Wednesday, July 11, 2012

कमबख्त प्यार




वो जो एक अजीब सी बेचैनी है न
इस कमबख्त प्यार में
जो न कायदे से जीने देती है न मरने....
वही शायद रास आती है,मुझे
लगता है कुछ अटक सा गया है हलक में
जो यह निकला तो जान लेकर निकलेगा .
इसी जीने मरने के बीच की कवायद में
मेरा इश्क से इश्क गहराता जाता है
गले में कोई फंदा सा है
जो कसता चला जाता है .

मज़े की बात यह है
कि जब ऐसा नहीं होता
तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता.

23 comments:

  1. इश्क है ही ऐसी बला.............
    सुन्दर रचना निधि जी.

    अनु

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  2. खूबसूरत भी है ,बहुत.

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  3. ओह ऐसा भी होता है ? बहुत खूब

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    1. जी संगीता जी ...ऐसा भी होता है .शुक्रिया,पसंद करने के लिए .

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  4. वाह ... क्‍या बात कही है

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  5. सही कहा - कमबख्त प्यार

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    1. होता है न...कमबख्त .

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  6. गहन भाव लिए ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ...आभार

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    1. हार्दिक धन्यवाद!!

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  7. न निगलते बने
    न उगलते बने..
    ऐसा ही है प्यार...
    :-)

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    1. जी....ऐसा ही है प्यार ..है न ?

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  8. प्रेम की टीस...
    प्रेम की पीड़ा,चुभन ऐसी ही होती है...

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    1. सहमति हेतु शुक्रिया!!

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  9. Replies
    1. पसंद करने के लिए,शुक्रिया

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  10. main to hamesha ye hi kehti hu nidhi ji ki aap jo likhti hain mere man ki awaaz lagti hai..har baar aap mjhe achambhit karti hain ki waakai kya itna match koi ho sakta hai..

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    1. श्रेया ..पता है ,मुझे वाकई बहुत अच्छा लगता है.. जब कोई यह कहता है कि मैंने उसकी बात लिख दी .मुझे महसूस होता है कि मेरा लिखा उसके ह्रदय तक उतरा और उसे छू गया .

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सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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