ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
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sunder rachna ...
ReplyDeleteकल्पना अच्छी है, परंतु आँखों से जंगल की तुलना - ये थोड़ा अटपटा लगा। फिर भी सुंदर प्रस्तुति के लिए बधाइयाँ।
ReplyDeletewaah! bhaut hi acchi....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत प्यारी रचना...
अच्छी प्रस्तुति.
ReplyDeleteझील सी गहरी आँखे सुना था
अब जंगल की भूल भुलैय्या
वाह!
सुभानल्लाह
ReplyDeleteसुंदर उपमा..!!!'
ReplyDelete...
"तेरी यादों के जंगले में खोये जाते हैं..
रूह-से-रूह जुड़े कुछ ऐसे नाते हैं..!!"
...
वाह …………॥बहुत ही प्यारी रचना।
ReplyDeleteअद्भुत उपमा ..आँखें जंगल के समान ...अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteउनकी आँखों ही जंगल होँ तो कौन निकलना चाहेगा .... सुन्दर भाव ...
ReplyDeleteअनुपमा...थैंक्स!!
ReplyDeleteनवीन जी..शुक्रिया कि आपने अपने मन का कहा ...यहाँ,जंगल से तुलना ...उनमें खो जाने भटक जाने के कारण की है.मैं,आशा करूंगी कि आप आगे भी ...जो अटपटा लगेगा ,ज़रूर बताएँगे .
ReplyDeleteसुषमा...आभार!!
ReplyDeleteअमृता...तहे दिल से शुक्रिया!!
ReplyDeleteविद्या....धन्यवाद!!
ReplyDeleteराकेश जी..जंगल की भूल भुलैया को पसंद करने हेतु,आभार!!
ReplyDeleteरश्मि जी...:-)))
ReplyDeleteवन्दना ...प्यारी सी टिप्पणी के लिए प्यार भरा धन्यवाद !!
ReplyDeleteसंगीता जी....हार्दिक धन्यवाद,नए बिम्ब को पसंद करने के लिए.
ReplyDeleteदिगंबर जी...सच,कोई बेवाकूफ ही होगा जो निकलना चाहेगा
ReplyDeleteबड़ी उलझन है...
ReplyDeleteकुमार...क्या उलझन है?
ReplyDeleteरूह से रूह का मिलना ...यादों के जंगल में खोना
ReplyDeleteक्या बात है,प्रियंका.
बहुत ही सटीक भाव..बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDelete..इतना उम्दा लिखने के लिए शुक्रिया...निधि जी
संजय जी .....पढ़ने एवं सराहने के लिए आपका शुक्रिया!!
ReplyDeleteइनमें जाने का भी मन करता है
ReplyDeleteडर भी लगता है
कि,
कहीं....
रास्ता ही न भूल जाऊं मैं ...
....
ये है निधि की कविता ...जब निधि अपने रंग में लिखे तो ...वाह !
आनंद जी.....नवाजिश!!
ReplyDeleteऐसे जंगल मे घर बनाने को जी चाहता है मेरी जान .......की तेरी आँखों को चुना है मैने दुनिया देखकर ..........मगर किराया जुटाते जुटाते उम्र तमाम हुई जाती है........होम लोन तो ले लिया है.......दिल गिरवी रख के ...... अब मुहब्बत करके EMI चुका रहे हैं
ReplyDeleteतूलिका...ठीक है ना...मोहब्बत करके EMIचुकाना भी नसीब वालों को ही मिलता है.बहुत ही सुन्दर टिप्पणी ...शुक्रिया!!
Deleteखुबसूरत भाव :)
ReplyDeleteशुक्रिया!!
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