ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Tuesday, September 6, 2011
मैं यह नहीं जानती.....
मैं यह नहीं जानती.....
तुम्हें,कैसा लगता है,मुझसे मिलकर
पर,मैं जब भी तुमसे मिलती हूँ
पास बैठ के बतियाती हूँ
ये वक़्त.....
बादल बन के जैसे उड़ने लगता है
....पानी की तरह बहता जाता है
पारे की बूंदों की तरह फिसलता जाता है .
लाख कोशिशों के बाद भी पकड़ में नहीं आता है .
और आते ही ...न जाने कब
तुम्हारे जाने का वक़्त हो आता है .
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अच्छी भाव पूर्ण प्रस्तुति 'मिलन में वक़्त के सहज गुजर जाने का
ReplyDeleteअहसास कराती हुई'.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
bahut khoobsurat bhav....aabhar
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास
ReplyDeleteआदरणीय निधि जी
ReplyDeleteनमस्कार !
बहुत प्यारा सा ख़याल और निराला सा अंदाज़ ! बहुत सुन्दर !
बहुत सुन्दर ख्याल्।
ReplyDeleteyahi to milan aur virah ka apna alag alg andaj hai ......bahut khubsurti se bayana kiya hai aapne miln ki bhavna ko .badhai
ReplyDeleteaisa hi hota hai...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeletekash !! ye waqt yun hi thahar jata.....
ReplyDeleteराकेश जी..आपका बहुत-बहुत आभार !!
ReplyDeleteप्रियंका....शुक्रिया कि तुमने वक़्त निकाल कर पढ़ा और अपनी प्रतिक्रया दी
ReplyDeleteसंगीता जी...थैंक्स!
ReplyDeleteसंजय जी...आजकल मसरूफ हैं,आप ...ऐसा लगता है..वक़्त निकालने के लिए ...धन्यवाद !
ReplyDeleteवन्दना...शुक्रिया ख्याल को पसंद करने के लिए
ReplyDeleteअमरेन्द्र ...आपकी बधाई स्वीकार करते हुए आप को धन्यवाद देना चाहूंगी रचना को पसंद करने के लिए
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी ...इंतज़ार की घड़ियाँ लम्बी..मिलन का समय कम ही लगता है
ReplyDeleteकैलाश जी....सराहने के लिए आभार!!
ReplyDeleteकुमार...रुकता तो कुछ नहीं है...
ReplyDeleteतेरे इंतज़ार का वक़्त गुज़रता तो है
पर घड़ी -घड़ी ठहर सा क्यूँ जाता है .
प्रतीक्षा के क्षण लम्बे होते हैं ...मिलन हमेशा कम ही लगता है
बहुत ही खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteसुषमा...आपकी नवाजिश है!!
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत....
ReplyDeleteपहली बार हूं आपके ब्लॉग पर...अच्छा लगा..
अपने ब्लाग् को जोड़े यहां से 1 ब्लॉग सबका
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 08 -09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ... फ़ोकट का चन्दन , घिस मेरे नंदन
सोनू...शुक्रिया!!ज़रूर जुडूगी ...शीघ्र ही
ReplyDeleteआपके ब्लॉग तक आने में कुछ समय लगा, खैर अच्छा संसार सजाया है आपने कविताओं का. हृदयस्पर्शी कविताये लिखी है आपने यात्रा जारी रहे शुभकामनाये
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना और सुन्दर शब्द चयन |
ReplyDeleteआशा
कुरुवंश जी....शुक्रिया!!ब्लॉग पर आने ,रचनाओं को पसंद करने के लिए .
ReplyDeleteआशा जी..हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteNidhi :
ReplyDeleteVery real expression through lovely words , I am sure that most of us would have surely passed through this experiance but hardly have the ability to express those feelings in such a beautiful way. Thanks
सच..कैसा लगता होगा ना..वक़्त को ना रोक पाने का मलाल..!!!और साथ होने का एहसास..!!!
ReplyDeleteब्रजेश...आपका आभार की आपको लगा कि मैंने खूबसूरती से भावों को कागज़ पे उतारा है.
ReplyDeleteप्रियंका...बहुत खलता है क्यूंकि जिसे आप चाहें उसके साथ अगर सीमित समय मिले तो वक्त पंख लगा कर उड़ जाता है .
ReplyDelete.. बहुत ही असरदार पंक्तियाँ है ... 'निधि' हमेशा की तरह.... अपनी गज़ल के कुछ अशआर याद आ गए...
ReplyDeleteआके ख्यालो में जब वो मुस्कुराने लगे
जाने क्या क्या फिर हम बतियाने लगे
वक़्त-ए-रुखसत बहुत कठिन था 'अमित' पर
हम बैठे थे कल और वह जाने लगे
शुक्रिया ,आपकी दाद का ,अमित!!आपने भी खूबसूरत शेरो से रंग जमा दिया .
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