ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, July 9, 2011
मन की आवाज़
आज ,
माँ और कामवाली की बहस सुनते सुनते
एकदम से सब सुनाई देना बंद हो गया
उनके ...मुंह चलते,होंठ हिलते दिखते रहे
सुनाई कुछ नहीं पड़ रहा था
थोड़ी देर बाद महरी बर्तन मांजने लगी
माँ टी.वी देखने लगी .
मुझे ,
कुछ कुछ सुनाई पड़ना शुरू हो गया
देखा माँ के होंठ नहीं हिल रहे
वो टी.वी देखते कुछ सोच रही थी
वो मैं सुन पा रही थी
महरी बर्तन मांज रही थी
उसके मन की बातें भी सुनाई पड़ रही थी
महरी...
पता नहीं क्या समझती है...
हर को हफ्ते में एक छुट्टी
हम एक टेम भी ना आये ..तो आफत
हजारों की शराब पी डालेंगे
सौ रुपिया बढाने को बोलो
तो साली महंगाई है
हम पे चिल्लाती है खाली-पीली
बाकी किसी के आगे जबान नहीं खुलती
साला,सवेरे से उठो..खटो
घर घर जाओ,पैसा कमाओ
तब भी पति की गाली खाओ
ऐश है इसकी..घर में रहती है
टी.वी.कम्पूटर ..देखती है
कोई काम नहीं करती
तब भी पति को सौ नखरे दिखाती है
माँ...
महंगाई बस जैसे
इनके लिए ही बढ़ी है हमारे लिए नहीं
जब देखो छुट्टी ..
काम कम ,सहूलियतें ज्यादा
वैसे ऐश है इसकी
अपना कमाती है
ज़रा सा कोई कुछ कह दे
तो एक छोड़ दूसरा घर पकड़ लेगी
यहाँ ,कोई कुछ कह दे
धमकी के लिए भी यह कहते नहीं बनता
कि छोड़ देंगे.....
छोड़ दिया तो कहाँ जायेंगे ?
हाँ पति की मार खाती है
पर फिर शाम को दोनों बीडी पीते हैं
रात का खाना साथ खाते हैं
स्त्री......??????????????
इस वर्ग की भी परेशान
उस वर्ग की भी परेशान
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
maun kee bhasha bilkul sahi suni ...
ReplyDeleteमन की आवाज़ सटीक सुनाई दी .. घर घर की कहानी ..
ReplyDeletebaht khoob......is varg uss varg........ek si peeda........ummdaa lekhan aur aanklan..:))))<3
ReplyDeleteबिल्कुल सही
ReplyDeleteकहानी घर घर की..
बधाई
रश्मिप्रभा जी...मैंने सही सुनी ...आपने सही समझी .
ReplyDelete...शुक्रिया!!
संगीता जी...मौन की भाषा मैंने ठीक सुनी...चलो,काम आएगा ये हुनर भी आगे ....सच,यह घर घर की कहानी है...त्रासदी ये है कि कोई भी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं है.
ReplyDeleteडिम्पल....आभार!!ये पीड़ा हरेक वर्ग में है ...समस्याओं का स्वरुप कुछ कुछ बदल जाता है..बस!!
ReplyDeleteमहेंद्र जी...धन्यवाद...इस घर घर की कहानी को पढ़ने एवं सराहने के लिए ..
ReplyDeleteमन की जाने वो ज्ञानी
ReplyDeleteआपकी बात हमने मानी
महरी की बात है सच्ची
दोनो की है एक कहानी
आभार
सच्ची बात कह दी……………बहुत शानदार चित्रण्।
ReplyDeleteNIDHI JI EK KATU SATYA.DO ROZ PAHLE HI MERI KAAMWALI NE PAGAR BADHANE KI BAAT KAHI,SUNKAR BADA GUSSA AAYA KI PICHHLE HI BARAS TO USKE KAHE BINA MAINE PAGAR PADAI THI,TAB TO N USNE KAHA THA KI AAP BAHUT ACHHI HAI MALKIN JO SABSE PAHLE AAPNE YE KAAM KIYA,PARANTU AB JAB HUMNE KUCHH AANKHE TARERI USSE PAHLE HI USKI AAGNEY NETRO KO SHIKAR HO GAI,USNE KUCHH KAHNE KO JAISE HI MUNH KHOLA HUM SAMAJH GAI PAGAR BADANE ME HI SAMAJHDARI HAI VARNA KAL HUM HI PIS RAHE HONGE ,CHULHA CHOKE KE SATH JHADOO,PONCHHA ,BARTAN KARTE HUE BAI KI KAMI KO POORA KAR RAHE HONGE.
