Friday, December 23, 2011

प्रेमांकुर


मेरे मन की
इस बंजर धरा पर ..
प्रेम के अंकुर
फूटे हैं....
पहली बार .
तुम ही कारण हो
इसको बनाने में उर्वरा .
स्नेह रस की वर्षा के बाद
जब-जब चाहत की फसल उगेगी
तुम याद आओगे,बेइंतिहा ....

28 comments:

  1. खुदा करे ये फसल...यूँ ही लहलहाती रहे हमेशा...

    सादर

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  2. कुमार...आमीन !!

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  3. सुन्दर...
    बहुत सुन्दर...

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  4. बहुत सुन्दर और मनभावन...सीधे दिल को छूते शब्द.
    आभार..

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  5. विद्या...पढ़ने एवं पसंद करने हेतु धन्यवाद

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  6. संतोष जी....तहे दिल से शुक्रिया!!

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  7. रश्मि जी...आभार,आपका .

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  8. बेहतरीन और अदभुत अभिवयक्ति....

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  9. वाह ...बहुत ही बढि़या।

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  10. सुषमा...बहुत बहुत धन्यवाद!!

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  11. सदा ....आपका आभार !!

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  12. प्रेम करने और उसके अहसास- दोनों के लिए पहले स्वयं को प्रेम करना होता है। यह जब भी आता है,भीतर से ही आता है।

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  13. कुमार राधारमण जी.............बिलकुल सच कहा ,आपने .

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  14. प्रेमपुर्ण रचना

    साधु-साधु

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  15. शुक्रिया !!अरुण जी

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  16. बहुत सुंदर रचना....

    "काव्यान्जलि"--नई पोस्ट--"बेटी और पेड़"--में click करे

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  17. प्रेम के एहसास में जीना भी तो उनको याद करना ही है ... लाजवाब कविता है ..

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  18. धीरेन्द्र जी...आभार!!जैसे ही समय मिलेगा...ज़रूर आउंगी .

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  19. दिगंबर जी...प्रशंसा हेतु,धन्यवाद !!

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  20. दिल के सुंदर एहसास
    हमेशा की तरह आपकी रचना जानदार और शानदार है।

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    1. हार्दिक धन्यवाद!!

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  21. .. बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ है निधि ...

    .. आपकी रचनायें आपके सुंदर सोच की परिचायक है .. :))

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  22. जब-जब चाहत की फसल उगेगी
    तुम याद आओगे,बेइंतिहा ....

    निधिजी, बेहद खूबसूरत पंक्तियाँ है यह. सच है, पहला प्यार सदेव ही के लिए कैद हो जाता है आत्मा की धरा पर, और उस पर से हमेशा ही दूब की तरह कोमल रंग वाली पत्तियाँ जब लहलहाती है, वो याद जरूर आता है.

    -Shaifali

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    1. ह्म्म्म...बिलकुल ठीक कहा...हमेशा याद आता है....भरपूर याद आता है...बेइंतेहा याद आता है.

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  23. ये प्रेम की फसल बढे और खूब फुले- फले..
    बहुत सुन्दर प्यारी रचना..
    :-)

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

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