ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Friday, March 2, 2012
एक सवाल
...एक शख्स
जिसे हर एक पल नज़रें ढूंढती है
जिसके इर्द-गिर्द दुनिया घूमती है
जिसकी एक मुस्कान पे जां न्यौछावर
जिसका एक आंसू बहे तो रो लूँ सागर
हर लम्हा मन में उसकी सलामती की चाह
मांगती हूँ दुआओं में उसकी आसान हो राह
हर पल बस जिसकी हँसी की है कामना
खत्म न हो उसकी खुशियों का खजाना.
पर,
वही ,शख्स
जब किसी और के साथ खुश है
तो,मैं खुश क्यूँ नहीं हो पाती हूँ?
खुद को धिक्कारती हूँ
कि ...
उसकी खुशी चाहने का दम भरती हूँ
तो उसकी खुशियों का क्यूँ गम करती हूँ??
जब तक वो मेरे साथ के साथ जुडी हों
उसकी खुशियों की इच्छा तब ही तक क्यूँ है???
मेरा आप भी समझाता है मुझे
कि प्यार है ....वो दिल में उसके रहेगा
किसी और के साथ होने से प्यार
थोड़े ही आखिरी सांसें लेने लगेगा.
पर,
पता नहीं क्यूँ वो साथ की चाह
वो काश ...
क्यूँ बार-बार उभर आता है?
क्या करूँ ...खुश नहीं हूँ................
पर,सच कहूँ तो खुश होना चाहती हूँ
न जाने क्या रोकता है,मुझे ...
कई दिनों से यह सवाल कौंध रहा है??
कोई उत्तर दिल-दिमाग को नहीं सूझ रहा है .
कोई तो बताए .....
खुश रहने का उपाय.
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पर,
ReplyDeleteवही ,शख्स
जब किसी और के साथ खुश है
तो,मैं खुश क्यूँ नहीं हो पाती हूँ?
खुद को धिक्कारती हूँ
कि ...
उसकी खुशी चाहने का दम भरती हूँ
तो उसकी खुशियों का क्यूँ गम करती हूँ??
जब तक वो मेरे साथ के साथ जुडी हों
उसकी खुशियों की इच्छा तब ही तक क्यूँ है???
मेरा आप भी समझाता है मुझे
कि प्यार है ....वो दिल में उसके रहेगा
किसी और के साथ होने से प्यार
थोड़े ही आखिरी सांसें लेने लगेगा... पर मन की गति मन ही जाने
सच ही तो है..मन की गति मन ही जान सकता है ..समझ सकता है .
Deleteनिधि जी,...
ReplyDeleteमुसीबत पड़ने पर अपना कोई हमदम नही होता,
यह दुनिया है,यहाँ को शरीके गम नही होता!!
बहुत अच्छी प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
NEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
उम्दा शेर......
Deleteआभार,पसंद करने हेतु.
एक सवाल जिन्दगी में अक्सर उठा करते है,
ReplyDeleteजिन्हें ढूडते पाने के लिए,वो मिला नही करते है,......
भाव पुर्ण सुंदर रचना के लिए निधि जी बधाई,...
NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
NEW POST ...फुहार....: फागुन लहराया...
खूबसूरत शेर..
Deleteयह एक धागा है...जो जुड़ा है अनंत की डोर से...
ReplyDeleteप्रेम तो सदैव ही अनंत ही है.
Deleteकुछ सवालों के जवाब देने मुश्किल होते हैं।
ReplyDeleteयह सवाल उन्हीं में से एक है...शायद.
Deleteसवाल में उलझा हुआ मन .. बेहतरीन......
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया! !
Deleteबहुत ही उलझन भरा सवाल है शायद इसका जवाब कोई भी न दे सके...
ReplyDeleteकुछ सवाल ....सवाल ही रह जाते हैं.
Deleteसुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,..
ReplyDeleteNEW POST...फिर से आई होली...
आपकी पोस्ट पे आती हूँ.
Deleteदी..
