Friday, December 2, 2011

हरसिंगार




मैं,
आजकल............
रातों में ,
सोती नहीं हूँ .
तुम्हारे साथ ,तुम्हारे पास होती हूँ.
तुम्हें,पता है,न !
रात भर मिल कर......
हम ढेरों बातें करते हैं ...

सारी रात .....
सांसें चढती हैं,
धडकनें बढ़ती हैं .
हरसिंगार की कलियों को
जैसे फूलों में बदलते हैं .

सवेरा होते ही
बिस्तर छोड़ देती हूँ
देखती हूँ कि
तुम पास नहीं हो
नारंगी डंठल वाले
वो सफ़ेद फूल
ज़मीं पर बिखरे पड़े हैं
और ...मेरा बदन
खुशबू से महक रहा है .

35 comments:

  1. वाह वाह

    सुंदर बिंब गढे है।
    भावपूर्ण कविता के लिए आभार

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  2. Nidhi ji
    namaste. mere blog par aakar apni pratikriyan vyakt karne ke liye shukriya...aapki yeh rachna acchi hain...lekin mujhe vishmaran karna hi mushkil hain bahut acchi lagi...ye sach baat hain yaad karna aasan hota hain bhulna hi mushkil hota hain..

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  3. bahut sundar....

    www.poeticprakash.com

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  4. ललित जी...आपका हार्दिक आभार!!

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  5. रश्मिप्रभा जी..इस खुशबू के सदके

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  6. ख्वाब...यूँ ही महकते रहे,बस .अनुपमा

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  7. शीतल जी...अच्छा लगा,मुझे आपके ब्लॉग पर आकर.आप यहाँ आयीं इसके लिए आपका धन्यवाद...साथ ही साथ आपने दो रचनाओं को पढ़ा सराहा एवं टिप्पणी करी ,इस हेतु भी आभारी हूँ .

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  8. प्रकाश जी...तहे दिल से शुक्रिया!!

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  9. खूबसूरत....एहसास...

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  10. ऐसे प्यार की खुशबू सर्वत्र फैले.
    बहुत सुन्दर.. आभार.

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  11. भावो की बेहतरीन अभिवयक्ति.....

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  12. khubsurat bhaavo ki behtreen abhivaykti....

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  13. बहुत सुंदर पंक्तियाँ ....

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  14. कुमार.......थैंक्स!!

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  15. संतोष जी ...पसंद करने के लिए ,धन्यवाद!!

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  16. सुषमा.............आभार!!

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  17. सागर..........साथ बने रहने के लिए ,थैंक्स!!

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  18. मोनिका.......तहे दिल से शुक्रिया .

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  19. वाह ..बेजोड़ भावाभिव्यक्ति...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  20. नीरज जी....हार्दिक धन्यवाद !!

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  21. वो सफ़ेद फूल
    ज़मीं पर बिखरे पड़े हैं
    और ...मेरा बदन
    खुशबू से महक रहा है .
    ....हरसिंगार बहुत ही दिल को आकर्षित कर जाता है ..

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  22. क़त्ल..!!!!!


    ...


    "भर देते हो..
    रूह में खुशबू जैसे..
    रहना मुझमें काबिज़ ऐसे..!!"

    ...

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  23. नवाजिश.................प्रियंका.
    रिश्ते...ऐसे ही होने चाहिए न ..

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  24. संजय जी...मुझे बहुत पसंद है हरसिंगार के फूल

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  25. meri sansen bhi mahak uthi hain Nidhi...bahut sundar.

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  26. देखती हूँ कि
    तुम पास नहीं हो
    नारंगी डंठल वाले
    वो सफ़ेद फूल
    ज़मीं पर बिखरे पड़े हैं
    और ...मेरा बदन
    खुशबू से महक रहा है .
    ....
    बड़े दिन बाद ये खुशबू फिर से अहसासों में आयी है निधि जी इसके लिए आपको ह्रदय से आभार !

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  27. पूरी कविता ही लाजबाब!

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  28. प्रतिभा....शुक्रिया!!आपकी सांसें यूँ ही महके.....सुगंध ही सुगंध हो हमेशा,चहुँ ओर

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  29. आनंद जी....हार्दिक धन्यवाद!!पूरी कविता को पसंद करने हेतु.

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  30. हरसिंगार.......सालों से ये मेरा पसंदीदा बिंब है कविताओं का .......हरसिंगार मे खुद को महसूस करती हूँ ...........रात के आते ही खिल जाना ......खिलते हुए किसी को ना दिखाई देना ........खुश्बू से सारा आलम भर देना .......किसी खास की खुशी के लिए राह मे बिछ जाना ........... निधि मैं सच कहती हूँ ....मानो या ना मानो ...कहीं तो है राह मेरी तुम्हारी एक सी .......१३ फ़रवरी १९९४ को लिखी मेरी एक कविता की शुरुआत कुछ ऐसे हुई है ......

    ज़िंदगी की हर घड़ी
    हर मंज़र, हर ठाँव
    बेकल होकर ढूँढती है
    हरसिंगार की एक छाँव..............

    और अभी १० नवंबर २०११ को लिखी मेरी कविता की कुछ पंक्तियाँ कुछ यूँ है........

    बिछ जाते हैं जब भी मेरे आँगन मे
    हरसिंगार के धवल केसरिया फूल..
    हवा का एक हल्का झोंका ही तो आता है
    तुम समा जाते हो मुझमे खुश्बू बनकर.........

    मेरे हरसिंगार को मान देने का शुक्रिया मेरी जान ..........

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  31. तूलिका...हरसिंगार...और गुलमोहर दो फूल ऐसे हैं जो मुझे बहुत आकर्षित करते हैं ...तुमने जो दो कविता लिखी हैं ...उन्हें पढकर वाकई यह और पुख्ता हो जाता है कि तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई...
    एक बात कहूँ,तुलिका ...अपना ब्लॉग शुरू करो..मैं तुम्हारा लिखा..एक साथ..एक जगह पढ़ना चाहती हूँ...प्लीज्ज्ज्ज्ज्ज़.

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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