Monday, December 2, 2013

अनकहा

मैं कुछ भी कहूँ
कैसे भी कहूँ
तुम्हें अखरता है .
मेरी हर बात में
आजकल कुछ
तुम्हें खलता है
मैं चुप रहूं अगर
तो  गुस्साते हो
कि बोलती क्यूँ नहीं
कुछ कह दूँ अगर
तो तमक जाते हो
कि कहना ज़रूरी नहीं .
पसोपेश में हूँ करूं तो क्या करूं
शांत रहूं
चुप रहूं
कुछ पूछूँ
कुछ कहूँ
या करूं इंतज़ार ...कुछ रोज़ .


समझ नहीं आता
तुम चाहते क्या हो
खुद की व्यथा छिपा रहे हो
कुछ कहना है जो कह नहीं पा रहे हो
किस वजह से मुझे दूर किये जा रहे हो
या फिर खुद मुझसे दूर हुए जा रहे हो

वाकिफ हो कि नहीं
मैं कितनी परेशान हूँ
तुम्हारी परेशानी को लेकर
चाहती हूँ कि
कह दो तुम
बाँट लो तुम
सब दिल खोलकर .

जब तक तुम यह नहीं करते
तुम्हारे अनकहे को
समझने की कोशिश में ....मैं

10 comments:

  1. अजीब स्थिति है ये.....कहा भी न जाय...चुप रहा भी न जाय....
    don't worry......ये असमंजस के बादल जल्द हटेंगे......
    :-)
    सुन्दर भाव...

    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. उम्मीद पर दुनिया कायम है

      Delete
  2. बहुत सुंदर उत्कृष्ट भावपूर्ण रचना ....!
    ==================
    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

    ReplyDelete
  3. काश वो समझ सकते..
    काश हम कह सकते..

    खूबसूरत रचना..:-)

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया जी शुक्रिया!!

      Delete
  4. कैसी असमंजस ... इस ओहोपोह की स्थिति को बताती सुन्दर पोस्ट ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया......दिगंबर जी

      Delete

टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

Followers