Thursday, August 18, 2011

प्रेम किया है गुनाह नहीं


कई दिन सोचने के बाद
आज मेरा ..तुमसे मिलने आना
तुम्हारे दरवाज़े तक जाकर
बिन मिले ही मेरा लौट आना .
वापस आकर ,सोचती हूँ
कि किस बात से डर गयी
समाज से या उसके ठेकेदारों से ..
तुमसे या फिर अपने आप से .

सच पूछो तो ...लोगों का डर नहीं था
असल में ,तुम्हारे बर्ताव का डर था ..
मैं न डरूं किसी से ,पर तुम तो डरते हो
अपनी छवि का भी बहुत ख्याल करते हो .

तुम्हारे दरवाजा खोलने से लेकर
मुझे यूँ आया देखकर खुश होने तक .
तुरंत ..फिर इधर-उधर देखना
कि आस पास कोई देख तो नहीं रहा
घर के अंदर ,परिवार के बीच ले जाने की झिझक
साथ ही साथ ...मेरा साथ पाने की ललक .
सबके आगे बस औपचारिकता निभाना
अपनी खुशी को जाहिर ना होने देना ......
....ये सब
मैंने दरवाजा खटखटाने से पहले ही देख लिया था.

तुम्हीं कह दो...
डर से भरे उस दमघोंटू माहौल में...
या फिर औपचारिकतावश बोले गए तुम्हारे कुछ शब्द सुनने
मैं क्यूँ आती???
मैं आई..तुमसे मिलन की आस लिए
लौटना पड़ता तुम्हारी झलक और दो चार नीरस बातें साथ लिए
साथ ही दिख जाती कुछ टेडी नज़रें
दबी मुस्कानें ..कुछ आक्षेप ..कुछ कटाक्ष .
इसलिए-
अब तय किया है
कि आना ही होगा अगर मुझे
तो अब तब आऊँगी ...
जब तुम मुझसे मिलने और बोलने में ...डरोगे नहीं .
जब,
अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति देने में हम घबराएंगे नहीं
डरेंगे नहीं और ना ही शर्मायेंगे कि हमने प्रेम किया है
क्यूंकि
प्रेम ही तो किया है
गुनाह थोड़े ही किया है .

20 comments:

  1. रश्मिप्रभा जी...मेरे निर्णय के समर्थन में आने के लिए शुक्रिया .

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  2. वाह बिल्कुल सही कहा बहुत सुन्दर भावो को संजोया है।

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  3. बहुत..आभार ,वंदना !!

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  4. प्रेम किया है गुनाह नहीं ...
    सच कहा है ... प्रेम एक पवित्र बंधन है इसमें क्या घबराना ....

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  5. दिगंबर जी...आपने बिलकुल ठीक कहा है कि प्रेम में घबराना कैसा ...पर अधिकतर लोग प्रेम किया है इस बात पे नहीं घबराते बल्कि इस बात से घबराते हैं कि लोग क्या कहेंगे और लोग क्या सोचेंगे ???

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  6. सच ही है..दी..

    प्रेम भी अगर गुनाह होने लगा तो क्या शेष रहेगा..? इतने विकार भरे हुए हैं हर ओर..कम से कम एक ऐसा सुरक्षित ओर निश्चित स्थान तो हो..जगह हम क्षण भर के लिये ही सही..खुश हो सके..संतुष्ट हो सकें..!!!

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  7. प्रियंका ....प्रेम गुनाह नहीं हैपर हम में से अधिकांशतः लोग उसे छिपाते हैं...क्यूंकि डरते हैं या उसे कहीं गलत समझते हैं जबकि होना उससे उलट चाहिए...क्यूंकि यही एक एहसास है जो हरेक इंसान को जो वो होता है उससे बेहतर बना देता है

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  8. प्रेम तो प्रेम है,सीमाओं से परे.......

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  9. कुमार ..मैं बिलकुल सहमत हूँ,तुमसे ....प्रेम की कोई सीमा नहीं होती ...वो किसी परिधि में नहीं बंध सकता

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  10. haaannn.....PREM hii to kiiyaa haiii.....GUNAAH thodey hii kiiyaa haiii ......teraa YEH ANDAAZ.....teraa YEH AHSAAS.....kyunn khud ko TaLaashney pe Mazboor kiiye Jaataa haiii....kyunn khud key herr Ishaarey ko JALEEL kiiye Jaataa haii...ohhh Hamney bhii kii thii Issii SHIDDAT se Mohabbat tumsey Aye SANAM...firr kyunn mujhey YEH GUNAAH meinn Tabdeel kiiye Jaataa haiiii............Yaa ALLAAHHH

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  11. Parda naheen jab koi khuda se................

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  12. बेहद खूबसूरत रचना .निधि . सच्चाई के करीब.. :)

    इन नफरतों को कोई कुछ नहीं कहता
    एतराज सबको मेरी मोहब्बत से है

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  13. अंकुर....बहुत-बहुत शुक्रिया....वक्त निकाल कर के धमाल लिखने के लिए.

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  14. अमित............सच में ,जितना ध्यान हम नफरतों पे देते हैं उसका आधा ध्यान और वक्त मोहब्बत पे दें तो दुनिया और बेहतर हो जाए...

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  15. बाबुषा...............बन्दों से पर्दा करना क्या !!

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  16. प्रेम किया है गुनाह नहीं .
    बहुत सटीक प्रस्तुति, सोचने पर विवश करती रचना

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  17. संजय जी....स्वागतम !!इतने दिनों बाद आने के लिए...पोस्ट को पढ़ने एवं सराहने हेतु धन्यवाद !!

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  18. प्रियंका.....आभार!!

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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