Saturday, September 24, 2011

प्रेम की मोहर




तुम आज बहुत याद आ रहे हो...
तुम्हारे प्रेम की मोहर
रंग बदल रही है
शुरू में जो लाल थी
धीरे धीरे...काली..बैगनी..नीली...हरी होती हुई
पीली पड़ रही है ..
अब ,चले आओ ...
मेरे बदन पे ,तुम्हारे प्यार के चिह्न नहीं होते
तो मैं खुद को पहचान नहीं पाती हूँ
लगता है किसी और के जिस्म में फंसी हुई है आत्मा मेरी
आओ न....
प्रेम के इस ब्रह्माण्ड में ...
मेरी आत्मा को तृप्त करके मुक्त करने ..

16 comments:

  1. गज़ब् के भावो का समन्वय्।

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  2. खूबसूरती से लिखे जज़्बात...बहुत प्रभावी प्रस्तुति निधि जी

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  3. अति गहरे भावो को सरल सुन्दर शब्दो में प्रस्तुत कर दिया आपने.....निधि जी

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  4. भावो को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है....

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  5. महेंद्र जी ...वंदना ....संजय जी.........सुषमा...आप सभी का आभार .

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  6. अपने ताज़ा कंटेंट के साथ प्रेम के रंग में पगी सुंदर कविता बधाई डॉ० निधि जी

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  7. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  8. बहुत सुंदर, प्यारे और कोमल एहसास, मन को गुदगुदाते से लगे........

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  9. नयंक पटेलSeptember 28, 2011 at 8:58 AM

    रंग बदल रही है .....पिली पड़ रही है ......
    में खुद को पेहचान नहीं पाती हूँ ......
    क्या टिपण्णी करेंगे ? सब तो साफ़ लब्जों में बयां है
    बस इतनाही, फंसी हुवी आत्मा को मुक्ति मिले , प्रेम के इस ब्रह्माण्ड में
    उन्हें आप ढूंढती है , आपको दिल ढूंढता है
    न अब मंजिल है कोई , न कोई रास्ता है
    अकेले है , चले आओ , जहाँ हो , कहाँ आवाज़ दे उनको कहाँ हो

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  10. जयकृष्ण जी...आपका हार्दिक धन्यवाद !!

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  11. राजेंद्र जी...धन्यवाद !!आपको एवं आपके परिवार को भी नवरात्र पे शुभकामनायें!

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  12. शुक्रिया......अंजू .

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  13. नयंक जी..शुक्रिया!!आपने जो भी लिखा,कहा...मैंने समझ लिया...शुक्रिया!!!

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  14. प्रेम की परिभाषा आपसे बेहतर कौन समझ सकता है..???

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति..!!!

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  15. थैंक्स....प्रियंका !

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

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