यम जी....हार्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeleteबारिश और दर्द को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने....
ReplyDeleteनिधि जी मै सोच रहा हूँ कहीं आपने मेरे ब्लॉग को भुला तो नहीं दिया.
ReplyDelete'सीता जन्म'पर आपका इंतजार हो रहा है.
सुषमा जी...तहे दिल से शुक्रिया...आपको दर्द और बारिश का ये समन्वय पसंद किया ...
ReplyDeleteराकेश जी...मैं आऊंगी ...भूली नहीं हूँ.!
ReplyDeleteवाह! बहुत खूब ..., यह कविता नहीं वेदना है जो यथार्थ के धरातल पर बहती है और सामने आने वाले प्रत्येक चीज को, सजीव हो या निर्जीव डुबो देती है. मारने के लिए नहीं, तारने के लिए. देखिये सत्य एक यह भी रूप, जिसे मौन रूप में भोग तो बहुतों ने होगा. लेकिन मौन जब फूटता तो बड़ो-बड़ों को बहा लेजाता है. भाव परवान रचना. सहयाद पत्थर दिल में संवेदनाये बी उदित हों.
ReplyDeleteतिवारी जी...आपने तो अपने शब्दों में कविता की पूरी व्याख्या कर दी...शुक्रिया,आपका.आपको रचना अच्छी लगी ...मेरा सौभाग्य है .आपने खुले दिल से प्रशंसा की ...इस हेतु मैं ह्रदय से आभारी हूँ
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत जीवन दर्शन बताती रचना .....
ReplyDeleteनिधि: बेहद संजीदा कविता और दिल को छू जाने वाली....बारिश ओय यादें जो एक तीस दे जाती हैं, हर एक मन की पीड़ा को तुमने बखूबी अपनी कविता में दर्शाया है...बहुत खूबसूरत......
ReplyDeleteनिवेदिता...बहुत -बहुत शुक्रिया !!
ReplyDeleteएम् एस...........आपका आभार कि इतने दिन बाद आप ब्लॉग पर आये ..पोस्ट को पढ़ने ...और वक्त निकाल कर आपने अपनी प्रतिक्रया भी दी .
ReplyDeleteअब पूछते हो, कितना दुःख तुने सह लिया |
ReplyDeleteतब न प्यार का, कुछ इस तरह सिला दिया |
पप्पू जी..ब्लॉग पर आने और खूबसूरत टिप्पणी से नवाज़ने के लिए शुक्रिया !!
ReplyDelete@ निधि ......स्मृतियाँ भी वस्तुतः श्राप ही होतीं हैं !.........इनका दंश इतना दुःसह ......इतना कष्टकर होता है कि कोयला भयी न राख की ही सी स्तिथी हो जाती है ! ...........पर ये भी उतना ही सच है ...कि मन का दस्यु , उन पलों को ठीक हमारे ही आगे ....बार बार पूरी उदंडता से जीता है .........वो पल जो हम अपने अंतस में सहेज कर भूल जाना चाहते हैं !.........पर शायद अभिज्ञान भी एक वरदान होता है........ये हर किसी को सुलभ कहाँ ?
ReplyDeleteबच्चन जी कि वो पंक्तियाँ , कितनी सहजता से उस दुरूह पीड़ा को व्यक्त कर गयीं हैं......
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
अगणित उन्मादों के क्षण हैं,
अगणित अवसादों के क्षण हैं,
रजनी की सूनी घड़ियों को किन-किन से आबाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
याद सुखों की आँसू लाती,
दुख की, दिल भारी कर जाती,
दोष किसे दूँ जब अपने से अपने दिन बर्बाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
दोनों करके पछताता हूँ,
सोच नहीं, पर, मैं पाता हूँ,
सुधियों के बंधन से कैसे अपने को आज़ाद करूँ मैं!
क्या भूलूँ, क्या याद करूँ मैं!
