Tuesday, August 25, 2015

अबोला


आजकल तुमसे कह नहीं पाती
दिल की कोई बात
यही वजह सब अनकहा
कागज़ पे ख़ुद चला आता है
मेरे लिखे लफ़्ज़ों में तुम हो
स्याही में घुली हर बात
बहती है खुद को कहती है

पहले तुमसे सब बोल देती थी
रीत जाती थी
अब अंदर ही अंदर घुटती हूँ
भीतर से भरी रहती हूँ
कलम से कागज़ तक का सफ़र
सिर्फ़ तुमसे अपनी कहने का
इक नया तरीका भर है

अबोला...
अच्छा है कई मायनों में
देखो न इसमें भी कुछ न कुछ
पॉज़िटिव ढूंढ लिया मैंने
हर चीज़ में कुछ अच्छा खोजना
तेरी ये बात भूली नहीं अब तक मैं
अब तक तेरी ये बात भूली नहीं मैं।

3 comments:

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मेरी राह के हमसफ़र ....

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