Friday, December 9, 2011

परिणत




इतना असहाय क्यूँ कर देता है प्रेम????
इतना परवश कभी नहीं हुई थी,मैं.
अपना कुछ है ही नहीं
मन ,विचार,संवेदना,भावना
सब तुमसे शुरू तुम पे खतम.

जिधर तुम..
उस ओर रही
उस ओर बही .
मैं ..मैं ही नहीं रही
तुझमें ही व्याप्त होकर
तुझमें ही परिणत हो गयी.

32 comments:

  1. बेहतरीन...प्रेम ही प्रेम बस
    खुबसूरत अंदाज़


    www.poeticprakash.com

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  2. बिल्‍कुल सच ।

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  3. मैं ..मैं ही नहीं रही
    तुझमें ही व्याप्त होकर
    तुझमें ही परिणत हो गयी.

    मन की भावनाओं और कशमकश को सुन्दर शब्द दिए है आपने....अच्छी प्रस्तुति.....निधि जी

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  4. करता है विवश ... पर वहीँ से सत्य के रास्ते खुलने लगते हैं ...

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  5. खूबसूरत..

    ...

    "समर्पण देख तेरा..
    समर्पित हो गयी..
    ह्रदय में बसाते-बसाते..
    तुझमें ही परिणत हो गयी..!!!"


    ...

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  6. बहुत सुन्दर कविता...
    वाकई.... सच्चा प्रेम अंध भक्ति की तरह होता है...
    शुभकामनाएं.

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  7. ये प्रेम की पराकाष्ठा है ... असहाय नहीं है ये स्थिति जीवन है यही ...

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  8. निधि जी '''
    जब प्रेम सच्चा हो तो सभी संवेदनाएं प्रेमी
    पर समाप्त होजाती है,...बेहतरीन पोस्ट,...
    मेरे पोस्ट में आपका इंतजार है,....

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  9. प्रेम में अपना कुछ बचता ही कहाँ है....

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  10. बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

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  11. bhaut khubsurat se prem ko abhivaykt kiya aapne....

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  12. bhaut hi khubsurati se prem ko abhivaykt kiya hai apne...

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  13. tabhi to kahte hain....pyar ki nazar se sab kuchh badla nazar aata hai.

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  14. प्रकाश..प्रेम जहां पहुँच जाए...वो वस्तु स्वयं सुन्दर हो जाती है

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  15. सदा...सच्ची मुच्ची वाला सच

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  16. संजय जी....आपको रचना अच्छी लगी...धन्यवाद .

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  17. रश्मिप्रभा जी..मैं पूर्णतया आपसे सहमत हूँ.

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  18. वंदना...हार्दिक धन्यवाद ,मेरी रचना को शामिल करने हेतु.

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  19. प्रियंका...आभार.
    जो तुमने लिखा है न...बस,वही प्यार है .

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  20. विद्या...थैंक्स !!प्रेम को बस प्रेम रहने दें.............

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  21. महेंद्र जी....थैंक्स!!

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  22. दिगंबर जी...सच,प्रेम की पराकाष्ठा है...द्वैत भाव का समापन .परिणत हो जाना

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  23. धीरेन्द्र जी....सारी परिधि जब प्रेमी से प्रारंभ हो और वहीँ समाप्त हो जाए ..वही प्रेम है

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  24. कुमार...सही कहा ...जब अहम भाव ही शेष न रहे तो कुछ भी अपना कैसे बचेगा ?

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  25. सुषमा.....हार्दिक धन्यवाद!!

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  26. सागर....पसंद करने के लिए शुक्रिया

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  27. अनामिका..प्यार सब बदल देता है...इंसान को,नज़रिए को,नज़र को

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  28. अति सुन्दर ....!!

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  29. पूनम ....थैंक्स !!

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  30. निधि जी ....वाह क्या कहने....!!,इस युग में प्रेम का इस कदर विनम्र समर्पण..? अब ये मत कहियेगा कि प्यार तो प्यार है, इसे कोई और नाम न दो|आपकी समर्पित भावना,आपके बेबाक एवम मौलिक प्रेम की अनवरत धारा को मेरा अभिवादन......!!!!!

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  31. शंकर जी....इस खूबसूरत टिप्पणी हेतु धन्यवाद.प्रेम का तो स्वरुप ही यही है...समर्पण करना ,अपना अहम त्याग देना ही तो सिखला देता है ...प्रेम.

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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