ज़िन्दगी एक किताब सी है,जिसमें ढेरों किस्से-कहानियां हैं ............. इस किताब के कुछ पन्ने आंसुओं से भीगे हैं तो कुछ में,ख़ुशी मुस्कुराती है. ............प्यार है,गुस्सा है ,रूठना-मनाना है ,सुख-दुःख हैं,ख्वाब हैं,हकीकत भी है ...............हम सबके जीवन की किताब के पन्नों पर लिखी कुछ अनछुई इबारतों को पढने और अनकहे पहलुओं को समझने की एक कोशिश है ...............ज़िन्दगीनामा
Monday, August 8, 2011
अब हूँ.....तुम्हारे साथ
तुम्हारे हाथ में
मेरा हाथ सौंपा गया
और मैं,तुम्हारा हाथ थाम
तुम्हारे जीवन में आ गयी.
अनजाने में ही...
अपने पीछे के सारे दरवाज़े
लौट जाने के सारे रास्ते
खुद ही बंद कर आई .
अब,हूँ...तुम्हारे साथ
तुम्हारे किये झूठे वादों,
तुम्हारी ली झूठी कसमों
अपने टुकड़े हुए विश्वास
रुंधी हुई प्यार की आवाज़
की....
अर्थी को ढोते...हुए
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
क्या बात है....
ReplyDeleteफिर बही उम्मीद....वही इंतज़ार....
जब राहें बदल गयी हों तो पिछला देवाज़ा बंद ही करना पड़ता है .. अच्छी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआदरणीय निधि जी
ReplyDeleteनमस्कार !
हैट्स ऑफ......प्यार के खुबसूरत पलों को शानदार शब्द दिये हैं....प्रशंसनीय |
खूबसूरत शब्दों का संगम
ReplyDeleteभावो को सुन्दरता से पिरोया है।
ReplyDeleteगहरे और दिल को छू लेने वाले भाव!
ReplyDeleteसादर
जीवन के विकृत यथार्थ को बयां करती शानदार रचना।
ReplyDelete------
ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें!
क्या भारतीयों तक पहुँचेगी यह नई चेतना ?
दिल की आवाज कविता के रूप में. बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeletejindgi ki bahut badi sacchayi...jiske sath na jiya jaye na mara jaye...aabhar
ReplyDeletekam shabdo me itna kuch aabhar
ReplyDeleteकुमार...थैंक्स!!...उम्मीद पे दुनिया कायम है ..
ReplyDeleteशुक्रिया ...संगीता जी .निगाहें उन छूटी राहों की ओर मुड-मुड कर देखती क्यों हैं...
ReplyDeleteसंजय जी...नमस्ते !!आभार...रचना को पसंद करने और उसे जाहिर करने हेतु.
ReplyDeleteवंदना....धन्यवाद!!
ReplyDeleteयशवंत...अच्छा लगा जान कर कि रचना दिल को छू गयी
ReplyDeleteज़ाकिर जी...हाँ यथार्थ है...पर मुझे विकृत नहीं लगता...विकृत से बहुत कठोरता आ जाती है...जो यहाँ नहीं है
ReplyDeleteरचना जी...अभूत आभार...ब्लॉग पर आकर...पोस्ट पढ़ने...सराहने एवं टिप्पणी देने के लिए
ReplyDeleteप्रियंका...बिलकुल ठीक कहा...ऐसी सच्चाई जिसे न उगलते बनता है न निगलते
ReplyDeleteशर्मा जी...आपको रचना पसंद आई...आभार !!
ReplyDeleteएहसासों, रिश्तो,भावो, एक साथ इतने खुबसूरत शब्दों में पिरो दिया आपने... बहुत ही सुन्दर...
ReplyDeleteसुषमा....थैंक्स!
ReplyDeleteमन को छू गई...
ReplyDeleteवीणा जी.....धन्यवाद !!
ReplyDeleteभावपूर्ण....
ReplyDeleteउड़न तश्तरी जी....शुक्रिया!!
ReplyDeletebahut hi badhiyaa
ReplyDeleteथैंक्स ...रश्मिप्रभा जी !!आपका बहुत बढ़िया पढते ही मन प्रसन्न हो गया .
ReplyDeleteशब्दों का जादू..आपसे बेहतर कौन चला सकता है..!!!
ReplyDeleteअभिव्यक्त करने की कला की कायल हूँ..दी..!!!
प्रियंका....तुम अपना लिखा कभी पढ़ना....पता चल जाएगा की मुझसे बेहतर लफ़्ज़ों का जादू तुम चलाती हो ...
ReplyDeleteनवाजिश!!कि तुम्हें पोस्ट पसंद आयी
निधि, तुम्हारा लिखा बहुत कुछ पढ चुकी हूं इधर......
ReplyDeleteएक सवाल है..... यदि तुम जवाब दो तो........
तुम्हारे लिए लिखना क्या है...........
दी...मेरे लिए लिखना....मुझे खुद नहीं पता ..कि आखिर क्या है?कभी तो जब किसी से कुछ नहीं कह पाती तो...कागज़ से कह डालती हूँ....कभी बहुत खुश होती हूँ...या बहुत दुखी तो कलम को दोस्त बना लेती हूँ...कभी कोई बात बहुत खराब लग जाती है तो कागज़ पे उतर आती है...
ReplyDeleteअक्सर....मैं क्यूँ ,कब ,कैसे लिखने बैठ जाती हूँ....मुझे खुद नहीं पता....नीम बेहोशी सी रहती है...उस वक्त जो ख्याल दिल के ज्यादा करीब से गुजार जाता है...वो कविता बन जाता है
मेरे लिए लिखना अपनी खुशी...अपनी तकलीफें...अपनी हँसी ...अपने आंसू ...अपनी घुटन ...अपनी भावनाएं बांटने का माध्यम है
दी..
ReplyDeleteमैं तो कतरा मात्र भी नहीं हूँ..!! चलना सीख रही हूँ..!!! आप मेरे गुरु हैं..आदरणीया हैं..आपका स्थान सर्वोपरि है..!!!
बहुत सुंदर ... लाजबाब रचना.. निधि....
ReplyDeleteकहने को यूं हज़ार साथ है
तुम हाथ दो तो और बात है
अमित......सच ही तो है जिसे हम चाहें...उसका साथ मिल जाए तो ज़िंदगी कितनी हसीं हो जाती है .खूबसूरत शेर से नवाजा...शुक्रिया!!
ReplyDelete