Sunday, October 14, 2012

होता है न,यूँ...



जब तक हम तुम
एक दूसरे में गुम
एक दूसरे को खोजते रहे
रिश्ते को जीते रहे

जैसे ही मान लिया
कि
एक दूसरे को जान लिया
खतम होने लगा वो नयापन
शब्दों को ढूँढने लगे
बातों में ढलने लगे

अभी तक जिस रिश्ते में लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं थी
अनकहा पढ़ने की सुन लेने की आदत हो गयी थी
धडकनों को सुन ,आँखों को पढ़ सब जान लेते थे
कुछ भी हुआ हो सारी सच्चाई पहचान लेते थे
अब......
लफ़्ज़ों की दरकार हुई
सारी मेहनत बेकार हुई
उसी ढर्रे पे चल पड़े
अजनबी से हो चले.

20 comments:

  1. अभी तक जिस रिश्ते में लफ़्ज़ों की ज़रूरत नहीं थी
    अनकहा पढ़ने की सुन लेने की आदत हो गयी थी
    धडकनों को सुन ,आँखों को पढ़ सब जान लेते थे
    कुछ भी हुआ हो सारी सच्चाई पहचान लेते थे
    अब......
    लफ़्ज़ों की दरकार हुई
    सारी मेहनत बेकार हुई
    उसी ढर्रे पे चल पड़े
    अजनबी से हो चले.... यही होता है सार

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    1. हम्म ...यही होता है,सार.

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  2. शायद यही होता है

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  3. हम्म्म्मसारा
    कुछ किया धरा इन शब्दों का है...भावनाओं को झुठलाने जो लगें हैं ये...

    सुन्दर!!!!

    अनु

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    1. हाँ,अनु .....सब किया धरा इन शब्दों का ही होता है,अधिकतर.

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  4. शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन

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  5. भावों से नाजुक शब्‍द को बहुत ही सहजता से रचना में रच दिया आपने.........

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    1. तहे दिल से शुक्रिया .

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  6. बहुत सुंदर निधि जी ..बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर ...

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    1. सुमन ..मुझे निधि कहो...अच्छा लगेगा.
      आगे भी यूँ ही अच्छा लगे...मेरी कोशिश रहेगी

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  7. behad sukoon se bhara hua hai aapka lekhan

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    1. तहे दिल से शुक्रिया

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  8. शब्द कहाँ कह पाते हैं हमारी भावनाएं .....आँखों की... स्पर्श की ...मौन की ज़ुबान पढ़कर देखो न

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    1. अक्सर, मौन मुखरित होता है...बड़े खूबसूरत लम्हे होते हैं,वो.

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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