Saturday, February 4, 2012

सारी रात...



सारी रात ...
तेरे आने का इंतज़ार .
मन पे कुहासे की परत चढ़ने लगी है
रात भी गहरी और काली होने लगी है
ठहरी हुई ओस की बूँदें बहने लगी हैं
निराशा से भारी इस रात में क्या करूँ?
तुझे याद करूँ?
मिलन के सपने बुनूं ?
या ..बस,तारे गिनूँ ?

32 comments:

  1. बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......

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    1. खूबसूरत ख्यालों को पसंद करने के लिए...शुक्रिया!!

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  2. //निराशा से भारी इस रात में क्या करूँ?
    तुझे याद करूँ?
    मिलन के सपने बुनूं ?
    या ..बस,तारे गिनूँ ?

    waah... behad khoobsoorat panktiyaan.. :)

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    1. आदित्य....धन्यवाद!!

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  3. there is no need to comment,rather better to feel this poem/sentiment. heart touching.

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    1. आप यूँ ही महसूस कीजिए.

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  4. ख्वाब बुनिए ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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    1. आभार!!ख्वाब बुनती हूँ मिलन के..

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  5. अरे नहीं...तारे गिनिए...वक्त इन्तज़ार का आसानी से कट जाएगा..

    :-)
    सुन्दर रचना.

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  6. विरह में प्रतीक्षा के पल भी यह निर्णय नहीं करने देते कि क्या करें उस पहाड़ से पल को व्यतीत करने के लिए!! छोटी किन्तु गहरी कविता!!

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  7. जानती हो प्रेम मे होना पूजा मे होने जैसा है ...और इंतज़ार मे होना इबादत मे होने जैसा .....बस करती रहो ईष्ट आराधन

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    1. जानती हूँ...इसीलिए अभी तक आराधन में हूँ .

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  8. उनको याद केर के उदासी कहाँ रह जायगी ...
    उनके सपनों को नींद में बुने ...

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  9. ख्वाब बुनना शुरू तो कीजिए..फ़िर और कुछ करने को वक़्त ही नहीं बचेगा..बहुत भावमयी प्रस्तुति..

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    1. ये भी खूब कही,आपने.

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  10. यादों में इबादत बसती है...बस याद कीजिए...छोटी भावपूर्ण कविता!!!हमेशा की तरह प्रभावित करती है।

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    1. तहे दिल से शुक्रिया,आपका.

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    2. तुझे याद करूँ?
      मिलन के सपने बुनूं ?
      या ..बस,तारे गिनूँ ?

      ...या मर जाऊं .जो कि अपने वश का है नहीं काश .जीवन से रिकाल का आप्शन भी देता भगवान !

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    3. रिकाल का ओप्शन देकर भगवान खुद ही फंस जाता..
      काश,मरना अपने बस में होता.

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  11. भावपूर्ण कविता...निधि जी

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    1. आपका हार्दिक धन्यवाद !!

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  12. छुपाते छुपाते बयां हो रही है

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    1. कुछ दास्तानें यूँ ही बयान होती अच्छी लगती हैं

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  13. बहुत सुंदर रचना है .. निधि ..

    एक ‘उम्मीद-ए-चिराग’ जलता है .. कहीं
    ये 'सियाह' रात इतनी भी 'तारीक़' नहीं है

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    1. पोस्ट को सुन्दर शेर से नवाजने के लिए शुक्रिया!!

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  14. मिलन के सपने बुनूं ?
    या ..बस,तारे गिनूँ ? मासूम सी पंक्तियाँ निधि सुन्दर

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    1. मासूम सा थैंक्स....पसंद करने के लिए.

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  15. वो जो आ जाते....तो फिर ये रात ही क्यों होती ऐसी ?
    ये अवसाद गहन सा भला क्यों होता ?
    ये उदासी.....ये सर्द अकेलापन..... ये कुहासा क्यों बिखरता हर सूँ ?
    और ठहरी हुई ओस की बूँद भी न बहती ऐसे !........

    सुनो.....ये जो चुप-सी लगी है मुझको.....
    बेज़ुबानी सी .....
    ये भी मुझको इस तरह न छलनी करती !

    और अब .......
    न कोई तारा हैं....ना ख़्वाब हैं...न याद कोई !
    बस इक ज़र्द सी चादर है......बेख़याली की !
    अब न जीने की वजह ही है.......
    न मरने का सबब बनता है........
    अब तो कुछ साँसों का सफ़र है......जो महज़ जारी है.........

    वो जो आ जाते .......तो फिर ये रात ही क्यों होती ऐसी ?

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    1. दी...आपकी टिप्पणी तो अपने आप में पूरी कविता ही है.आप तो जब भी ,जहां भी कुछ लिख दें वो पोस्ट स्वयं धन्य हो जाती है.
      प्रतीक्षा के पल...उनकी अकथ व्यथा वही जान और समझ सकता है जिसने वो क्षण स्वयं जिए हों .
      अब तो कुछ साँसों का सफ़र है......जो महज़ जारी है......सही भी यही है क्यूंकि जीना मरना अपने हाथ में नहीं है..इसलिए प्यार होने के उपरांत प्रतीक्षा कि वो घड़ियाँ....किश्तों में खुदकुशी का मज़ा देती हैं .

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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