ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Tuesday, February 21, 2012
झूठी ..
मेरी सब बातों में सबसे ज्यादा
मेरा सच बोलना,मेरी बेबाकी
तुम्हें पसंद आयी थी ,पर...
आज मैं मान लेती हूँ कि
अब अक्सर झूठ बोलती हूँ मैं
जब कहती हूँ तुमसे ..कि
तुम्हारे किसी और के साथ होने से
मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता
तुमसे मिले कई दिन गुजर जाएँ
तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
तुमसे बात नहीं होती
तो मेरा दिन आराम से गुज़रता है
तुम साथ न भी हो तो मुझे
खालीपन ज़रा सा भी नहीं खलता
काली स्याह उदास रातों में
तुम ख़्वाबों में नहीं आते हो
जब यादों की बदली छाती है मन पे
तो कभी नहीं रुलाते हो
मेरे पास बहुत काम हैं सच्ची ..
तुम्हारी फ़िक्र करने के अलावा
आजकल मुझे सब लोग अच्छे लगते हैं
बस एक तुम्हारे सिवा
"कुछ नहीं" और "पता नहीं"कहती हूँ
तो उसका मतलब वही होता है
तुम परेशां होते हो ,ग़मगीन होते हो
तो मुझे ज़रा भी दर्द नहीं होता
तुम्हारे बगैर..
अपनी कसम खा के कहती हूँ
मैं बहुत खुश रहती हूँ
तुम्हारे मेरे पास ना होने पे भी मैं
बिलकुल नोर्मल जीवन जीती हूँ
मैं फिल्में देखती हूँ,गाने सुनती हूँ
और तुम्हें.. यूँ ही बस भूल जाती हूँ
कभी शराब के नशे में,
और कभी किताबों में
खुद को डुबो कर तुम्हें भी डोब देती हूँ
मेरा कभी भी मन नहीं करता
कि तुम वो तीन लफ्ज़ कहो
नहीं चाहती कि तुम मिलने आओ
और रुक जाओ मेरे कहने भर से
कभी नहीं चाहा कि तुम कहो कि
मैं हर एक काम से ज़रूरी हूँ तुम्हारे लिए
इच्छा ही नहीं हुई कि तुमसे सुनूं
तुम्हारी धडकनों और रूह में हूँ.. मैं
यह जानने का कभी मन नहीं हुआ
कि तुम मुझे चाहते हो कितना
पूछना नहीं चाहती
कि क्या तुम भी उतने ही अकेले हो
मेरे बिना ,जितनी मैं हूँ ,तुम्हारे बिना
सच कहती हूँ .....
झूठी हूँ मैं.....पक्की झूठी !!
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दिल बहलाने को झूठ का सहारा लेना पड़ता है..
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना..
हार्दिक धन्यवाद !!
Deleteआजके इस युग में सभी दुखी है,अपने गम को भुलाने एवमअपनी शान को बनाए रखने के लिए झूठ का सहारा लेते है,..
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना..
कई बार इसका सहारा लेने के अलावा कोई चारा नहीं होता
Deleteनिधि...बेइंतेहा दर्द से सराबोर यह कविता आँखों में आंसूं ले आयी. कभी कभी जिंदगी उस मुकाम पर होती है जब हम झूठे बनने की कोशिश करते है, एकदम पक्के झूठे. दिल में हरदम ख्वाइशे जन्म लेती है और हम उसे छुपाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते.
ReplyDeleteईश्वर से आपके सच के लिए प्रार्थना के साथ...
शैफाली
शैफाली..शुक्रिया,इन पंक्तियों में छुपे दर्द को समझने के लिए...उस व्यक्ति की मनःस्थिति समझने के लिए जिसे अंदर की टूटन को बचाने के लिए ..उपरालू तौर पे ये झूठ बोलने पड़ते हैं.
Deleteस्वयं की मजबूती दिखाने की कोशिश मेन कितना झूठ बोला जाता है इसका भी हिसाब नहीं रहता ... सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहिसाब रखा भी नहीं जा सकता है..........
