ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, February 4, 2012
सारी रात...
सारी रात ...
तेरे आने का इंतज़ार .
मन पे कुहासे की परत चढ़ने लगी है
रात भी गहरी और काली होने लगी है
ठहरी हुई ओस की बूँदें बहने लगी हैं
निराशा से भारी इस रात में क्या करूँ?
तुझे याद करूँ?
मिलन के सपने बुनूं ?
या ..बस,तारे गिनूँ ?
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बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteखूबसूरत ख्यालों को पसंद करने के लिए...शुक्रिया!!
Delete//निराशा से भारी इस रात में क्या करूँ?
ReplyDeleteतुझे याद करूँ?
मिलन के सपने बुनूं ?
या ..बस,तारे गिनूँ ?
waah... behad khoobsoorat panktiyaan.. :)
आदित्य....धन्यवाद!!
Deletethere is no need to comment,rather better to feel this poem/sentiment. heart touching.
ReplyDeleteआप यूँ ही महसूस कीजिए.
Deleteख्वाब बुनिए ..सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआभार!!ख्वाब बुनती हूँ मिलन के..
Deleteअरे नहीं...तारे गिनिए...वक्त इन्तज़ार का आसानी से कट जाएगा..
ReplyDelete:-)
सुन्दर रचना.
मान ली आपकी बात.
Deleteविरह में प्रतीक्षा के पल भी यह निर्णय नहीं करने देते कि क्या करें उस पहाड़ से पल को व्यतीत करने के लिए!! छोटी किन्तु गहरी कविता!!
ReplyDeleteशुक्रिया!!
Deleteजानती हो प्रेम मे होना पूजा मे होने जैसा है ...और इंतज़ार मे होना इबादत मे होने जैसा .....बस करती रहो ईष्ट आराधन
ReplyDeleteजानती हूँ...इसीलिए अभी तक आराधन में हूँ .
Deleteउनको याद केर के उदासी कहाँ रह जायगी ...
ReplyDeleteउनके सपनों को नींद में बुने ...
जी ठीक कहा,आपने.
Deleteख्वाब बुनना शुरू तो कीजिए..फ़िर और कुछ करने को वक़्त ही नहीं बचेगा..बहुत भावमयी प्रस्तुति..
ReplyDeleteये भी खूब कही,आपने.
Deleteयादों में इबादत बसती है...बस याद कीजिए...छोटी भावपूर्ण कविता!!!हमेशा की तरह प्रभावित करती है।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया,आपका.
Deleteतुझे याद करूँ?
Deleteमिलन के सपने बुनूं ?
या ..बस,तारे गिनूँ ?
...या मर जाऊं .जो कि अपने वश का है नहीं काश .जीवन से रिकाल का आप्शन भी देता भगवान !
रिकाल का ओप्शन देकर भगवान खुद ही फंस जाता..
Deleteकाश,मरना अपने बस में होता.
भावपूर्ण कविता...निधि जी
ReplyDeleteआपका हार्दिक धन्यवाद !!
Deleteछुपाते छुपाते बयां हो रही है
ReplyDeleteकुछ दास्तानें यूँ ही बयान होती अच्छी लगती हैं
Deleteबहुत सुंदर रचना है .. निधि ..
ReplyDeleteएक ‘उम्मीद-ए-चिराग’ जलता है .. कहीं
ये 'सियाह' रात इतनी भी 'तारीक़' नहीं है
पोस्ट को सुन्दर शेर से नवाजने के लिए शुक्रिया!!
Deleteमिलन के सपने बुनूं ?
ReplyDeleteया ..बस,तारे गिनूँ ? मासूम सी पंक्तियाँ निधि सुन्दर
मासूम सा थैंक्स....पसंद करने के लिए.
Deleteवो जो आ जाते....तो फिर ये रात ही क्यों होती ऐसी ?
ReplyDeleteये अवसाद गहन सा भला क्यों होता ?
ये उदासी.....ये सर्द अकेलापन..... ये कुहासा क्यों बिखरता हर सूँ ?
और ठहरी हुई ओस की बूँद भी न बहती ऐसे !........
सुनो.....ये जो चुप-सी लगी है मुझको.....
बेज़ुबानी सी .....
ये भी मुझको इस तरह न छलनी करती !
और अब .......
न कोई तारा हैं....ना ख़्वाब हैं...न याद कोई !
बस इक ज़र्द सी चादर है......बेख़याली की !
अब न जीने की वजह ही है.......
न मरने का सबब बनता है........
अब तो कुछ साँसों का सफ़र है......जो महज़ जारी है.........
वो जो आ जाते .......तो फिर ये रात ही क्यों होती ऐसी ?
दी...आपकी टिप्पणी तो अपने आप में पूरी कविता ही है.आप तो जब भी ,जहां भी कुछ लिख दें वो पोस्ट स्वयं धन्य हो जाती है.
Deleteप्रतीक्षा के पल...उनकी अकथ व्यथा वही जान और समझ सकता है जिसने वो क्षण स्वयं जिए हों .
अब तो कुछ साँसों का सफ़र है......जो महज़ जारी है......सही भी यही है क्यूंकि जीना मरना अपने हाथ में नहीं है..इसलिए प्यार होने के उपरांत प्रतीक्षा कि वो घड़ियाँ....किश्तों में खुदकुशी का मज़ा देती हैं .