Tuesday, October 9, 2012

क्या लगते हैं?



माना कि मैं नहीं हूँ तेरी मंजिल
पर सुनो तो ऐ संगदिल ..
थोड़ी दूर साथ चले चलते हैं .
तुझे खो के जी पाऊं मुमकिन नहीं
तुझे पा सकूँ
ऐसा भी हो सकता नहीं
तो चलो ऐसा कर लेते हैं
तुझे पाने की आरज़ू में जी लेते हैं.
साथ हंसने को हैं बहुत लोग
तुम्हारे-मेरे आस पास
अश्क आयें जो आँखों के आसपास
तब हम एक दूजे के
काँधे को याद कर लेते हैं
मैं एक सवाल पूछूं ...

तुम जवाब दे दो तो जानूँ ..
हम एक दूसरे के क्या लगते हैं??

14 comments:


  1. कुछ तो रिश्ता है..वरना अपना गम कोई गैरों से नहीं बांटता.
    बहुत सुन्दर निधि....
    अनु

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  2. कुछ भी नहीं....
    फिर भी
    सब कुछ....!!

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    1. कुछ न होकर भी सब कुछ

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  3. जीवंत भावनाएं.सुन्दर चित्रांकन,बहुत खूब
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  4. माना कि मैं नहीं हूँ तेरी मंजिल
    पर सुनो तो ऐ संगदिल ..
    थोड़ी दूर साथ चले चलते हैं ...मेरी हिम्मत पर ही सही

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    1. हाँ...बस,किसी सूरत साथ चलो...

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  5. बेहतरीन अभिव्यक्ति , "मेरे क्या लगते हो" आपकी रचना से प्रेरित इस पंक्ति को भविष्य के लिए नोट किया है ! आभार आपका !

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  6. अश्कों के रिश्ते का ...दर्द के रिश्ते का नाम नहीं हुआ अब तक ....रिश्तों के शब्दकोष तलाशे हैं मैंने सारी उम्र

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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