Deleteझूठ बोला या खुद से कहा नही पता चलता
ReplyDeleteबस एक भरम मे सदा खुद को रखा
क्या खूब कहा...
Deleteक्या कहे निधि मन बहुत उदास है कहने को बहुत कुछ है पर चाहते हुई भी कुछ कह नहीं पा रहे आखिर ऐसा क्यो होता है जिंदगी इतनी मुश्किल क्यो होती है जो चाहो वो क्यो नहीं मिलता ...............कब मिलेगा ..............क्या इस जनम में नहीं ........................
ReplyDeleteकब मिलेगा ...जीना इतना मुश्किल क्यूँ है...इन सवालों का जवाब तो मैं भी ढूंढ रही हूँ
Deleteएक झूठ,एक आडम्बर ही तो जीते हैं हम ...जब प्रेम में होते हैं,अपने दुःख नहीं कहते क्योंकि उसे दुःख न हो,खुशी छोटी सी भी हो उसे हुलस कर बताते हैं,लाख कमी महसूस हो मगर जुबां पर यही लाते हैं...तुम्हारी यादें ही काफी हैं ......सच प्रेम अभिनय करना भी सिखा देता है
ReplyDeleteप्रेम में हो कर अभिनय में भी पारंगत हो जाते हैं...सही विश्लेषण!!झूठ ही जीते हैं..सच!!
DeleteShabdon ke Jooth se kya hota hai .. Man to aaj Bhi sach hi Kahta hai ... Gahri abhiVyakti ...
ReplyDeleteदिगंबर जी .... पसंद करने के लिए हार्दिक धन्यवाद!!
DeleteShabdon ke Jooth se kya hota hai .. Man to aaj Bhi sach hi Kahta hai ... Gahri abhiVyakti ...
ReplyDeleteखुश रहने के आडंबर एकान्त के शीशे मे कितने झूठे दिखाई देते हैं। ...
ReplyDeleteआपने सच कहा....एकांत में सारे आडम्बर हट जाते हैं...और सच ,सामने आ जाता है
Deleteबहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर सटीक रचना के लिए बधाई,.....
ReplyDeleteNEW POST...काव्यांजलि...आज के नेता...
NEW POST...फुहार...हुस्न की बात...
आपका हार्दिक धन्यवाद!!
Deleteअब अक्सर झूठ बोलती हूँ मैं
ReplyDeleteजब कहती हूँ तुमसे ..कि
तुम्हारे किसी और के साथ होने से
मुझे कोई अंतर नहीं पड़ता
तुमसे मिले कई दिन गुजर जाएँ
तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता
तुमसे बात नहीं होती
तो मेरा दिन आराम से गुज़रता है
तुम साथ न भी हो तो मुझे
खालीपन ज़रा सा भी नहीं खलता... और प्रतीक्षा करती हूँ कि तुम इस झूठ पर मुस्कुराकर मेरी बात समझ लो
काश...ऐसा हो जाए...तुम मेरे सारे झूठ पकड़ लो.
Deleteतुमसे बात नहीं होती
ReplyDeleteतो मेरा दिन आराम से गुज़रता है
तुम साथ न भी हो तो मुझे
खालीपन ज़रा सा भी नहीं खलता
......रचना मनभावन है...निधि जी
आपका दिल से धन्यवाद!!
Deleteप्रेम की सरसराहट का यह भी एक तरीका है...जितना हम प्रेमी/प्रेमिका को टालते हैं...भीतर ही भीतर कुछ गहराता जाता है...और एक दिन आंसू फूट पड़ते हैं इंतजार में पत्थराई आंखों से...और...
ReplyDeleteकिसी भी चीज़ को अंदर दबाया जाए तो जब वो बाहर आती है तो वो यकीनन दुगने वेग के साथ ही बाहर आती है
Deletegreat jhuthi great ..... bahut marmik .... sachchha... aur mushkil....jhuth ..
ReplyDeleteब्रजेश...आपने इस झूठ में छिपे मर्म को समझा ...तहे दिल से शुक्रिया!!
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