Sunday, October 28, 2012

क्या करूं?




आगाज़ और अंजाम के बीच
कितनी जगह तुम ठहरे
कितने और प्रेम हुए तुम्हें गहरे
उसका हिसाब कौन देगा ?

मैं पहला...आखिरी प्रेम हूँ
इस बात से खुश हो लूँ
या
बीच के तुम्हारे उन प्यार को सोच
आज मैं रो लूँ....

तुम ही कह दो क्या करूं.....

17 comments:

  1. कौन जाने ये आख़री ही हो??

    उसी से पूछना सही है...कि रोयें या खुश हो लें...

    अनु

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    1. हम्म ..यही उम्मीद है कि आखिरी हो.

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  2. प्रेम जहाँ अपेक्षाएं करने लगता है वहीं उसके हिस्से दुःख आ जाता है ...हमने प्रेम किया ...या हमें किसी का प्रेम मिला ये ज्यादा महत्त्वपूर्ण है, न कि ये कि किसने हमें कितना प्रेम दिया ....
    पर फिर भी मन तो कमज़ोर है न ....उम्मीद भी उसी से करता है जिस पर भरोसा हो ......

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    1. तूलिका....इस मन के आगे ही तो हार जाते हैं ...हम सब.

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  3. वही प्रेम ,वही प्रश्न .... जीवंत प्रेम

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    1. जी...वही प्रेम,वही प्रश्न,वही परेशानी

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  4. ये प्रेम की कशमकश ना जीने दे और ना मरने दे ....

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    1. सच्ची अंजू...बड़ी जानलेवा होती है यह कश्मकश

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  5. इसे ज़रा समझना होगा......

    छोटे-छोटे ठहरावों को मज़िल नहीं समझनी चाहिए, बल्कि उसे उस आखिरी की तलाश का एक हिस्सा माना जाना चाहिए जहाँ वो अब पहुँच चुका है.

    यह वैसा ही है जैसे रेडियो पर अपना मनपसन्द स्टेशन ढूढ़ते समय काँटा कई जगह थोड़ा-थोड़ा रुकता है और जब सही वेबलेन्थ मिल जाती है तो ठहर जाता है.

    इसलिए रोने की बात तो बिल्कुल नहीं है. बल्कि खुश होना चाहिए कि कितना सफर तय करके कोई तुम तक पहुचा है. उसे ज़रा चाय-पानी पूछो, भजिया-वजिया खिलाओ......ऐसा करो चिकन ही बना लो.......

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    1. विमलेन्दु ....सही वेवलेंथ ....अच्छा है.हाँ...कई घाटों का पानी पीने के बाद ...आ ही गया है.मैं शाकाहारी हूँ....इसलिए चिकन का सवाल नहीं..चाय पीती नहीं.....इसलिए भजिया वजिया ठीक है.

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  6. bahut sundar aur utani hi sundarctippaniyaan:)

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  7. इस दुविधा से तुम ही निकालो

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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