ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Friday, September 9, 2011
सफाई पसंद नहीं हूँ
बिस्तर ...
उसपे,सिलवटों से भरी चादर .
चादर सही करती हूँ....
तुम्हें याद करती हूँ.
सख्त नापसंद हैं तुम्हें ,
ये सिलवटें .
फिर यह चादर पे हों
या मेरे चेहरे पर
बिस्तर के सिरहाने के पीछे
दिखे...
ढेरों जले
जल्दी से साफ़ किये
तुम्हें नहीं पसंद
ये जाले दीवारों पे हों
या यादों के जाले मन पर .
मुझे ये सिलवटें भी पसंद हैं
और वो भी ...
जो तुम्हारें माथे पे पड़ती हैं.
मुझे ये जाले भी पसंद हैं
और तुम्हारी यादों के जाले भी
जिनसे घिरी हुईं हूँ मैं .
मैं सफाई पसंद नहीं हूँ न ,तुम्हारी तरह.
कि पिछला सब धो पोंछ कर हटा पाऊं
घर से भी और मन से भी .
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अंतर्मन की भावना कहने में सफल आपकी कविता . अच्छे शब्दों का प्रयोग बधाई
ReplyDeleteमन की भावनाओं को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों में पिरो दिया आपने.... बहुत खूब....
ReplyDeleteपिछला सब धोकर साफ़ कर देना इतना आसान नहीं होता ,मगर ऐसा करना तो चाहिए ...
ReplyDeleteसलवटों के साथ जीवन स्वयं अपने लिए और दूसरों के लिए दुखदाई हो जाता है , ये जीवन एक बार ही मिलता है , रोने पिटने के लिए नहीं !
फिर भी आपने बड़ी साफगोई से अपनी बात कही ...
आभार!
कुरुवंश....बधाई स्वीकार करते हुए आपको धन्यवाद देती हूँ ..मेरा उत्साह वर्धन के लिए
ReplyDeleteसुषमा ...थैंक्स .
ReplyDeleteवाणी जी..आपने बिलकुल सही कहा की पिछला धोना आसान नहीं होता पर करना चाहिए...मुझे लगता है हरेक अपने स्तर पे कोशिश अवश्य करता है ...यह और बात है की उसमें सफल कितने होते हैं...मेरी साफगोई को पसंद करने हेतु आभार .
ReplyDeleteनारी मन की भावनाओ का बहुत खूबसूरत चित्रण किया है।
ReplyDeleteमन कि भावनाओं का खूबसूरती से चित्रण किया है
ReplyDeleteshabdon mein bhawon mein koi silwat nahin ... bahut hi badhiyaa
ReplyDeleteमन की बेचैनी को बहुत खूबसूरती से ब्यान किया
ReplyDeleteशनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....और अपने अमूल्य विचार भी दें ..आभार.
ReplyDeleteनारी मन से निकली भावनाएं ...खूबसूरती से लिखी हैं ..अच्छी प्रस्तुति....निधि जी
ReplyDeleteमन के भावों को बहुत खूबसूरत शब्द दिये हैं। बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebahut khoob nidhi ji....
ReplyDeleteNidhi :
ReplyDeleteOne thing is very sure that you have a great level of sensitivity and you simply don't jubmle the words, atleast.
A great way of expression by connecting two different real life incidents.
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता ....
ReplyDeleteघर और मन की सफाई के बहाने आपकी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअंतर्मन की गहनता का अहसास कराती है.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार निधि जी.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.
नई पोस्ट जारी की है.
वंदना...नारी का मन बड़ा विचित्र है...हैं न?
ReplyDeleteसंगीता जी...मन तो बड़ा ही जुल्मी होता है..न इस तरह चैन लेने देता है न उस तरह
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी..इस हौसला अफजाई के लिए आभार!!
ReplyDeleteअनु..मन बेचैन होता है तो क्या क्या नहीं करना पड़ता उसके चैन के लिए'
ReplyDeleteअनुपमा जी...थैंक्स!!
ReplyDeleteसंजय जी...बहुत बहुत आभार!!
ReplyDeleteकैलाश जी...तहे दिल से आपका शुक्रिया..!!
ReplyDeleteब्रजेश..आपसे क्या कहूँ...मैं जो भी लिख दूं आप इतनी प्रशंसा करते हैं कि धन्यवाद कहते भी नहीं बन पड़ता है..शर्मिंदगी सी होती है ..समझ नहीं आता क्या कहूँ ?
ReplyDeleteप्रियंका...आभारी हूँ !
ReplyDeleteशरद जी..आप पहली बार मेरे ब्लॉग पर आयीं...मेरी और से धन्यवाद स्वीकारें ..आशा है कि हमारा साथ आगे भी यूँ ही बना रहेगा
ReplyDeleteराकेश जी..मैं अवश्य आऊँगी..आपके ब्लॉग पर.
ReplyDeleteबहुत खूब ... यादों को साफ़ करना ... दिल से मिटाना आसान नहीं होता ...
ReplyDeleteदिगंबर जी...यही काम तो सबसे मुश्किल होता है..यादों से पीछा छुडाना ..अच्छा हो कुछ तो भी यादें आती हैं..खराब हो तो भी चली आती हैं
ReplyDeleteअंकित जी..पहली बार आने के लिए धन्यवाद.रचना आपको पसंद आई..आपने अपनी प्रतिक्रया व्यक्त की मैं ,आभारी हूँ
ReplyDeleteबहुत उम्दा प्रस्तुति!! एक कोशिश ही तो है जो हमारे हाथ में है...
ReplyDeleteउड़न तश्तरी जी..आभार.सही कहा,आपने..कोशिश करना तो सदैव हम इंसानों के हाथ ही होता है
ReplyDelete.. बेहद सफाई से आपने अपनी बात रखी है .. निधि ..... खूबसूरत रचना से रूबरू कराने के लिए .. आभार ...
ReplyDeleteमैल लेकर मन में बहुत साफगोई से
हर बात पर वो मुझसे सफाई मांगते है
बहुत सुन्दर निधि।
ReplyDeleteतुम्हारी अनुभूति छलक रही है.....।
कविता को जैसा होना चाहिए.....बिल्कुल वैसी है....।
बधाई।
aapki har ek kabita me ek gehre bhabw chhupe hote hai or main padh ke bas itna hi sochti hu ki aap kitni sehjta se kitne gehre bichar ko kitni aasani se panno pe utar deti hai...bahut khubsurat rachna hai aapki...kash aap mere facebook frnd me hoti....to main roj aapke activitis ko jan pati....
ReplyDeleteदी............शुक्रिया.आपके हरेक कमेन्ट के मेरे लिए मायने हैं..इंतज़ार करती हूँ की ...खुले दिल से कोई सच्चाई बताए...अच्छा लगा तो भी बोले .......खराब लगे तो ज्यादा जोर से बोले और मेरी कमी सुधारवा दे.
ReplyDeleteअमित...थैंक्स!!आपने भी खूब कहा...वैसे सच ही तो है हम सभी बाहर की सफाई पे इतना ध्यान देते हैं ह्रदय की कलुषता को मांज कर साफ़ करने की चेष्टा नहीं करते
ReplyDeleteआरती.पोस्ट पढ़ने और उसपे इतने विस्तार से टिप्पणी करने के लिए शुक्रिया .......मुझे बहुत अच्छा लगा जान कर की तुमने मुझे अपना दोस्त बनाने की इच्छा जाहिर की...
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