तुम नाराज़ हो...
जब तक चाहो
नाराज़ हो लेना
पर,तुम
बस मेरी एक बात सुनना
चुप मत होना
नाराज़ हो
नाराज़गी जताओ
कहो सुनो
कुछ बोलो
जी भर चिल्लाओ.
चीख लो ..
जो मन में है
उसे कह जाओ
बस ...
अंदर ही अंदर मत घुटना
चुप मत होना .
मुझे सब है मंजूर
पर चुप्पी गवारा नहीं
तुम बोलते रहते हो
एक सुकून सा रहता है
जीवन रस बहता रहता है
वरना
जीवन जीना भारी ..
बस ,जैसे
मरने की तैयारी
ज़िंदगी तेरी चुप्पी से हारी .
ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
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बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteसुंदर भाव
कभी कभी ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं
दिली शुक्रिया
Deleteबहुत खूब ... प्रेम हो तो ऐसी चुप्पी को बर्दाश्त करना सच में मुश्किल होता है ...
ReplyDeleteमन के भाव लिख दिए आपने ...
धन्यवाद !
Deleteखूबसूरती से लिखे एहसास ।
ReplyDeleteशुक्रिया!
Deleteसही कहा आपनी नारजगी बोलकर जताओ पर खामोश मत रहो .. क्या पता नारजगी ही खत्म हो जाए.....
ReplyDeleteबहु त सुन्दर
आभार!
Deleteकमाल है!
ReplyDeleteचुन-चुन कर शब्दों का आपने प्रयोग किया और क्या सुंदर संदेश देती रचना है यह!!
लाजवाब!!!
आपकी नवाज़िश है।
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