ReplyDeleteBahut hi kadwa sach hai aaj ke samaj ka.
ReplyDeletePar bahut hi sundar tareeke se varnan kiya hai aaPne...
namaste maidam....sabse pehale humare blog pe aane ke lie bahut bahut dhanybad....mere blog pe aapne puchha tha meri kabita ke bare me ye narajgi kaisi hai...?maidam narajgi kuchh nhi bs kabhi kabhi khud se naraj ho leti hu...jo dusro se naraj hone se kahi jyda achha hai....ab aapki lekini ki bat karti hu.....'''MAN KI AAWAJ''''YAADON KE JALE''''OR BARIS ME BHIGTE HUE HUM''''BAHUT ALAG ANDAJ ME AAPNE APNE DIL KE BHABNAO KO UKERA HAI SABDON ME....lekhani me dum tabhi aate hai jab bhabnaye saccchi ho....or bhabnae jab sacchi ho to lekini me char chand apne aap lag jata hai...behad khubsurat andaj hai aapke lekini ke...saaf saaf sabdon me gehre bichar chhod jate hai aap ki kabitae...or kuchh samay tak man yehi sochta rahta hai ki ...sahi hi to likha hai aapne...bahut bahut dhanybad....
ReplyDeleteनिधि .. आपने बेहद खूबसूरती से जज्बातों को जुबान दी है... यह रचना, जो आपकी आला रचनाओं में से एक है.., इस बात की गवाह है आप बेहद संवेदनशील है और निष्पक्ष है... हर कलमकार के लिए ये ईमानदारी बहुत ज़रूरी है....
ReplyDeleteपहले समझना फिर उसे जुबां देना
'जज्बातों' को हरदम नया जज्बा देना
मिल कर स्याही से और भडकती है
सोचकर जज्बात के शोलों को हवा देना
ललित जी...आपकी सुन्दर सी चार लाइनों की टिप्पणी के लिए ,धन्यवाद!!
ReplyDeleteसुनीला जी...आपने भी बिलकुल सही बात कही...इन लोगों के लिए कितना भि कर लो...यह उसकी कद्र नहीं करते...जब बिना मांगे कुछ मिल जाता है तो उसको हक मानने लगते हैं और कुछ देर बाद अपने अधिकार की बात आगे रख कर फिर मांगने लगते हैं...
ReplyDeleteकुछ अपने लोगों की भी मजबूरी है कि ...अपनी व्यस्तताएं इतनी बढ़ा ली हैं कि घर के काम के लिए वक्त नहीं है और आदत न होने कि वजह से बोझ भी ....
कुछ समय में विदेशों की तरह ...हम लोगों को भी अपने हाथ ही सारे काम निपटाने पड़ेंगे..क्यूंकि काम करने वालों के नखरे न हम सह पाएंगे ..और ना ही उनके मांगे पैसे दे पायेंगे ?
दूसरी ओर ये भी है कि यह लोग भी मेहनत करके कमाते हैं ...कम से कम भीख तो नहीं मांगते ...चूता घर.पीटने वाला पति...रोते बच्चे छोड़ ...हारी-बीमारी ...भूख ...सर्दी गरमी सब सहन कर हमारा काम करने आती हैं
आदित्य....चलो वादे के अनुसार तुम आ गए टिप्पणी करने...यह देख कर अच्छा लगा कि अभी भी लोग अपने वादे रखना जानते हैं
ReplyDeleteशुक्रिया...तहे दिल से,अमित!!हाँ यह मैं मानती हूँ कि मैं अधिकतर मन की आवाज़ पढ़ने की कोशिश करती हूँ..अपनी भी और दूसरे की भी...जितने मौके खुद को देती हूँ उससे कुछ ज्यादा दूसरे को देती हूँ...इसलिए ,मुझे बहुत कम लोग खराब या गलत लगते हैं ...
