Saturday, September 3, 2011

नींद


क्या याद है ...वो अपना बचपन
जब माँ सोती थी ,दोपहर में
तो,जबरन लिटा लेती थी पास में .
वो तो सो जाती थी
पर,जागते रहते थे भाई...मैं और तुम .
उठते थे चुपचाप,बिना कोई आवाज़
फिर भागना,दौड़ना,झूलना,खेलना
इन सब के आगे भला ...
कैसी नींद ,कौन सा सोना?

बड़े हुए..यौवन की मस्ती छायी,
प्यार ने ली अंगडाई ,
प्यार ने खुद ब खुद आंखों से नींद भगायी ,
दिल चुराया किसी ने साथ नींद भी चुराई .

प्यार का जब उतरा बुखार......
जीवन की दौड़ धूप थी
उस में भागते रहने से
थकान तब लगने लगी .
सोने की चाह जागने लगी
काम करके पैसा कमाने में यूँ डूबे
की याद नहीं............
कब नींद पूरी कर के पलंग से हों उतरे .

फिर आया बुढापा ..
अब समय नहीं कटता है
पैसा भी है ,कोई नींद चुराने वाला भी नहीं
खेलने कूदने का भी ज़माना बचा नहीं
पर..................................
अब नींद आती नहीं
पहले मैं दूर उससे भागी
अब वो पास आती नहीं

अब वो शायद एक बार ही आयेगी
हमेशा के लिए सुला जाने
तब तक .....उसका इंतज़ार ...

34 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति है आपकी.

    मृत्यु भी एक गहरी नींद ही है.

    अज्ञान में जीते रहना बेहोशी और नींद के समान ही है.

    प्रभु में श्रद्धा,भक्ति और विश्वास हो ,जप यज्ञ
    और प्रभु समर्पण का सहारा हो तो शारीरिक नींद अड़चन
    नहीं बन पाती है.तब तो मृत्यु की इंतजार भी बेमानी है.
    ऐसा मेरा खुद का अनुभव है.

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  2. दुश्चिंतन से जब मन और बुद्धि 'overactive' हो जाते हैं तभी नींद न आने की परेशानी होती है.सद्साहित्य,सत्संग और नाम जप इस
    'over-activity'पर नियंत्रण करने में सहायक होते हैं,जिससे मन बुद्धि को विश्राम भी मिलता है.बुढ़ापे में इन से सुन्दर साधन कोई और है ही नहीं.

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  3. गहरे उतरते शब्‍दों के साथ बेहतरीन लेखन .. ।

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  4. यही शाश्वत सत्य है और यही ज़िन्दगी है।

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  5. कितना खूबसूरत चित्रण किया है...भाबपूर्ण ...अति सुन्दर ...

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  6. सच्चाई को कहती अच्छी भावपूर्ण रचना ... बचपन में सब ही बच्चे माँ को सोता हुआ देख कर भाग जाया करते हैं खेलने

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  7. बहुत मार्मिक पोस्ट.. और रचना को विस्तृत करता चित्र .... सुन्दर प्रस्तुती....

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  8. मन को छू लेने वाली पोस्ट।

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  9. नीद ,बुढ़ापा ,यौवन .........../
    आपको पहली बार पढ़ा , आपकी अनुभूतियाँ जीवन के प्रति स्पंदन, संवेदना , और लालित्य सहज रूप से मुखर है , बड़ी कुशलता से अपनी अभिव्यक्ति को संचारित करने में सफल हैं ..... बहुत बहुत आदर ,शुभकामनायें ...

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  10. आपने बहुत खूबसूरती से जिंदगी की खूबसूरत तस्वीर की व्याख्या कर दी जो सबकी जिंदगी की यही कहानी है |
    बहुत सुन्दर बहुत खूबसूरत अंदाज़ दोस्त जी |

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  11. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति....

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  12. भावपूर्ण सुंदर प्रस्तुति ...

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  13. राकेश जी...अभी तो फिलहाल मुझे बहुत अच्छी नींद आती है.पर,हाँ,थोड़ी उम्र के बाद जब ऐसी दिक्कत अगर होगी तो मैं आपकी सलाह अवश्य मानूंगी .दुश्चिन्तन ...या कह लीजिये चिंता ही नींद ना आने में सबसे बड़ी बाधक है

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  14. सदा....थैंक्स !!

