Monday, August 8, 2011

अब हूँ.....तुम्हारे साथ


तुम्हारे हाथ में
मेरा हाथ सौंपा गया
और मैं,तुम्हारा हाथ थाम
तुम्हारे जीवन में आ गयी.
अनजाने में ही...
अपने पीछे के सारे दरवाज़े
लौट जाने के सारे रास्ते
खुद ही बंद कर आई .
अब,हूँ...तुम्हारे साथ
तुम्हारे किये झूठे वादों,
तुम्हारी ली झूठी कसमों
अपने टुकड़े हुए विश्वास
रुंधी हुई प्यार की आवाज़
की....
अर्थी को ढोते...हुए

34 comments:

  1. क्या बात है....

    फिर बही उम्मीद....वही इंतज़ार....

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  2. जब राहें बदल गयी हों तो पिछला देवाज़ा बंद ही करना पड़ता है .. अच्छी अभिव्यक्ति

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  3. आदरणीय निधि जी
    नमस्कार !
    हैट्स ऑफ......प्यार के खुबसूरत पलों को शानदार शब्द दिये हैं....प्रशंसनीय |

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  4. खूबसूरत शब्‍दों का संगम

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  5. भावो को सुन्दरता से पिरोया है।

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  6. गहरे और दिल को छू लेने वाले भाव!

    सादर

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  7. दिल की आवाज कविता के रूप में. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

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  8. jindgi ki bahut badi sacchayi...jiske sath na jiya jaye na mara jaye...aabhar

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  9. kam shabdo me itna kuch aabhar

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  10. कुमार...थैंक्स!!...उम्मीद पे दुनिया कायम है ..

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  11. शुक्रिया ...संगीता जी .निगाहें उन छूटी राहों की ओर मुड-मुड कर देखती क्यों हैं...

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  12. संजय जी...नमस्ते !!आभार...रचना को पसंद करने और उसे जाहिर करने हेतु.

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  13. वंदना....धन्यवाद!!

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  14. यशवंत...अच्छा लगा जान कर कि रचना दिल को छू गयी

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  15. ज़ाकिर जी...हाँ यथार्थ है...पर मुझे विकृत नहीं लगता...विकृत से बहुत कठोरता आ जाती है...जो यहाँ नहीं है

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  16. रचना जी...अभूत आभार...ब्लॉग पर आकर...पोस्ट पढ़ने...सराहने एवं टिप्पणी देने के लिए

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  17. प्रियंका...बिलकुल ठीक कहा...ऐसी सच्चाई जिसे न उगलते बनता है न निगलते

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  18. शर्मा जी...आपको रचना पसंद आई...आभार !!

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  19. एहसासों, रिश्तो,भावो, एक साथ इतने खुबसूरत शब्दों में पिरो दिया आपने... बहुत ही सुन्दर...

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  20. सुषमा....थैंक्स!

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  21. वीणा जी.....धन्यवाद !!

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  22. उड़न तश्तरी जी....शुक्रिया!!

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  23. थैंक्स ...रश्मिप्रभा जी !!आपका बहुत बढ़िया पढते ही मन प्रसन्न हो गया .

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  24. शब्दों का जादू..आपसे बेहतर कौन चला सकता है..!!!

    अभिव्यक्त करने की कला की कायल हूँ..दी..!!!

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  25. प्रियंका....तुम अपना लिखा कभी पढ़ना....पता चल जाएगा की मुझसे बेहतर लफ़्ज़ों का जादू तुम चलाती हो ...
    नवाजिश!!कि तुम्हें पोस्ट पसंद आयी

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  26. Bewajah- ThoughtlessAugust 10, 2011 at 11:08 PM

    निधि, तुम्‍हारा लिखा बहुत कुछ पढ चुकी हूं इधर......

    एक सवाल है..... यदि तुम जवाब दो तो........

    तुम्‍हारे लिए लिखना क्‍या है...........

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  27. दी...मेरे लिए लिखना....मुझे खुद नहीं पता ..कि आखिर क्या है?कभी तो जब किसी से कुछ नहीं कह पाती तो...कागज़ से कह डालती हूँ....कभी बहुत खुश होती हूँ...या बहुत दुखी तो कलम को दोस्त बना लेती हूँ...कभी कोई बात बहुत खराब लग जाती है तो कागज़ पे उतर आती है...
    अक्सर....मैं क्यूँ ,कब ,कैसे लिखने बैठ जाती हूँ....मुझे खुद नहीं पता....नीम बेहोशी सी रहती है...उस वक्त जो ख्याल दिल के ज्यादा करीब से गुजार जाता है...वो कविता बन जाता है
    मेरे लिए लिखना अपनी खुशी...अपनी तकलीफें...अपनी हँसी ...अपने आंसू ...अपनी घुटन ...अपनी भावनाएं बांटने का माध्यम है

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  28. दी..

    मैं तो कतरा मात्र भी नहीं हूँ..!! चलना सीख रही हूँ..!!! आप मेरे गुरु हैं..आदरणीया हैं..आपका स्थान सर्वोपरि है..!!!

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  29. बहुत सुंदर ... लाजबाब रचना.. निधि....

    कहने को यूं हज़ार साथ है
    तुम हाथ दो तो और बात है

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  30. अमित......सच ही तो है जिसे हम चाहें...उसका साथ मिल जाए तो ज़िंदगी कितनी हसीं हो जाती है .खूबसूरत शेर से नवाजा...शुक्रिया!!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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