ReplyDeleteआपके शेर ...बहुत जानदार हैं ...!!
आरती...नमस्ते....मुझे निधि कहो...अच्छा लगेगा .अरे,तुम्हारे ब्लॉग को देखा...रचनाएँ पढ़ी ...अच्छा लगा .
ReplyDeleteवाकई....अपने से नाराज़ होना दूसरों से नाराज़ होने से कहीं बेहतर है ...
आरती,तुम्हें मेरा लिखा अच्छा ,सीधा सच्चा पर गहरा लगा...जान कर मुझे भी अच्छा लगा ...क्यूंकि तुम जैसा खुद लिखने वाला ..अगर यह कहे कि मैंने जो लिखा वो तुम भी सोचती हो ...तो मेरे लिए बड़ी बात है.....तुम्हारा शुक्रिया .......कि तुम ब्लॉग पर आयीं....
बहुत खूबसूरती से अहसास को सजोया है..बधाई.
ReplyDelete_______________
शब्द-शिखर / विश्व जनसंख्या दिवस : बेटियों की टूटती 'आस्था'
Bade karib se apne ek aurat ki byatha ko rakha hi.
ReplyDeletewaise meer hisab se us kam wali ka dard jyada hi.
Sunder prastuti.
Waqt mile to hamare yaha bhi aye...hame badhe aur hamare liye bhi kux kahe.
ReplyDeleteThanx
आकांक्षा ....बधाई स्वीकारती हूँ...आपको अच्छा लगा...शुक्रिया !!
ReplyDeleteरवि जी...शुक्रिया!!आपको प्रस्तुति पसंद आई और आपने अपने विचार रखे ...मैं अवश्य पढूंगी आपकी पोस्ट्स...जल्द ही .
ReplyDeleteआदरणीया मैम
ReplyDeleteआज घूमते घूमते आपके ब्लॉग पर पहली बार आया और बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर.
इस कविता की अंतिम पैरा की पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती है.
-----------------
कल 12/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
जीवन की कटु सत्य को आपने कविता में बखूबी पिरो दिया है।
ReplyDelete------
TOP HINDI BLOGS !
आदरणीय निधि जी जी
ReplyDeleteनमस्कार !
हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसही है.. सबके अपने अपने रोने हैं।
ReplyDeleteयशवंत जी...आभार!!आपको ब्लॉग अच्छा लगा...
ReplyDeleteआपने अपने विचारों से अवगत कराया ...अपना वक्त दिया..नयी पुरानी हलचल में स्थान दिया ...शुक्रिया
ज़ाकिर जी...हाँ, सत्य को कविता में पिरोने का ही काम करती हूँ...
ReplyDeleteसंजय जी...स्वागत है...आपकी शुभकामनायें स्वीकार करते हुए आपको रचना पसंद करने हेतु धन्यवाद संप्रेषित करती हूँ
ReplyDeleteराजे_शा जी..सही कहा इस दुनिया में हरेक के पास आपनी अपनी परेशानी हैं...अपने अपने दुःख हैं...
ReplyDeleteWaah Nidhi......Behad khoobsurat aur shayad har ghar aur har gharelu nari ke jazbaton ko mano tumne lekhni mein utar diya ho....Bahut khoob.....
ReplyDeleteशुक्रिया एम् एस ...आपको अच्छा लगा क्यूंकि ये कुछ अलग था उससे ...जैसा मैं अधिकतर लिखती हूँ
ReplyDeleteडॉ० निधि जी आपकी कविता और सोच दोनों सराहनीय है बधाई और शुभकामनायें |
ReplyDeleteजयकृष्ण जी...बहुत-बहुत आभार,आपका ....रचना को पसंद करने हेतु
ReplyDeleteलाजवाब प्रस्तुति...दोनों की सोच में सच्चाई है...बहुत कमाल की पकड़ है आपकी विषय पर...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
नीरज जी...बधाई स्वीकारती हूँ ...आपको दोनों के चित्रण में सच्चाई लगी ...धन्यवाद !!
ReplyDelete