ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Wednesday, February 15, 2012
चक्रव्यूह
मेरा दिमाग आजकल दिल पे खूब बिगडता है ..
कहता है..मना करता है ...समझाता है
पुरजोर कोशिश करता है
कि
मैं इस जी के जंजाल में ना पडूँ .
इक बार फंसी तो निकल नहीं पाउंगी
चक्रव्यूह है ये ,अन्दर ही रह जाउंगी
मैं क्या करूँ ..
हैरान हूँ ...मैं अपनी इस हालत पे
कुछ खींच रहा है मुझे अपनी ओर
बस ही नहीं चल रहा ,मेरा....खुद पे
किसी और के हाथ में हो गयी है मेरी डोर.
दिल उतरता जाता है,डूबता जाता है
इश्क के इस दरिया में...
दिमाग अलग खडा मुस्कुराता जाता है ...
मैंने तो मना किया था
अब तुम जानो....तुम्हारा खुदा जाने
कि तुम डूबे ,मरे या पार हुए.
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बेहतरीन गीत...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
थैंक्स!!
Deleteइस चक्रव्यूह में तो दिल गंवाना ही होता है .....डूबना ..मरना ...फिर तरना भी यहीं होता है .....दिल-दिमाग की जद्दोज़हद को खूबसूरती से उकेरा है निधि ...बधाई
ReplyDeleteअब अंदर आ ही गए तो कोई रास्ता भी तो नहीं लौटने का.... डूबेंगे .. पार होंगे
Deleteइश्क़ का दरिया है ... हिम्मत रखिए ... तैर ही जाएंगे ...
ReplyDeleteआपकी दुआ दूर तक साथ निभाएगी
Deleteये इश्क नही आसाँ बस इतना समझ लीजे ………………
ReplyDeleteआ रहा है समझ में, थोडा-थोड़ा...बाक़ी का भी जल्द ही आ जाएगा
Delete"किसी और के हाथ में हो गयी है मेरी डोर."
ReplyDeleteसच कहा आपने। प्रेम चक्रव्यूह ही तो है। हम स्वयं ही किसी के अधीन हो जाते हैं।
सुंदर प्रस्तुति
वो अधीन होना भी तो कितना सुखकारी है
Deleteकिसी और के हाथ में हो गयी है मेरी डोर."बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
ReplyDeleteशुक्रिया!!
Deleteबेहतरीन सुंदर सटीक रचना, बहुत अच्छी प्रस्तुति,
ReplyDeleteMY NEW POST ...कामयाबी...
धीरेन्द्र जी ....थैंक्स!!
Deleteखूबसूरत..
ReplyDelete...
"कोशिश ना करना..
थक जाओगे..
रहना करीब..
रम जाओगे..!!"
...
थैंक्स....!!
Deleteदिल हमेशा दिमाग पे जीतता आया है ... लाजवाब लिखा है ...
ReplyDeleteकुछ लोगों का दिमाग जीतता है ..
ReplyDeleteचक्रव्यूह में ना पड़ो... तो बहुत कुछ जानना अधूरा रह जाता है
ReplyDeleteऔर इश्क तो बिलकुल नहीं आसान
हाँ कुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है
Deleteवो चक्रव्यूह हो या दरिया , दिल के दबाव में अगर उस तरफ खीच भी गए, बेह भी गए तो क्या ? चाहते तो सभी है उसमे डूब या मर जाने को .....दिमाग व्यंग तो करेगा ...खुश कौन होता है किसी को अपनी मन चाही मंजिल पाने पर ?.....दिल अगर नो रिटर्न एक्सिट में भी ले जाता है ...कोई बात नहीं ...वो आपकी मंजिल तक जरूर पहुंचा देगा .....बस दिल का कहा मानिये ..
ReplyDeleteआपकी सलाह का शुक्रिया...नयंक जी. मैं दिल की सुनूंगी और उसका ही कहा मानूंगी .यूँ भी ....मेरे दिल की धडकनें इतनी शिद्दत से अपनी बात मनवा लेती हैं कि मेरे पास दिल की सुनने के अलावा कोई चारा नहीं बचता .
Deleteइस चक्रव्यूह में फंस कर स्वयं को मिटा डालना ही सार्थक है...क्योंकि यह चक्रव्यूह ही तो वस्तुत: हमारा उत्स है...इसको जानने के लिए स्वयं को इस भंवर के सुपुर्द करना बेहद जरुरी है...भंवर ज्यादा देर तक नहीं रहते...
ReplyDeleteआपने बिलकुल दुरुस्त फ़रमाया ....सुपुर्दगी ज़रूरी है....यूँ भी भंवर ज्यादा देर तक नहीं रहते
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