ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Wednesday, September 28, 2011
मन करता है
बहुत बार मन करता है
कि
सबके बीच रहते हुए भी
मैं,निपट अकेले हो जाऊं .
वक्त से अपने लिए
कुछ क्षण चुरा लाऊँ .
उन पलों में न कोई और बोले
न हाथ धरे,न छुए
पूछे नहीं चुप्पी का कारण कोई
न सवाल जवाब हो कोई .
बस ....
अकेले लेटे हुए मैं
तुम्हारी यादों में
डूबती तरती जाऊं
सब कुछ भूल के
पार उतरती जाऊं
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अकेले लेटे हुए मैं
ReplyDeleteतुम्हारी यादों में
डूबती तरती जाऊं
सब कुछ भूल के
पार उतरती जाऊं....सुन्दर अभिवयक्ति....
सुन्दर अभिव्यक्ति .. अपने से अपनी बातें करने का मन ..
ReplyDeletesab kuch bhool kar paar utar jaun... bahut khoob...aabhar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति……………
ReplyDeleteमाता रानी आपकी सभी मनोकामनाये पूर्ण करें और अपनी भक्ति और शक्ति से आपके ह्रदय मे अपनी ज्योति जगायें…………सबके लिये नवरात्रि शुभ हों
mera bhi mann karta hai:)
ReplyDeleteये पल भी कितना सुहाना होगा .. मैं और उनकी यादें .. लाजवाब लिखा है ..
ReplyDeleteभीड़ में भी सबसे अलग चलना .... सबसे मन की मुलाकात ही नहीं हो सकती
ReplyDeleteसुषमा....अभिव्यक्ति की सुंदरता को सराहने हेतु,आभार .
ReplyDeleteसंगीता जी..कभी कभार...अपने से अपनी बात करना बहुत आवश्यक होता है...नितांत अपने पल..
ReplyDeleteप्रियंका....तहे दिल से शुक्रिया .
ReplyDeleteवंदना....धन्यवाद आपकी शुभकामनाओं हेतु.आपको भी नवरात्रि के पर्व पर ढेरों मंगल कामनाएं
ReplyDeleteमुकेश जी ..आजकल के समय में किसी चीज़ के लिए मन करना भी बड़ी बात है
ReplyDeleteआभार,दिगंबर जी.यकीनन सुहाना होता है .
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी...आपने बिलकुल ठीक कहा है.
ReplyDeleteमेम !
ReplyDeleteनमस्ते !
कविता पढ़ एक गीत याद आ गया '' मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते ...'' वाकई इन्सान इतनी भाग दौड़ भरी जिंदगी में स्वयं के लिए कुछ पल निकालना कहता है . बधाई
सादर
NIDHI Ji,
ReplyDeletePaar utarna kya, ye panktiyan yadi yatharth ho jayein to manushya Vaitarni paar kar jaye!!
Bahut achha likha hai..
नमस्ते....सुनील जी.बहुत बहुत आभार..रचना को पढ़ने एवं प्रतिक्रिया देने हेतु
ReplyDeleteअनुपम....सच्ची बात है ...मनुष्य खुद को खोज ले तो वैतरणी पार कर जाए .शुक्रिया,आपको रचना पसंद आई और आपने टिप्पणी करी .
ReplyDeleteकिसी भी तरह पार तो उतरना ही है, इस संसार महा सागर के भंवरें और मौजों के बीच , कुछ डूबता कुछ तैरते ...चाहे किसी को भूल के या किसी की यादों के सहारे .....!!!
ReplyDeleteनयंक जी...सच है...मुख्य ध्येय तो पार उतरना ही है
ReplyDeletebhaut hi bhaavpurn abhivaykti.....
ReplyDeleteसागर.......शुक्रिया !
ReplyDeleteआपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी उपस्थित है , अद्भुत लेखन
ReplyDeletehttp://madan-saxena.blogspot.in/
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शुक्रिया,सराहने के लिए.
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