Wednesday, September 19, 2012

मन्नत






तुम देखना
अबकि बार
जब बस ज़रा धीमे होगी....
उस मोड पर ....
एक पेड है ..बड़ा पुराना सा..
मैंने बांधी है उसपे
अपनी सितारों टंकी
तेरे प्यार सी सुर्ख चुन्नी
कि ...तुम लौट आओगे
शहर में नहीं रम जाओगे .

देखो......कब आओगे???
मन्नत पूरी होती है...होगी
सबके इस यकीं को
कायम रखने के लिए .

वैसे ,उसी मोड पे ....
मैंने देखा है कि
सारे के सारे मवेशी तक
अपना रास्ता भूल जाते हैं.

15 comments:

  1. वाह .. मासूम ही चाहत लिए ...
    वो न आयें ऐसा हो नहीं सकता ... वैसे भी शहर में बस पत्थर ही होते हैं ... दिल तो उनके साथ ही होता है ...

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    1. चाहतों की यह मासूमियत कायम रहे...बस मन्नतें पूरी हो जाएँ.

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  2. aas bandhi rahe ...
    sundar abhivyakti ...

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    1. जी हाँ,उम्मीद कभी नहीं छोडनी चाहिए.

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  3. कुछ ना कह के भी सब कुछ कह डालती है आपकी कविता

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    1. संजय जी.....प्रशंसा हेतु,धन्यवाद!

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  4. बस मन्नतें पूरी हो जाएँ !

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  5. उस मोड़ पे
    सितारों टंकी चुन्नी नहीं
    हसरतें बांधी हैं
    अबकी बार
    जब बस ज़रा धीमे होगी
    उस मोड पर
    नज़र भर देख लेना
    मेरी हसरतों को भी
    तुम्हारे ख्वाबों से कमतर सही
    पर उम्मीदों की
    असंख्य डोरियाँ हैं उनमें
    हर बार भी काटोगे एक डोर
    तो भी बच रहेंगी
    काफी है यही
    मेरे जीने भर को ...

    मैंने
    आँखों के इंतज़ार को भी
    कंदील बना
    टांग रखा है एक शाख पर
    रोशन तो नहीं वो
    तुम्हारे शहर जितनी
    पर उसकी टिमटिमाती लौ
    जीवन देती है मुझे

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    1. तूलिका ............
      जो हसरतें बांधी हैं न,तुमने
      अब उनको
      एक -एक कर टूटते देखना
      सहेजना उनका दर्द
      अपने भीतर ..
      समेटना उनको
      और बिखरना खुद .
      अनगिनत बार की गयी
      टूटने के बाद जुड़ने की कोशिशें
      एक दिन ....तुम्हें दरारों से भर देंगी.
      सहना उस तकलीफ को ,अकेले
      क्यूंकि कुछ अनकहे दर्द
      जीने का सामान हो जाते हैं .

      यूँ भी पीड़ा की आदत हो जाए तो
      उसके बिना जीवन जीवन सा नहीं लगता .

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  6. प्रभावी रचना ... लाजवाब

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  7. इंतज़ार और बस इंतज़ार

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    1. हम्म...प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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