Thursday, December 29, 2011

रोशनी ही रोशनी



तुम....अलग
मैं....अलग.
अलग-अलग होने के बाद भी
कायदे से हम अगर मिल जाएँ...
तो,
विपरीत ध्रुव होने के बाद भी
सही कनेक्शन जुड़ने से
जैसे....
सर्किट पूरा हो जाता है,
बिजली दौडने लगती है.
वैसे ही ..
सब सही हो जता है ...
हमारे बीच.
रोशनी ही रोशनी
मन के अंदर भी ...
और बाहर भी .

18 comments:

  1. तुम....अलग
    मैं....अलग.
    अलग-अलग होने के बाद भी
    कायदे से हम अगर मिल जाएँ...
    तो,
    निधि जी
    कविता बार बार पढने को मजबूर करती है

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  2. रश्मि जी...हाँ,सच में.

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  3. वाह...बहुत बढ़िया..
    nice chemistry..or nice physics:-) ???

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  4. मिलन की रौशनी होना तो लाज़मी है....

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  5. संजय जी...फिर,बहुत दिनों बाद ,आपका कमेन्ट पढ़ने को मिला ..थैंक्स!

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  6. विद्या...दोनों ही हैं...फिजिक्स भी और केमिस्ट्री भी.

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  7. कुमार...सच,लाजमी तो है

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  8. बेहतरीन........आपको नववर्ष की शुभकामनायें

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  9. सुषमा...शुक्रिया...नव वर्ष आपके लिए भी मंगलमय हो!!

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  10. बेहतरीन अभिवयक्ति.....नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.....

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  11. सागर...थैंक्स!!

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  12. रोशनी ही रोशनी
    मन के अंदर भी ...
    और बाहर भी .....
    ....
    दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है

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  13. आनंद जी...दिल किसी भी ख्याल से बहले...बहल जाए ,बस.

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  14. .. बहुत ही electrifying नज़्म है ..निधि .. आप बहुत मौलिक लिखती है ...

    जलाकर ‘दिल’ भी ... ‘रोशनी’ न हुई
    ‘कनेक्शन’ में कोई ‘शार्ट सर्किट’ तो नहीं

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    1. आप के करेंट के जैसे कमेन्ट के लिए शुक्रिया!!,अमित.जांच के लिए किसी इलेक्ट्रीशियन को बुलाईये,वो बताएगा शोर्ट सर्किट के बारे में ...

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  15. बस मिलने की देर है ...
    इसीलिए तो इतना अंधेर है......मगर जान...

    मिलन का कायदा अगर आता
    रोशन अपना जहान हो जाता

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    1. तूलिका.....यह कायदा ही तो जान ले लेता है....सारी उम्र इसी कायदे में ही तो तमाम हुई जाती है.

      तूलिका...चलो न ...साथ मिल कर कायदा ढूँढते हैं...रोशन अपना भी जहां कर लेते हैं

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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