Thursday, December 8, 2011

अचानक......



अचानक .......
ज़िंदगी की इस राह पे
चलते-चलते
एक मोड पर
तुम मिल गए ..
जुड गयी तुमसे
बंध गयी तुमसे

अब,
जब भी कोई पूछता है
कि क्या है हमारे बीच
तो ,जवाब देते नहीं बनता


हरेक उस रिश्ते से ऊपर रखती हूँ ,इसे
जिनमें ,मैं जो नहीं हूँ वो दिखाती हूँ
दूसरों के मन मुताबिक ढलती जाती हूँ
क्यूंकि
यही बेनाम सा रिश्ता
जो तेरे मेरे दरमियाँ है
मेरी अस्मिता को सुरक्षित रख
मुझे जीने की वजह देता है .

30 comments:

  1. सुंदर भावाभिव्यक्ति ।

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  2. अनाम रिश्तों के बारे में कुछ बताना मुनासिब भी नहीं, कोई समझता नहीं.... बेवजह बाल की खाल निकल जाती है

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  3. ललित जी...आपका आभार!

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  4. रश्मिप्रभा जी..आपकी सलाह याद रखूंगी

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  5. मेरी अस्मिता को सुरक्षित रख
    मुझे जीने की वजह देता है .

    sunder bhav ..

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  6. अनुपमा...किसी की अस्मिता को आप तभी सुरक्षित रख पायेंगे जब आप उसे बेपनाह चाहें ...

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  7. संगीता जी ...धन्यवाद !!

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  8. बहुत सुन्दर काविश ...
    सामाजिक परिस्थितियां कभी कभी प्यार जैसे मधुर भाव को भी छुपाने को मजबूर करती हैं...
    शुभकामनाएं!!

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  9. बेनामी रिश्ता कभी कब्जी जीवन का संबल बन जाता है ... रिश्तों को संभालना चाहिए ...

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  10. बहुत खूबसूरत रिश्ता है...

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  11. भावों से नाजुक शब्‍द....बेजोड़ भावाभियक्ति....

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  12. यही तो खूबी है रिश्तों की.. इतने नाज़ुक कि हाथ लगाते ही बिखर जाएँ... हर बंधन से परे.. न कोई बाँध पाया है, न कोई बाँध सकता है.. बहुत ही कोमल है यह कविता!!

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  13. आपकी हर रचना बेहद खूबसूरत होती है..इन दिनों निखार और भी निखर रहा है..!!! ढेरों शुभकामनाएँ..!!!

    ...

    "पाया है तुमसे..
    अस्तित्व अपना..
    रखना ह्रदय के समीप..
    देना नाम 'अमूल्य सपना'..!!"

    ...

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  14. Wah!!! Bahut sundar bhav....

    www.poeticprakash.com

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  15. very beautifully written .. and very very sweet post....Nidhi ji

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  16. विद्या...यही तो दुर्भाग्य है कि प्यार अधिकतर हमें अपराधबोध से ग्रसित कर देता है ..क्यूंकि समाज उसे खूबसूरत एहसास की तरह न देख कर ...एक पाप के रूप में देखता है

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  17. दिगंबर जी ...आपने बिलकुल सही कहा रिश्तों को हमेशा संभाल कर रखना चाहिए

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  18. कुमार.........शुक्रिया!!

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  19. सुषमा...शब्द विन्यास और भावों के तारतम्य को पसंद करने हेतु धन्यवाद!!

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  20. सलिल जी...रिश्तों की खूबी यही है..न जाने कब किससे जुड जाते हैं और फिर ताउम्र ....साथ चलते हैं.

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  21. प्रियंका...थैंक्स!!तुम्हारी शुभकामनायें स्वीकार करती हूँ.तुम्हें अच्छा लगा पढकर यह जान कर मुझे अच्छा लगा .

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  22. प्रकाश....हार्दिक धन्यवाद!!

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  23. संजय जी...तहे दिल से शुक्रिया ,आपका.

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  24. मैं आपको आपके लेखन कि वजह से जानता हूँ निधि जी ...और जैसे जैसे आपको पढ़ता गया हूँ आपकी अतुलित गहराई से रूबरू होता गया हूँ ...और हर एक कविता के बाद आपके प्रति मेरे मन में प्रेम श्रद्धा और आदर बढ़ता ही गया है !
    आपके भाव सच में कमाल के हैं हर शब्द छूकर गुजरता है !

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  25. आनंद जी ...आपका बड़प्पन है ...!!मैं तो बस लिखने के लिए लिख देती हूँ..नीम बेहोशी में ..खुद को भी नही पता होता क्यूँ लिखा है..कहाँ से आया ?
    आप के ये शब्द मुझे प्रोत्साहित करने हेतु हैं ..मैं जानती हूँ.

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  26. ... बेहतरीन रचना ... निधि ... :)

    मुकर्रर सबकुछ मुद्दत से मुकद्दर में
    कुछ भी यहाँ ‘अचानक’ नहीं होता

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  27. चला बिहारी ब्लॉगर बनने..शुक्रिया!!कविता को पसंद करने के लिए !!

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  28. अमित...थैंक्स!!बहुत खूबसूरत शेर है...सच्चाई के करीब क्यूंकि सच में मुकद्दर का कुछ पता नहीं होता

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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