ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Sunday, December 25, 2011
यू एस पी
तुम और मैं
दो विपरीत व्यक्तित्व
तब भी चुम्बक की तरह
एक दूजे की ओर खिंचे चले आये...
क्या सच...विपरीतता ही आकर्षण का कारण बनी
या
मेरी जो कमियां हैं वो तुम पूरी कर देते हो
और तुम्हारा अधूरापन मैं भर देती हूँ ..
एक दूसरे के पूरक हो गए हैं हम.
एक दूजे को ... संपूर्ण कर देना ही ..
हमारे इस रिश्ते की यू एस पी है ..है न?!!
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एक दूजे को ... संपूर्ण कर देना ही ..
ReplyDeleteहमारे इस रिश्ते की यू एस पी है ...bilkul
U.S.P. [union of supporting personalities] A good smart thought about life .....thanks.
ReplyDeletewah kya pyara USP hai....
ReplyDeletebahut sundar
रश्मि जी...मुझे तो लगता है ...एक दूसरे को संपूर्ण करना हर रिश्ते की यू एस पी होनी चाहिए
ReplyDeleteuday ji...Thanks for elaborating on the abbreviation and liking the poem,too.
ReplyDeleteप्रकाश...शुक्रिया...पसंद करने के लिए इस यू एस पी को .
ReplyDeleteयू एस पी का फुल फार्म बताए..(बाकी सब समझ में आ गया
ReplyDeleteसुंदर पोस्ट........
मेरे नए पोस्ट के लिए--"काव्यान्जलि"--"बेटी और पेड़"--में click करे
विपरीतता ही आकर्षण का करण है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteधीरेन्द्र जी...ऊपर उदय जी ने फुल फॉर्म बता दिया है...देखिएगा.
ReplyDeleteसंगीता जी..पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
ReplyDeleteवाह! अति सुन्दर यू एस पी.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए शुक्रिया,निधि जी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
'हनुमान लीला भाग-२'पर आपका स्वागत है.
वाह!
ReplyDeleteराकेश जी....धन्यवाद!!.मैं अवश्य आउंगी...आपके ब्लॉग पर .
ReplyDeleteयशवंत...थैंक्स !!
ReplyDeleteसुन्दर सकारात्मक अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसादर बधाई...
सृष्टि का सारा कार्य दो विपरीत गुणों के संतुलन पर आधारित है, इस तथ्य को बड़ी खूबसूरती से आपने शब्दों में बांधा है।
ReplyDeleteसंजय जी..रचना को पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteमहेंद्र जी...रचना आपको पसंद आई...शुक्रिया!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर चित्रण..!!!
ReplyDelete...
"तेरे एक स्पर्श से..
पूर्ण हुई..
जो थाम लो हाथ..
सम्पूर्ण हो जाऊँगी..!!"
...
प्रियंका.. पूर्ण से संपूर्ण हो जाने में ही जीवन की सार्थकता है.
ReplyDelete..बहुत सुंदर और सटीक रचना है ..निधी ..
ReplyDeleteहै अलग बात कि ... ‘घर्षण’ होता है
पर विपरीत वस्तुओं में आकर्षण होता है
शुक्रिया.....अमित.
Deleteविपरीत ध्रुवों का आकर्षण तो यु भी मशहूर है आपने शेर में बता कर और पुख्ता कर दिया
एक दूसरे के पूरक होकर ...एक दूसरे को संपूर्ण कर देना ....प्रेम का चरम है निधि ...इसे महसूस कर चुकी हो ....अभिव्यक्त किया है ....सौभाग्यशाली हो ...बधाई
ReplyDeleteतूलिका.....प्रेम का चरम....कुछ एक खुशनसीबों के हिस्से ही आ पाता है...मन अलमस्त फ़कीर हो जाता है,उसके बाद.बधाई के लिए शुक्रिया !!
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