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  15. वन्दना...हाँ,यही है ज़िंदगी...ना इस पहलू चैन..न उस करवट आराम

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  16. रश्मिप्रभा जी...हार्दिक धन्यवाद !!

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  17. एम् एस...शुक्रिया !!

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  18. संगीता जी...माँ थककर दोपहर में लेटती है...बच्चे उसके झपकी लेने का इंतज़ार करते रहते हैं ..उधम काटने के लिए .

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  19. सुषमा....तहे दिल से शुक्रिया !!

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  20. मनोज जी...पोस्ट ने आपके दिल को छू लिया..जान कर अच्छा लगा .थैंक्स !

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  21. उदय जी...आप ब्लॉग पर आये...आपने रचना पढने और कमेन्ट करने के लिए समय निकाला..मैं आभारी हूँ

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  22. मीनाक्षी...आपने मुझे दोस्त कहा...शुक्रिया.आपको पोस्ट पसंद आई इस हेतु भी धन्यवाद .

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  23. महेश्वरी जी...हार्दिक आभार!!

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  24. दीपक जी...आपके ब्लॉग अपर आने,पढने,पसंद करने,टिप्पणी करने के लिए धन्यवाद

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  25. आदरणीय निधि जी
    नमस्कार !
    बढ़िया बिम्बों से नवाज़ा है आपने इस कविता को.

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  26. nidhi ji.....कविता तो आप बहुत अच्छी लिखती ही हैं..भावुक भी हैं, और उचित शब्दों का सही-सही संयोजन करना भी जानती हैं......पढ़कर मन भाव विभोर हो जाता है|इतनी सुंदर और स्पष्ट अभिव्यक्ति करती रहेंगी तो आपको नींद की कोई समस्या नहीं होगी किसी भी उम्र में.....बधाई स्वीकारें ...!!!

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  27. ‎.. बहुत सुंदर... निधि .. बेहतरीन रचना.. एक बार फिर...

    ख्वाबो को टूटने का डर दे गया
    एक शख्स मुझे जागने का हुनर दे गया

    कुछ ख्वाब मेरी जागती आँखों को बख्श कर
    वो आँधियों में रेत का घर दे गया

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  28. आपके शेर बहुत खूबसूरत हैं..अमित.यह जागने का हुनर भी नसीबवालों को नसीब होता है ..खासतौर पे जब वो कोई देकर गया हो..

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  29. NIDHI :
    "Wo aakhiri neend jivan ko mukammal shakal de jaye gee,
    Jagte hue hamne kya jiya bas uski yaad rah jaye gee,
    Yahan koi bhi nahi rukta es safar mai hamesha ke liye,
    Waqt ke beraham baris mai aahista-aahista wo bhi dhul jaye gee.."
    BRAJESH KUMAR MISHRA

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  30. ब्रजेश..आपने जो लिखा है वो अपने आप में बहुत ही खूबसूरत है..

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  31. अग्निगर्भा अमृताSeptember 13, 2011 at 10:33 PM

    तीसरी क़सम का एक गाना याद करो निधि....

    लड़कपन खेल में खोया

    जवानी नींद भर सोया

    बुढ़ापा देखकर रोया

    इसके साथ ही तुमने लौटा दिया मुझे अपने बचपन की दोपहरों में जब हम मां के सोने के बाद छत पर रखा ताज़ा अचार चुराकर खाते थे....।

    तुम्‍हारी रचना एक नई रचना की प्रेरणा बन सकती है

    तुम वापस बह बहकर आ रही हो...

    मुझे तुम्‍हारे इस कौशल के बारे में तो पता ही नहीं था।

    मैंने तो संस्‍कृत शब्‍दकोश पर काम करने वाली निधि से मुलाकात की थी।

    सुन्‍दर निधि, अति सुन्‍दर।
    बधाई।
    अनुजा

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  32. शुक्रिया.......दी.आपका कहा मैं गंभीरता से लेती हूँ...आपको अच्छा लगा पढ़ आकर,यह जान कर मैं भी प्रसन्न हो गयी.दी,मैं और मेरा भाई भी माँ के सो जाने के बाद खिडकी से निकल कर घूमने निकल जाते थे..माँ को पता नहीं चलता था क्यूंकि दरवाजा बंद ही रहता था..एक बार लौटते में खिडकी के ग्रिल से निकलते वात मेरा सर फंस गया था ...क्या दिन थे!!तितलियाँ पकड़ते थे ,झूला झूलते थे घंटो .

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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