ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Sunday, October 28, 2012
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कौन जाने ये आख़री ही हो??
ReplyDeleteउसी से पूछना सही है...कि रोयें या खुश हो लें...
अनु
हम्म ..यही उम्मीद है कि आखिरी हो.
Deleteप्रेम जहाँ अपेक्षाएं करने लगता है वहीं उसके हिस्से दुःख आ जाता है ...हमने प्रेम किया ...या हमें किसी का प्रेम मिला ये ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, न कि ये कि किसने हमें कितना प्रेम दिया ....
ReplyDeleteपर फिर भी मन तो कमज़ोर है न ....उम्मीद भी उसी से करता है जिस पर भरोसा हो ......
तूलिका....इस मन के आगे ही तो हार जाते हैं ...हम सब.
Deleteवही प्रेम ,वही प्रश्न .... जीवंत प्रेम
ReplyDeleteजी...वही प्रेम,वही प्रश्न,वही परेशानी
Deleteये प्रेम की कशमकश ना जीने दे और ना मरने दे ....
ReplyDeleteसच्ची अंजू...बड़ी जानलेवा होती है यह कश्मकश
Deleteइसे ज़रा समझना होगा......
ReplyDeleteछोटे-छोटे ठहरावों को मज़िल नहीं समझनी चाहिए, बल्कि उसे उस आखिरी की तलाश का एक हिस्सा माना जाना चाहिए जहाँ वो अब पहुँच चुका है.
यह वैसा ही है जैसे रेडियो पर अपना मनपसन्द स्टेशन ढूढ़ते समय काँटा कई जगह थोड़ा-थोड़ा रुकता है और जब सही वेबलेन्थ मिल जाती है तो ठहर जाता है.
इसलिए रोने की बात तो बिल्कुल नहीं है. बल्कि खुश होना चाहिए कि कितना सफर तय करके कोई तुम तक पहुचा है. उसे ज़रा चाय-पानी पूछो, भजिया-वजिया खिलाओ......ऐसा करो चिकन ही बना लो.......
विमलेन्दु ....सही वेवलेंथ ....अच्छा है.हाँ...कई घाटों का पानी पीने के बाद ...आ ही गया है.मैं शाकाहारी हूँ....इसलिए चिकन का सवाल नहीं..चाय पीती नहीं.....इसलिए भजिया वजिया ठीक है.
Deleteबहुत उम्दा प्रस्तुति,,,,
ReplyDeleteRECENT POST LINK...: खता,,,
शुक्रिया
Deletebahut sundar aur utani hi sundarctippaniyaan:)
ReplyDeleteथैंक्स.
Delete:)
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
इस दुविधा से तुम ही निकालो
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