ये सच है....बीते पलों की सुधियाँ पुनः उन क्षणों को प्राणमय कर देती हैं......जिनको बार बार जीने के लिए मन व्याकुल रहता है !.............वो मधुर अनुभूतियाँ.....वो कोमल भाव -अनुभाव ........वो कल्पनाएँ ......फिर से मन में तरंगित होने लगतीं हैं !........हम पुनः उन मादक क्षणों में डूबते -उतरते हैं !.......हर बीता पल फिर उतना ही जागृत....उतना ही चेतन ....उतना ही जीवंत हो जाता है....जैसा उस समय था...जब बीत रहा था !........हम पुनः अपने प्रिय के स्नेह पाश को जीते हैं.....उस उन्माद में फिर से निः संबल हो कर तिरते हैं......फिर से वो उत्कंठा शिराओं में दौड़ती है.......फिर से प्रीति के उस आवेग में हम अपनी सुध बुध खो देते हैं !........
लेकिन कब तक ?.......... जैसे लहर का उठान जब ढलता है....तो समुद्र तट पर कितना कुछ अवांछित छोड़ जाता है !.......जैसे वर्षा की पहली फुहार के बाद ...धरती फिर से ताप उगलती है !!........जैसे बहुत सूखी धरती भीगने के बाद....दरारों से दरक जाती है !!!............... बस वैसे ही ये सुधियाँ भी अपने पीछे ...कितना ताप.....कितने आँसू.....कितने अवांछित प्रश्न चिन्ह उपहार में दे जातीं हैं !!!
अनायास ही याद आ गयीं बच्चन ही की कुछ पंक्तियाँ और ......
जीवन शाप या वरदान?
सुप्त को तुमने जगाया,
मौन को मुखरित बनाया,
करुन क्रंदन को बताया क्यों मधुरतम गान?
जीवन शाप या वरदान?
सजग फिर से सुप्त होगा,
गीत फिर से गुप्त होगा,
मध्य में अवसाद का ही क्यों किया सम्मान?
जीवन शाप या वरदान?
पूर्ण भी जीवन करोगे,
हर्ष से क्षण-क्षण भरोगे,
तो न कर दोगे उसे क्या एक दिन बलिदान?
जीवन शाप या वरदान?
बहुत प्राणमय रचना ! वो सब जिन्होंने जीवन को सम्पूर्ण भोगा है......जिनके ह्रदय में स्पंदन जागा है........वो सब जिन्होंने भावों की प्रज्ञा पायी है...... यदि तुम्हारी इस कृति को पढ़ कर अभिभूत न हुए !...... अंतस तक आद्र न हुए !!...... मन प्राण से भीग न गए !!!....तो यही समझूँगी मैंने अभी तक कविता का अर्थ ही नहीं जाना !!!
मेरे जन्मदिन पर आपने....इतने खूबसूरत कमेन्ट से मेरी पोस्ट को नवाजा...शुक्रिया!!मैंने ,हमेशा यही कहा है कि आपके कमेन्ट के बाद मेरी रचना में पढ़ने लायक ...समझने लायक...समझाने लायक कुछ भी शेष नहीं रह जाता .
ReplyDeleteसुधियों के...स्मृतियों के ...यादों के...बंधन से कहीं कोई अपने को मुक्त कर पता है...वर्ष बीतने के साथ ये यादें धूमिल नहीं पड़ती ...और पक्की होती जाती हैं .
एक और अजीब बात है इन यादों की...बीते हुए सुख की यादें भी ...बीते हुए दुःख की स्मृतियाँ भी ....अधिकांशतः दुःख ही देती हैं.
अर्ची दी....आपने जितने मुक्त कंठ से रचना कि प्रशंसा की है.....मेरी जान तो मैं उसकी पात्र नहीं हूँ....पर,तब भी...आपका बहुत आभार...प्रशंसा करने के लिए नहीं..बल्कि मेरी पोस्ट पे टिप्पणी करके ...मुझे जन्मदिन का इतना खूबसूरत उपहार देकर...मेरी रचना को प्राणमय करने के लिए ..
३१ जुलाई का आपका जन्मदिन था यह आपकी टिपण्णी से पता चला.
ReplyDeleteआपके जन्मदिवस की ढेर सी हार्दिक शुभ कामनाएँ और बधाई.
ईश्वर की आप पर सदा कृपा बनी रहे.अपने शुभ चिंतन और लेखन से आप अमूल्य 'निधि' बन ब्लॉग जगत को सैदेव प्रकाशित करती रहें.
आभार.
राकेशजी....आपने मेरी टिप्पणी को इतने ध्यानपूर्वक पढ़ा...उसके लिए ...साथ ही साथ आपने जो शुभकामनायें दी हैं...उनके लिए भी....शुक्रिया.
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