Saturday, July 16, 2011

सूरज से लगते हो ..

मैंने,आज जो तुमसे कहा
कि ,
तुम मुझे सूरज से लगते हो
तो तुम जोर से हँसे
और लगे पूछने
कि,
तुम्हारा गुस्सा देख कर
मैंने यह तुलना की है क्या?

नहीं..........
ऎसी कोई बात नहीं
तुम मुझे सूरज से इसलिए लगते हो
क्यूंकि
सूरज को लगातार देखने के बाद
और कुछ देखा नहीं जाता .
सब ओर अँधेरा छा  जाता है .
ठीक उसी तरह
तुम्हें देखने के बाद
चहुँ ओर सब धुंधला सा जाता है
तुम्हारे अलावा कुछ नज़र नहीं आता है.

19 comments:

  1. sundar....prem se sarabore....komal bhav....

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  2. कुमारजी....आपका तहे दिल से शुक्रिया !!

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  3. शानदार !
    बहुत ही प्यारी और सुन्दर भावना है !
    पढ़ के दिल खुश हो गया !
    गज़ब की तुलना की है आपने !
    और इस रचना के साथ चित्र इसकी जीवन्तता को बढ़ा रहा है !

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  4. आदरणीय निधि जी जी
    नमस्कार !
    कविता बहुत पसंद आयी है,
    जिसे आपने प्रभावशाली शब्दों में बांधा है......!

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  5. बेहद खूबसूरत .... आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, शब्दों से मन झंझावत से भर जाता है यही तो है कलम का जादू बधाई

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  6. बहुत ही प्‍यारा कारण दिया है...

    इस सुंदर रचना के लिए बधाई।
    ------
    जीवन का सूत्र...
    NO French Kissing Please!

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  7. Sundar hai nidhi ! :-) bahut sundar bhaav . :-)

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  8. आदित्य....थैंक्स!! कि तुमने रचना तो पसंद की ही साथ ही साथ चित्र को भी पसंद किया .

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  9. संजय जी..आपको मेरी रचनाओं का इंतज़ार रहता है मुझे आपकी प्रतिक्रिया का...हार्दिक आभार!!

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  10. ज़ाकिर अली....आपको कारण अच्छा लगा...धन्यवाद!!यह जीवन का सूत्र क्या है..?????

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  11. यशवंत जी....शुक्रिया...मैं अवश्य पधारूंगी ...

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  12. बाबुषा....ज़र्रानवाज़ी !!

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  13. क्या भाव है, बिल्कुल सच।
    सुंदर रचना

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  14. महेंद्र जी.....शुक्रिया !!

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  15. निधि .. बेहद असरदार तरीके से आपने सूरज को रौशनी दिखाई है..
    .
    लौटते है तब मेरे 'चूल्हा-ओ-चिराग' जलते है
    मानिंद सूरज के घर से जब रोज निकलते है

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  16. अमित ...आप पे भी सूरज की रोशनी का असर हो गया ..चलिए ,अच्छा है.

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  17. मीरा के कथा में एक प्रसंग आता है , जहां उनके पति राणा भोज राज उनसे क्षुब्ध हैं....मीरा के पूछने पर वे कहते हैं ..." मीरा बड़ी लज्जा का अनुभव होता है जब हमारे ही राज्य के लोग ये लांछन लगाते हैं कि आप पराये पुरुषों से बात करतीं हैं !!! "............मीरा ( जो मंदिरो में अपने कान्हा के भजन गातीं थीं....नाचतीं थीं...छोटे बड़े कुल के लोगों के साथ, और अनेक कृष्ण भक्तों के साथ भक्ति चर्चा करतीं थीं ..........जो संत रविदास के पास शिष्य भाव से जातीं थीं........ और जिनका भजन सुनने के लिए बादशाह अकबर स्वयं तानसेन को लेकर छद्म वेश में चितौड़ आये थे ) इस बात से तनिक भी विचलित नहीं हुईं ....अपितु उन्होंने बड़े ही सरल भाव से उत्तर दिया " राणा जी ! इस संपूर्ण विश्व में मेरे कृष्ण के सिवा कोई दूसरा पुरुष भी है क्या ?.... मुझे नहीं पता !!! " ...........
    प्रेम का सारा दर्शन ही यही है !.........वो जिसे ये ह्रदय वर लेता है...... जिसे ये आत्मा अपना सर्वस्व मान लेती है....... जिसके आगे ये मन स्वतः झुक जाता है ......वो जिसे हम शबरी की तरह अपना सबसे मधुरतम...सुन्दरतम समर्पित कर निहाल हो जाते हैं !....... वो जब हमारी संज्ञा पर छा जाता है......तब अन्य सब छुप जाते हैं !!!.......ठीक वैसे ही जैसे सूर्य का ज्वलंत ज्योतिर्मय तेज हमारी दृष्टि को चका चौंध कर देता है ........और फिर उसके आगे हमें और कुछ भी नहीं दिखाई देता .........अपना आप भी नहीं !!!
    प्रीति भक्ति की परिणिति है .......वहाँ तर्क का ....ज्ञान का.....कोई स्वर नहीं होता ........वहाँ केवल अनुराग का अनहद नाद होता है !...
    प्रेम अद्वैत भाव है !......जहां सिर्फ़ प्रिय रह जाता है !!!........उसके होने का भाव सूर्य की प्रचंड अग्नि सा पूरी सृष्टि को वशीभूत कर लेता है !......हमारी प्रज्ञा ...सोच .... मन .....प्राण....आत्मा ....हमारा सर्वस्व, ठीक वैसे ही सम्मोहित हो जाते हैं जैसे बहुत तेज प्रकाश के आगे कोई खरगोश टकटकी बाँध...अप्रतिभ ...विस्मित सा बैठ जाता है !!!
    मोमिन खान मोमिन ने सचमुच बहुत ही कमाल का शेर कहा था ( कोई हैरत नहीं की मिर्ज़ा ग़ालिब अपना पूरा दीवान इस शेर के बदले में देने को तैयार हो गए )....
    " तुम मेरे पास होते हो गोया
    जब कोई दूसरा नहीं होता !!!"

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  18. अर्ची दी.... एक लव्ड इट का....बटन होना ही चाहिए...
    दी....मेरी ब्लॉग पोस्ट पर जब तक आपका कमेन्ट नहीं हो....वो अधूरी हीरह जाती है ...उसके सारे अर्थ...मायने ...आयाम....जब तक आपकी लेखनी के जादू से बचे रहते हैं...सामने नहीं आते .
    आप जब मेरी पोस्ट की इतनी तन्मयता से व्याख्या करती हैं...तो,मुझे लगता है कि जो भी कहीं मुझसे कहना छूट गया होगा...या मैं समझा नहीं पायी होउंगी ...वो आपका लिखा पढ़ कर...सब समझ जायेंगे .
    दी...आपका प्यार यूँ ही मुझ पर बना रहे...हमेशा !!

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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