Tuesday, September 24, 2013

ऐसा कर दूँ



उदासी
सर्द है और साथ ही बहुत स्याह .
छोटे छोटे कांटे निकले हैं इसमें
जो तुम्हें चुभते हैं और उसको भी
जो तुम्हारे करीब आना चाहता है .

बहुत नुकीले कोने हैं
तुम्हारी इस चुप्पी के
लगातार ,जिनसे रिसता रहता
बूंद-बूंद दर्द ....चुप-चाप .

एक जो खालीपन सा भर रखा है
तुमने अपने भीतर
वो बहुत आवाज़ करता है ,अक्सर
सिसकियाँ की शक्ल में रात भर.

तुम्हारी ख़ामोशी ....
ख़ामोश होकर भी
कभी ख़ामोश नहीं होती
कितने सवाल करती है
कितने जवाब देती है .

मन होता है कि सुन सकूँ...
तुम्हारी चुप्पियों को .
काश,मैं पढ़ सकूँ
तुम्हारी इन खामोशियों को .
सहला सकूँ तुम्हारी उदासियों को ,
निकाल फेंकू सारे कांटे और
भर दूँ प्यार से तुम्हारा रीता मन .
रेत दूँ सारे पैने कोने ,
समतल और चिकना कर दूँ ,
वो सब कुछ.....
..........जो है खुरदुरा ,
तुम्हारे जीवन मे .

6 comments:

  1. बहुत कोमल अहसास...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. कैलाश जी...आभार!

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  3. धीरेन्द्र जी...धन्यवाद!!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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