
तुम नाराज़ हो
पता है मुझको
इस नाराजगी के चलते
बात नहीं करते हो मुझसे .
जब नार्मल होता है न
सब कुछ हमारे बीच
तब कितने दिन भी
बात न हो हमारे बीच
मुझे दिल को समझाने में
मशक्कत नहीं करनी पड़ती
पर,
जब जानती हूँ मैं
कि तुम ख़फा हो मुझसे
तो तुम्हारा अबोला परेशान करता है .
तुम न बोलकर भी सारा दिन
बोलते रहते हो मेरे कान में .
तुम आस पास न होकर भी बहुत पास होते हो
ऐसे वक़्त में .
चाहती हूँ...
जितना दूर तुम जाने की कोशिश कर रहे हो
उतनी ही दूरी मैं भी बढ़ा लूँ तुमसे
पर,फासले बढाने की सोचने भर से
तुम्हें अपने और ज़्यादा करीब पाती हूँ .
मन होता है
तुमसे कुछ न कहूँ
तुमसे कुछ न सुनूँ
पर तुम ही तुम गूँजते रहते हो
मेरे बाहर भीतर .
दिल करता है
चिल्ला कर कहूँ
सारी भूल तुम्हारी है
मेरी कोई गलती नहीं
पर ,तुम्हें अफ़सोस करते देखते ही
तेरी मेरी सारी गलतियाँ
न जाने कैसे,न जाने कब
मेरी अपनी हो जाती हैं .
मुझे नहीं पता
तुमसे मैं क्या चाहती हूँ
तुम्हें पास चाहती हूँ या दूर
तुमसे प्यार चाहिए या नफरत भरपूर
लडूँ तुमसे तो मानूँ खुद ही
या तुम्हारे मनाने का मैं इंतज़ार करूँ
तुम्हें परेशान करूं हर रोज़ किसी नयी बात पर
बस यह परखने के लिए कि मेरी परेशानी
तुम्हें परेशान करती है क्या
फिर वही सारे काम करूँ
जो तुम्हें अच्छे लगते हैं
या सनक में वो सब
जिनसे बेहद चिढ है तुम्हें .
मेरा मन क्या चाहता है
मुझे कुछ नहीं पता
तुम्हें क्या मानता है
मुझे ख़ुद नहीं पता
मैं अपना मन नहीं पढ़ पाती
खुद को ही नहीं समझ पाती
तो कहो न
वो जाहिल मन भला तुम्हें कैसे समझेगा
इसलिए,प्लीज़ नाराज़ मत हुआ करो.
कुछ काम,कई बातें...कितनी ही चीज़ें
मैं क्यूँ करती हूँ ...मुझे नहीं पता
बस पता है तो बस इतना
कि प्यार है तुमसे बेइंतिहा .