Thursday, May 19, 2011

देह के समीकरण

देह के समीकरण भी कितने अजीब होते हैं
यूँ तो एक और एक हमेशा ही दो होते हैं
पर, देह के सन्दर्भ में यह गणित बदल जाता है
एक और एक दो न होकर बस एक हो जाता है
कुछ लोगों का कहना है ,कि .........
प्यार के लिए देह ज़रूरी ही नहीं
पर ,प्यार की अभिव्यक्ति देह से ही होती है मुखरित
प्यार के स्पंदन को देह ही देती है जीवन
इसलिए,नाराज़ मत होना
अगर, मैं कहूं,
कि  .......
मैं तुम्हे आधा-अधूरा नहीं,
संपूर्ण प्यार करती हूँ.
तुम्हारी आत्मा के साथ-साथ ...
तुम्हारे शरीर से भी प्यार करती हूँ .

14 comments:

  1. आदरणीय निधि जी..
    नमस्कार !
    .....अक्सर जीवन में ऐसा होता है .
    वर्तमान जीवन के सन्दर्भ में सार्थक रचना
    आभार ..............

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  2. संबंधो के सम्बन्ध में एक खूबसूरत कविता

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  3. बात में दम है निधि..... प्यार के current को proper earthing ना मिले तो जिंदगी का bulb रौशन कैसे होगा भला.....?? :)

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  4. संजय जी...................शुक्रिया.आपने ठीक कहा ,सारे बिम्ब प्रतिबिम्ब अपने आस पास से ही लिए जाते हैं रचना के लिए

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  5. अर्चना ................तुम्हारा इतना मस्त कमेन्ट पढ़ कर मज़ा आ गया ..........सच, अनूठे ढंग से एक पंक्ति में तुमने सब समेट लिया

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  6. रश्मिप्रभा जी ........कुछ लोग आपको आज भी मिल जायेंगे जिनको ये स्वीकारने में दिक्कत है कि स्त्री की भी प्रेम करने के प्रति एक इच्छा होती है...या कह लीजिए ये स्वीकार भी लें तो यह बात उनके गले नहीं उतरेगी कि स्त्री अपनी इच्छा यूँ खुले रूप में जाहिर कर के पहल करे....

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  7. निधि, मुझे ख़ुशी है कि तुमने यह कहा. औरत को सिर्फ एक चीज़ समझने वालों के लिए यह एक खुलासा हो सकता है लेकिन यह एक सीधी सपाट सच्चाई है.
    प्रशांत त्रिवेदी

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  8. प्रशांत.............मुझे अभी भी कई लोग मिल जाते हैं जो स्त्री से इस व्यवहार की अपेक्षा नहीं करते ..उनको हैरानगी होती है कि कोई स्त्री कैसे.........क्यूँ............प्यार करने की इच्छा जाहिर कर सकती है ........उस तो बस पुरुष की इच्छा के आगे समर्पित होना चाहिए

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  9. निधि जी, आज एक बार फिर से नितांत सत्य को सुन्दर शब्दों में ढाला आपने, लिखने वाले बहुत हैं, मगर जिसको देखिये वो नितान्त ख्वाबों में खुद भी जीना चाहता है, और वही राह सबको दिखाता है...
    बधाई आपको...

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  10. विनय जी..............आपकी बधाई स्वीकारती हूँ .........साथ ही साथ आपकी शुक्रगुजार हूँ कि आप मुझे अपनी टिप्पणियों से सदैव ही प्रेरित करते रहते हैं..........कुछ और बेहतर लिखने के लिए

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  11. तुम निहार लो पहले

    मेरे माथे कों
    मेरे अधर ...
    मेरे नेत्र ........

    मेरे वक्ष
    मेरी कमर
    और उसके नीचे तक तक पहुंचे हुए
    मेरे केश

    मेरे पैरों की उँगलियों के नाखून से
    सिर तक.........
    मेरी सम्पूर्ण देह

    लेकिन तब भी तुम मुझे एक बूंद ...
    भी नहीं जान पाओगे
    क्योंकि मै .........?
    सिर्फ हूँ प्रेम ........
    जिसे पाने की चाह में
    कभी कभी
    तुम मेरे मन कों भी ....
    छिलकों की तरह .........
    पर्त -दर -पर्त
    दिया करते हो ....
    उधेड़

    तुम निहार लो पहले-------

    मेरी सम्पूर्ण देह
    क्योंकि मै
    सिर्फ हूँ प्रेम ........

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  12. Mohammad shahabuddinMay 21, 2011 at 2:09 PM

    शरीर के स्तर पर सिर्फ प्यार नहीं होता है .भावनाओ के स्तर पर किया गया प्यार लम्बे समय तक टिकाऊ रहता है....यह शारीर बीज रूप है जो उस सोंदर्ये भावना को प्राप्त करने का साधन है ,
    उसे तो केवल अनुभव कर सकते है वर्णित नहीं , जब मनुष्य किसी रस का स्वाद करता है तो वही वर्णन से केवल उसे व्यक्त कर सकता है परन्तु उसका स्वाद किसी को दे नहीं सकता....निधि तुमने बहुत सुन्दर ढंग से लिखा है, अभिव्यक्ति कमाल की है ......

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  13. MS.....शुक्रिया !!मैं भी यही मानती हूँ कि भावनाएं ही सर्वोपरि हैं पर देह के महत्त्व को भी नकारा नहीं जा सकता है......भावनाएं व्यक्त करने का साधन शरीर ही बनता है...........

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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