Tuesday, August 11, 2015

दूरियाँ


धीरे धीरे सरकते हुए
पता ही नहीं चला कब
दूरियां इतनी बढ़ गयीं
कि हम दो किनारे हो गये
थोड़ी मेरी खामोशी थी
तो कुछ तेरी चुप्पी भी
दोनों का नतीजा ये हुआ
कि दरमियां फासले हो गये
न मैंने कहा कुछ कभी
न तुम ही कह पाये
दिल में बातें रखने से हुआ यूँ
कि ये हाल हमारे हो गये
महसूस हुई बेरुखी तेरी
तुम्हें भी लगी दूरी सी
जिस बात का डर था
सच वही हादसे सारे हो गए

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 13 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  3. बहुत सुंदर कविता |
    बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......

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सुराग.....

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