Sunday, September 16, 2012

मन हो रहा है ...




आजकल
बहुत मन हो रहा है
कि काश मैं सिगरेट बन जाऊं .
तुम्हारी कमीज़ की उस जेब में रहूं .
जो तुम्हारे दिल के करीब है.

तुम्हारी उँगलियों में फंसी रहूं
और होठों को छूती रहूं .
तसल्ली इस बात की
कि तुम्हारी टेंशन
तुम्हारी खुशी
हर में ...साथ रही .

मैं जलूं भी तो
इस बात का चैन कि
दम तोड़ा तुम्हारे करीब
तुम्हारे हाथों से राख हुई.

गंध मेरी
मेरे जाने के बाद भी रहे
तुम्हारी उँगलियों में
तुम्हारी साँसों में
तुम्हारे ज़ेहन में ...हमेशा.

काश ......
"आमीन" कहो न.

16 comments:

  1. सिगरेट तो नहीं पर सिगरेट जैसी रहो ... :):) आमीन

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  2. हां खुद दम तोडूँ.....और कहीं न कहीं तुम्हारा भी दम निकले.....
    फूंको...खूब फूंको मुझे......
    :-)

    अनु

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    1. अनु......हाँ.बस इतनी ही चाहत है

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  3. उफ़ ………बच्चे की जान लेंगी क्या :)
    बेहद उम्दा अहसासों को पिरोया है दिल मे उतर गयी ये रचना

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    1. जान लेने का...देने का इरादा है

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  4. itna pyaara khayaal hai samajh nahin aa raha kya kahoon, facebook par comment nahin kar paati par aapko humesha padhit hoon

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    1. क्यूँ कमेन्ट नहीं कर पाती हो ?खैर,पढ़ लेती हो...काफी है मेरे लिए..यूँ साथ बने रहने के लिए,थैंक्स!

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    2. aapko friend request bhej hi nahin paati aapko ek baar inbox main message bhi kiya tha aapka ki reply nahin aaya, aap hi add kar le mujhe apni friend list main

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    3. मेसेज स्पैम में था....तुम्हारे कहने के बाद देखा..मैं भेजती हूँ फ्रेंड रिकुएस्ट

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  5. इसके लिए तो हम कभी आमीन नहीं कहेंगे....प्यार को प्यार के अहसास सी जियो ...कोई वस्तु बन के नहीं ....:))))))

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    1. आप ठीक कह रहे हो..पर,ख्याल तो मन में हर तरह के आते हैं

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  6. दर्द इतना की आँखें नम हो आई, आवाज़ तो न निकली पर खुद के लिए लगा की कोई कह दे .... आमीन !!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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