मैं बहुत चाहती हूँ मनमीत,
कि मेरा यह अतीत...
मेरे वर्तमान में आ-आ कर
यूँ न रुलाये मुझे बार-बार .
अतीत बन कर ही रहे सदा
काल की गति के साथ ही बहे...
समय सीमा का न करे उल्लंघन
न याद दिलाए वो"स्नेहिल बंधन"
समय सदा सबके लिए आगे ही बढ़ता है
पर,मेरे जीवन में क्यूँ ये लौट-लौट आता है???
कोई तो बताए,क्या करूँ मैं
इस पागल दिल का अपने
जो सुनता ही नहीं मेरी फ़रियाद
हमेशा करता है तुम्हें ही याद.
जब भी मैं तय करती हूँ,ये...
....कि तेरे दिल का मेरे दिल से
वो नाता कल से तोड़ लूंगी
उसे न फिर कभी जोडूगी .
तब,यह आने वाला कल
आगे ही बढ़ता जाता है,प्रतिपल
और... मैं ,उसका पीछा कर
बैठ जाती हूँ थक-हार कर .
मैं इंतज़ार ही करती रहती हूँ...
उस कल के लिए ही जीती हूँ ...
जब ,सही मायनों में
मैं तुम्हें भूल पाऊँगी
तुमसे अलग हो पाऊँगी .
वो कल आता ही नहीं ...
शायद,आगे भी न आये कभी
क्यूंकि
दिल के किसी कोने से
आज भी यही आवाज़ आती है
कि,
मैंने तुम्हें अपनी धडकन माना है
और
जब तक हैं सांसें मुझमें
तेरा प्यार रहेगा ज़िंदा मुझमें .
बहुत ही बढ़िया।
ReplyDelete--------
स्वतन्त्रता दिवस की शुभ कामनाएँ।
कल 17/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
मन के भावों को बखूबी लिखा है .. अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteथैंक्स.................यशवंत !!
ReplyDeleteसंगीता जी...आपका आभार !!
ReplyDeletepyaar zinda yani ehsaas zinda
ReplyDeleteवाह मनोभावो का सुन्दर चित्रण्।
ReplyDeleteरश्मिप्रभा जी......आपने बिलकुल सही कहा...प्यार ज़िंदा है तो सब कुछ ज़िंदा है.
ReplyDeleteवंदना जी.....शुक्रिया !!
ReplyDeleteखुबसूरत भावो से सजी रचना.....
ReplyDeleteसच कहा आपने..दी..
ReplyDelete...
"कुछ बातें..कुछ यादें..
कर लेतीं हैं घर..
इस कदर..
ना जी सकते हैं..
ना होती ग़दर..!!"
...
सुषमा जी............हार्दिक धन्यवाद!!
ReplyDeleteप्रियंका...कितने कम लफ़्ज़ों का सहारा लेकर...तुमने पूरी पोस्ट को जैसे ,अपनी पांच पंक्तियों में बाँध दिया...शुक्रिया!!
ReplyDeleteमिला कर लिख दो तो गद्य
ReplyDeleteऔर लाइने तोड़ दो तो पद्य
मगर आपने लिखा बहुत सशक्त है!
रूपचंद जी ..शुक्रिया!!हाँ आपने सही कहा ...मैं भी अपने को किसी विधा में इसी कारण पारंगत नहीं कहती ...सीख रही हूँ...अभी ,शुरुआत है .हाँ,पर यह ज़रूर है कि मेरे लिखने का अन्दाज़ यही है..अब लोग इसे गद्य समझें...या लाइन तोड़ने से पद्य ..यह मैं उन पर छोड़ देती हूँ...मैं तो बस लिखती हूँ ..जो भी मन में आता है .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव बढ़िया लेखन
ReplyDeleteवंदना .............धन्यवाद !
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति...आभार.
ReplyDelete... बहुत सुंदर रचना ... निधि ….
ReplyDeleteबावजूद तमाम कोशिश के व्यतीत नहीं होता
काश इतना जुड़ा मुझसे मेरा अतीत नहीं होता
अमरेन्द्र ............तहे दिल से शुक्रिया !!
ReplyDeleteशुक्रिया ....अमित .आपने वक्त निकाल कर कमेन्ट किया ....शेर ,हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत है .
ReplyDeleteप्रभावी अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteनिवेदिता .तुम्हें अभिव्यक्ति प्रभावी लगी...इस हेतु धन्यवाद !
ReplyDeletemanovhavon ko vyakt karti sunder kavita
ReplyDeleterachana
रचना ..आपने पोस्ट को पढ़ा एवं सराहा ....हार्दिक धन्यवाद !
ReplyDeleteNidhi Jee,
ReplyDeleteBahut sunder ... bilkul jiwant ...jaise samne ghatit ho raha ho. ... Badhai...es sunder lekhan ke liye.
ब्रजेशजी ....तहे दिल से शुक्रिया...ब्लॉग पर आपका स्वागत है..अच्छा लगा आपका कमेन्ट ,यहाँ पढ़ कर .
ReplyDeleteबेबाक टिप्पणी है निधि
ReplyDelete....
प्रेम किया है गुनाह नहीं......।
सुन्दर है सशक्त भी...। विद्रोह भी....।
अच्छा है निधि...।
पर तुम्हारी जितनी सशक्त भाषा और भाव मुझतक आए हैं अब तक उनकी तुलना में यह कुछ कमज़ोर पड़ रही है....।
इसे दूसरी बार लिखो फिर से....
इस भाव में फिर से जाओ....
अभी रूको नहीं....।
इसी रचना को दोबारा लिखो....।
शुभकामनाएं।
अनुजा
बेबाक टिप्पणी है निधि...
ReplyDeleteकविता के बारे में मैं झूठ नहीं बोल सकती और न चाटुकारिता कर सकती हूं.... हां, सुझाव दे सकती हूं...
तुम्हारी जितनी रचनाएं, जिस भाषा, भाव और प्रवाह में मुझ तक आयी हैं ये उतनी तीव्र नहीं है....।
जैसा कि तुमने कहा कि जब बिना लिखे न रहा जाए तब ही तुम लिखती हो....क्षमा करना, इसमें वो बात नहीं है...।
या तो चोट उतनी गहरी नहीं है या इसे दोबारा जीने, कहने, महसूसने और इसमें उतरने की ज़रूरत है....।
एक बार फिर इस पर काम करो निधि....।
अनुजा दी...इस बेबाक टिप्पणी के लिए तहे दिल से शुक्रिया ....मुझे सच आप जैसे लोग अपने नज़दीक चाहिए जो सच को बता सकें..मेरी कमियां गिना सके...इसलिए नहीं कि मुझे नीचा दिखाना है वरन इसलिए कि मुझे बेहतर बना सकें ...
ReplyDeleteआपने जो कहा है दी ...मैं उस का पालन अवश्य करूंगी ..कोशिश करूंगी कि अबकी खरी उतरूं ...आपका हरेक सुझाव सर आँखों पर .
bahut sundar...aabhar
ReplyDeleteकभी-कभी यह होता है, जो कुछ अनुभव में घटित हो रहा है वह नामालूम तरीके से एक रूटीन के तहत गुजर जाता है और बाद में वह गुजरा हुआ बार-बार हर क्षण महसूस होता रहता है। अनुभव बीत जाता है और अनुभूति का एहसास भीतरी तहों में दुबक कर बैठ जाता है।
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