ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Wednesday, March 21, 2012
आदतें
एक कश लेते हो
धुंए का छल्ला बना
हवा में उड़ाते हो
क्या उस वक्त कभी...
मेरा अक्स दीखता है धुंए में ????
तुम्हारी उँगलियों के बीच फंसी सिगरेट
निकाल फेंकने को तैयार ,मेरी उंगलियां .
तुम्हारी उँगलियों के बीच जहाँ
मेरी उँगलियां होनी थीं ...
सिगरेट कैसे फंसा लेते हो??
व्हिस्की के घूँट
हलक से नीचे उतारते समय
जीभ को महसूस होती है कड़वाहट
अंदर तक जब जलाती है सनसनाहट
इस सब के बीच मेरे चेहरे की तल्खी
जो केवल तुम्हारे साथ से जाती थी
याद आती है क्या ???
मानो या न मानो पर,
तुम्हारे जिस्म को नुक्सान पहुंचाने वाली
ये सारी आदतें
मेरी रूह पे ....एक आघात सी हैं
मन पे एक निशान सी हैं .
जिस्म से रूह का सफर
तुम कब समझोगे..????
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कल 22/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (संगीता स्वरूप जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
यशवंत...थैंक्स!!
Deleteमर्मस्पर्शी...उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ..
ReplyDeleteअमरेन्द्र जी...बहुत -बहुत आभार!!
Deleteजिस्म से रूह का सफ़र रूह ही करती है
ReplyDeleteजिस्म तो जिस्म तक ही जाएगा..यकीनन.
Deleteरूह का सफर तो रूह से ही होगा
बहुत खूब..........
ReplyDeleteगहन प्रस्तुति...
हार्दिक धन्यवाद!!
Delete्बेहद मार्मिक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया!!
Deletegood one....
ReplyDeletekoi samjhe to....
n samjhe to......!!
बात तो वही है .......कोई समझे तो.
Deleteबहुत शशक्त रचना है आपकी...भावाभिव्यक्ति भी गज़ब की है...शब्दों का चयन अप्रतिम है...मेरी बधाई स्वीकारें...
ReplyDeleteनीरज
आपकी बधाई हेतु धन्यवाद !!!
Deleteबहुत ही बढिया।
ReplyDeleteआभार !!
Deleteबेहतरीन प्रस्तुति काश यह बात हर धूम्रपान या कोई अन्य नशा करने वाला हर इंसान समझ पाता तो क्या बात होती बहुत ही सुंदर एवं सार्थक रचना....
ReplyDeleteकाश...........
Deleteमानो या न मानो पर,
ReplyDeleteतुम्हारे जिस्म को नुक्सान पहुंचाने वाली
ये सारी आदतें
मेरी रूह पे ....एक आघात सी हैं
मन पे एक निशान सी हैं .
जिस्म से रूह का सफर
तुम कब समझोगे..????
KHUBSURAT KHAYAL.
रमाकांत जी....हार्दिक आभार!
Deleteउत्तम भावाभिय्वाक्ति....
ReplyDeleteसादर.
थैंक्स!!
Deleteतुम्हारी इस आदत से रूह तार तार जिस्म हो छलनी जैसे...
ReplyDelete...इस पीड़ा को हर कोई नहीं समझ सकता
वही समझ सकता है ..जिसने भोगा को.
Deleteशुक्रिया !!
ReplyDeleteजिस्म से रूह का सफर
ReplyDeleteतुम कब समझोगे..????
....रूह की पहचान कहाँ रहती है इस नशे के बाद...मन की पीड़ा को व्यक्त करता बहुत उत्कृष्ट शब्द चित्र...शब्दों और भावों का अद्भुत संगम...आभार
जी हाँ...नशे के बाद तो किसी चीज़ की पहचान नहीं रहती
Deleteमानो या न मानो पर,
ReplyDeleteतुम्हारे जिस्म को नुक्सान पहुंचाने वाली
ये सारी आदतें
मेरी रूह पे ....एक आघात सी हैं
मन पे एक निशान सी हैं .
vakai bahut hi prabhvshali rachana hai ....badhai sweekaren Nidhi ji .
बहुत-बहुत आभार,पसंद करने के लिए.
Deleteबहुत ही चिंतनीय रचना..........नि:शब्द करती हुई........
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया!!
Delete
ReplyDelete♥
"जिस्म से रूह का सफर
तुम कब समझोगे..????
"
बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने.
बधाई !
धन्यवाद!!
Delete.
ReplyDelete♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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*चैत्र नवरात्रि और नव संवत २०६९ की हार्दिक बधाई !*
*शुभकामनाएं !*
*मंगलकामनाएं !*
आपको भी नवसंवत्सर की अनेकों बधाई !!
Deleteअंदर तक हिला के रख दिया...मैं आदतों का किस हद तक गुलाम हो गया हूँ...
ReplyDeleteआपने यह स्वीकार तो किया कि आदतों के गुलाम हैं,आप.अच्छी बात है...अब इनसे मुक्त होने के भी सोचिये .
Delete