Thursday, October 24, 2013

वक्त की रफ़्तार



बहुत शैतान है यह वक्त
याद है न
साथ ही तो था यह
जब हम मिले थे
नटखट बच्चे की तरह
भागता ही रहा
न दो पल रुका
न कुछ देर ठहरा
कितना कुछ कहना सुनना
बाक़ी रह गया

अब दूर हैं हम
मिलने की भी दूर तक
कोई सूरत नहीं
तो,वही वक्त
ठहर गया है
थम गया है
उस बुजुर्ग के
गठिये वाले पैर सा
जिससे चला नहीं जाता है.
(प्रकाशित )

14 comments:

  1. सच कहा......वक्त अपनी रफ़्तार बदलता रहता है..

    सुन्दर रचना..

    अनु

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  2. Replies
    1. पसंद करने के लिए...शुक्रिया!

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  3. वक्त नटखट इतना
    काम करू तो वो भागता रहता
    इन्तेजार करू तो रुक जाता
    नई पोस्ट मैं

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।

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  5. हार्दिक धन्यवाद!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

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