ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
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मेरी जान...
ReplyDeleteहर बात पे याद आना
बिना किसी कारण याद आना
बेहिसाब याद आना
मैं खुद को भूल जाऊं
बस,इतना याद आना..
............
वाह, वाह , वाह
शब्दों की जादूगरनी हैं आप! क्या खूब लिखती हैं आप ! आपकी पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहता है !
SCORLEO...आपका बहुत बहुत शुक्रिया रचना को पसंद करने हेतु.अच्छा लगा यह जान कर कि मेरा लिखा आप को पढ़ना अच्छा लगता है.
ReplyDelete.....मैं खुद को भूल जाऊं
ReplyDeleteबस,इतना याद आना.
वाह ....यह है पराकाष्ठा
फिर भूलने की बात ही न होगी ...बहुत सुंदर ...!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... भाव और प्रवाह पूर्ण रचना
ReplyDeleteवाह ………क्या इल्तिज़ा है…………बहुत खूब्।
ReplyDeleteप्रेम जी ...शुक्रिया.आपकी पोस्ट पढ़ने अवश्य,आउंगी.
ReplyDeleteवंदना...हाँ, बस इतनी ही चाहत है.
ReplyDeleteअनुपमा...और क्या..भूलने की बात ही न होगी .
ReplyDeleteसंगीता जी...हार्दिक धन्यवाद !!
ReplyDeleteवंदना.....इल्तिजा कुबूल हो जाए ,बस.
ReplyDeleteमैं खुद को भूल जाऊं
ReplyDeleteबस,इतना याद आना.... बहुत खुबसूरत इल्तजा है..... कुबूल जरुर होगी.....
सुषमा.......आमीन!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....मुझे बहुत पसंद आई आपकी कविता..
ReplyDeleteशुभकामनाएं.
बिना किसी कारण याद आना
ReplyDeleteबेहिसाब याद आना
मैं खुद को भूल जाऊं
बस,इतना याद आना.
कुछ शब्दों में गहन अभिव्यक्ति। बहुत उत्क्रष्ट प्रस्तुति...निधि जी
.... व्यस्त होने के कारण काफी दिनों से ब्लॉगजगत को समय नहीं दे पा रहा हूँ ...!
खूबसूरत बयान-ए-अंदाज़..
ReplyDelete...
"याद आते नहीं..
रहते हैं वो..
रूह में जो..!!!"
...
विद्या जी.......आपका आभार
ReplyDeleteसंजय जी...आपके कमेंट्स का मुझे इंतज़ार रहता है क्यूंकि आप काफी समय से साथ बने हुए हैं...आपकी टिपण्णी काफी वक्त बाद पढ़ना ,अच्छा लगा...शुक्रिया!!
ReplyDeleteहाँ सच ही तो है...प्रियंका ,जो रूह में बस जाते हैं वो भला क्यूँकर याद आयेंगे ...खुद में जो समा जाए वो भी कोई भला याद आता है
ReplyDeleteवाह ... याद बनी रहनी चाहिए ,.... चाहे खुद को भूल जाओ पर उन्हें नहीं ... कुआ बात है ...
ReplyDeleteदिगंबर जी...अपने को भूल कर ...संपूर्ण समर्पण ही तो प्रेम की पहली शर्त है
ReplyDeleteनिधि जी ,याद हमारे मन मस्तिष्क में ईश्वर के द्वारा स्थापित एक ऐसा सोफ्टवेयर है जो कभी हमको मुस्कान के पल दे जाता है तो कभी आंसुओं की सौगात| आपने अपनी कविता में उसी याद को एक अलग तरीके से जिया है और जीने की आकांशा की है,,,एक सुंदर हृदयग्राही रचना के लिए बधाई ......!!!!
ReplyDeleteबहुत खूब...........wo jab yaad aaye ....bahut yaad aaye........
ReplyDeletejust too gud!!!!!!!!!yaad aane ki koi wajah n ,koi shart n ho bas yaad aate raho.bahut sahi nidhiji.
ReplyDeleteभावना ....हाँ..बेहिसाब और बेशुमार याद आये .
ReplyDeleteशंकर जी ...इतनी विस्तृत टिप्पणी हेतु धन्यवाद!!यादें..अच्छे पलों की हों या खराब...जिससे जुडी हों उसके करीब पहुंचा देती हैं.
ReplyDeleteजान कुछ ना कुछ लिखवा ही लेती हो ......अजीब ज़बरदस्ती है
ReplyDelete"वक़्त मौसमों के पैराहन बदलता है
तुम्हारी याद का मौसम नही ढलता "
तुम्हारे लेखन मे खुद को महसूस किया है मैने ......पता नहीं क्यों?...पर ऐसा ही है ...
... बहुत उम्दा .. ‘नज़्म’ है ‘निधि’ ....
ReplyDeleteकिये थे साथ मिलकर कुछ वादे
दिलाकर याद वो खुद भूल गया है
अमित....बेहतरीन शेर!!
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया,पसंद करने के लिए .
तूलिका ...देखो न..इसी बहाने तुम कुछ लिखती रहती हो...अब जोर कहो या ज़बरदस्ती ...ऐसा ही है जी ...
ReplyDeleteकुछ लोगों की यादों का मौसम कभी नहीं ढलता ...सच में.