ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Thursday, February 16, 2012
रिश्ते का नाम
तुम कहते हो
तुम्हारी फ़िक्र न करूँ ...
मैं खुश रहूँ ....
क्या लगते हो तुम मेरे,अब?
जो मैं तुम्हारी परवाह करूं .
मैं क्या करूँ???
तेरे दर्द की सारी लकीरें चल के
सीधी मुझ तक आ जाती हैं.
तेरी आँखों से बह के अश्क
मेरी आँखों में आ जाते हैं .
उदासी जब कभी तुम्हें घेरती है
साथ मुझे भी आगोश में ले लेती है .
तुम्हारी ये जो सारी तकलीफें हैं
मुझमें ही आकर पनाह लेती हैं .
सारे ये जो गम हैं न ,तुम्हारे
मुझमें आकर ठहर जाते हैं.
सब........
बंटता है मेरे-तुम्हारे बीच
चाहा-अनचाहा ,कहा-अनकहा ,सुना-अनसुना .
फिर भी पूछते हो तुम
इस दर्द के रिश्ते का नाम .
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बहुत सुन्दर रचना निधि जी...
ReplyDeleteशुक्रिया!!
Deletebehad bhaavpurn...
ReplyDeleteसारे ये जो गम हैं न ,तुम्हारे
मुझमें आकर ठहर जाते हैं.
shubhkaamnaayen
थैंक्स...पसंद करने के लिए.
Deleteबेहद खूबसूरत..!!!
ReplyDelete...
"तेरा हर दर्द तड़पाता है..
जैसे मेरे दर्द से तुम बिलख जाते हो..
रिश्ते का फंदा भूला देते हैं..
आ..मेरी जां..
दास्ताँ नयी लिखा देते हैं..!!"
...
चलो...यही करते हैं ...नयी दास्ताँ लिखते हैं .
Deleteआपका और उनका रिश्ता है ही अनोखा.
ReplyDeleteदर्द और प्यार का अनूठा संगम.
निधि जी,आप वादे के बाबजूद नहीं आईं हैं.
किस से शिकायत करूँ आपकी ?
शिकायत मत कीजिए...मैं स्वीकारती हूँ ,भूल गयी.पक्का आउंगी.
Deleteनिधि जी बहुत सुन्दर ..जितना सुन्दर मूल भाव ..उतने सुन्दर शब्दों का चयन और गठन....बेहद ख़ूबसूरत रचना!
ReplyDeleteशब्द चयन के साथ-साथ भावों के प्रस्तुतीकरण को पसंद करने के लिए..शुक्रिया !!
Deleteसब........
ReplyDeleteबंटता है मेरे-तुम्हारे बीच
चाहा-अनचाहा ,कहा-अनकहा ,सुना-अनसुना .
फिर भी पूछते हो तुम
इस दर्द के रिश्ते का नाम
.........शब्दों के अर्थ के साथ कविता की सुन्दरता बढ गई ....
पुनः ...आपका आभार!!पसंद करने हेतु .
Deleteबहुत सुंदर शब्दों का संयोजन बधाई
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया!!
Deletebahut sunder...
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद !!
Deleteवाह!!!!!निधि जी ,...बहुत अच्छी प्रस्तुति, सुंदर भाव भरी रचना
ReplyDeleteMY NEW POST ...सम्बोधन...
शुक्रिया!!
Deleteनिधि जी,...आपका फालोवर बन गया हूँ आप भी बने,खुशी होगी,...
ReplyDeleteअवश्य !!
Deleteबहुत से रिश्तों का कोई नाम नहीं होता ... और दर्द का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है ... गहरी रचना ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार!!
Deleteमैं क्या करूँ???
ReplyDeleteतेरे दर्द की सारी लकीरें चल के
सीधी मुझ तक आ जाती हैं.
तेरी आँखों से बह के अश्क
मेरी आँखों में आ जाते हैं .
उदासी जब कभी तुम्हें घेरती है
साथ मुझे भी आगोश में ले लेती है ... इस मन की थाह कोई जानता , कोई नहीं तुम तो सही ...फिर नाम हो न हो क्या फर्क पड़ता है
हम्म्म्म....नाम से कोई फर्क पड़ता है क्या?
Deleteप्रेम में प्रेमी/प्रेमिका की हर दुख-तकलीफ का इको होता है हृदय की गहराई में...
ReplyDeleteसच...दुःख सुख दोनों का ही इको होता है .
Deleteखूबसूरत कविता ,रिश्तों की पड़ताल करती हुई !
ReplyDeleteसीमान्त जी....हार्दिक आभार!!
Deleteनिधि जी ,पहली बार पढ़ा है आपको और ये अफ़सोस हुआ कि अब तक क्यों दूर रही आपसे .......बहुत सुन्दर हृदयस्पर्शी लेखन...अब दूर न रह पाऊँगी ......
ReplyDeleteउम्मीद है आगे भी आपको निराश नहीं करूंगी ...और साथ यूँ ही बना रहेगा .
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