ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Saturday, August 27, 2011
किसी को मरते नहीं देखा...
जब... मैंने,आज तुमसे कहा
कि ,मैंने आज तलक
किसी को मरते नहीं देखा .
तुम खूब हँसे थे ,मुझ पर.
कहने लगे..यह संभव ही नहीं .
तुम्हारे.....
इस असंभव और हँसी के मर्म को ढूंढती रही .
उस हँसी की गूँज सुनती रही...सोचती रही
तो यह लगने लगा
कि सच कहा ,तुमने
क्यूंकि
भले मैंने किसी इंसान को दम तोड़ते ना देखा हो
पर............
खुद को खुद के अंदर कई बार मरा पाया है
अपने सपनों का तो खुद गला घोंट डाला है
अपने प्यार को दिल में ही दफनाया है
उम्मीदों को बेमौत मैंने ही मार डाला है
मैंने कैसे कह दिया
कि मैंने मौत नहीं देखी ..
आप सभी ने देखी होगी ...
जब अपने ख़्वाबों ...अपने मूल्यों
अपने आदर्शों,अपनी चाहतों ...
की अर्थी सजाई होगी .
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दिल की गहराई से लिखी यह पोस्ट
ReplyDeleteगहन अहसास कराती है.
सुन्दर लेखन के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आपका इंतजार है,निधि जी.
बहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteमार्मिक प्रस्तुति .. न जाने कितनी बार यूँ ही मृत हैं ..और इस मरने का किसी को एहसास भी नहीं होता ..
ReplyDeleteher din her pal kuch marte paaya hai ... kabhi apne bheetar, kabhi kahin aur
ReplyDeleteसच है इंसान को कदम कदम पर मरना पढता है ...
ReplyDeleteदिल के जज़्बात उतार दिए हैं आपने ...
निधि जी.
ReplyDeleteसुंदर...बहुत ही सुन्दर रचना है.
बिल्कुल सही अवलोकन्…………इंसानी फ़ितरत है मर मर कर जीना।
ReplyDeleteराकेश जी...पढ़ने और सराहने...दोनों के लिए ह्रदय से धन्यवाद .
ReplyDeleteसुषमा जी...शुक्रिया१!!
ReplyDeleteसंगीता जी...यही तो बात है कि रोज मरते हैं..और इसका एहसास न तो मरने वाले को न देखने वाले को होता है .
ReplyDeleteरश्मि प्रभा जी....शायद ,यही सच है कि मानव जीवन के साथ ही जुड़ा हुआ है...मरना .
ReplyDeleteदिगंबर जी....सराहने के लिए धन्यवाद !!हम सभी ...कभी न कभी ऐसे ही मरते हैं...अपने ही भीतर .
ReplyDeleteअंकित जी....तहे दिल से शुक्रिया.वक्त निकाल कर पढ़ने एवं पसंद करने हेतु
ReplyDeleteवन्दना जी...बिलकुल दुरुस्त फरमाया ..इंसानी फितरत में शामिल है मर मर के जीना..
ReplyDeletebahut khoob nidhi ji....
ReplyDeleteप्रियंका ..यह जी हटा दो..प्लीज़ .हाँ,हटा दिया न .अब जी हटाने के लिए और पोस्ट पसंद करने के लिए ...शुक्रिया
ReplyDeleteजब अपने ख़्वाबों ...अपने मूल्यों
ReplyDeleteअपने आदर्शों,अपनी चाहतों ...
की अर्थी सजाई होगी ......bahut sahi farmaya nidhiji aapne.har roz har waqt hi to hum kisi n kisi ko marte ,marte hi to nazar aate hai.aapne bakhoobi apne vichar prakat kiye hai.aabhar.
सुनीला...यह तो हम सभी के साथ रोज न रोज होता ही रहता है .शुक्रिया,पसंद करने एवं सराहने के लिए
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