ReplyDeleteहमे दिल में रख लीजिये..ना कोई प्रश्न..ना कोई तनाव..ना कोई उपाय की आवश्यकता होगी..!!!! वैसे, बहुत खूबसूरती से लिखा है..!!! :-)
अच्छा सुझाव है............गौर करूंगी,इसपे.
Deleteखुश रहने के उपाए तो हमें ही खोजने होते हैं निधि जी! दुविधा और अंतर्द्वद को बखूबी शब्दबद्ध किया है आपने। एक प्रभावी रचना।
ReplyDeleteहम्म ..उम्मीद पे दुनिया कायम है.
Deleteअपेक्षाएं रिश्तों को निस्वार्थ होने से रोकती हैं ......और पीड़ा का स्त्रोत बन जाती हैं ...मर्मस्पर्शी रचना!
ReplyDeleteसरस जी....थैंक्स!!
Deleteनिधि जी होली की शुभकामनायें |अच्छी कविता |
ReplyDeleteशुक्रिया!!आपको भी होली की शुभकामनायें !!
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteराहुल जी...हार्दिक आभार!!
Deleteप्रेम के इंतज़ार में ऐसे कई सवाल मन में हर क्षण जन्म लेते है लेकिन निधि आप जानती ही है इनके जवाब मिलना नामुमकिन है. शायद अगले जन्म में सभी जवाब मिल जाये, बस यही इंतज़ार और चाहत की उम्मीद में खुश रहिये.
ReplyDeleteहोली के पर्व पर आशा है आप प्रेमपूर्ण रहे और खुशियों से भरे रंग अपने ब्लॉग पर बिखेरे.
शुभकामनाओं हेतु धन्यवाद!!इन सवालों का कोई जवाब नहीं है..शैफाली.सारा खेल बस दिल को समझाने तक सीमित है.अगला जन्म.....खुश रहने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है..
Deleteजीवन में उतार चढाव आना लाज़मी हैं .......
ReplyDeleteरंगोत्सव पर आपको सपरिवार बधाई !
सहमत हूँ ,आपसे.बधाई हेतु धन्यवाद!!
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ReplyDeleteबाहर भीतर का द्वंद्व शाश्वत है। जब तक बाहर की अपेक्षाएं,लालसाएं भीतर से मेल न खाएं। खुशियां कहां?
ReplyDeleteबस अपेक्षारहित प्रेम ही खुशी है।
इस द्वंद्व से मुक्ति कहाँ संभव हो पाती है?
Deleteनिधि जी, आपकी इस रचना में सवालों के रूप में प्रेम और समर्पण झलक रहा है, और जिससे प्रेम हो, जिसके प्रति समर्पण हो तो उस पर अपना अधिकार समझ लेना इंसानी फितरत है... अब कौन और कैसे जवाब दे इन प्रश्नों का...
ReplyDeleteएक सुन्दर और भावपूर्ण रचना के लिए स्वीकारें मेरी बधाई...
बड़े दिन बाद,आपको ब्लॉग पर देखा .कई सवालों के जवाब ..कभी नहीं मिलते और वो हमेशा सवाल ही बने रह जाते हैं
Delete... इतनी सुंदर और सच्ची रचना .. मैंने विगत दिनों में नहीं पढ़ी .. ‘निधि’ आपकी बेबाकी और ‘फ़िक्र-ओ-ख्याल’ को सलाम ...
ReplyDeleteबड़ी अब इससे कोई मजबूरी नहीं होती
पूरी होकर भी ख्वाहिश पूरी नहीं होती
दुआए मांगी थी फक़त खातिर जिसके
वो ‘खुश’ है और मुझे खुशी नहीं होती
अमित.....आभार!!
Deleteवाह.....वो खुश है और मुझे खुशी नहीं होती
कुछ सवालों का कोई जवाब नहीं होता ....क्योंकि एक सवाल के साथ नत्थी होते हैं ,बहुत से सवाल | सुंदर कविता ....किसी कि कमी को इशारा करती है | बधाई नहीं कहा जा सकता ..और जवाब कोई मिलता नहीं |
ReplyDeleteदीपक जी.....कुछ प्रश्न हमेशा अनुत्तरित ही रह जाते हैं .
DeleteThis comment has been removed by the author.
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