Tuesday, January 25, 2011

जीवन ....

जीवन ....
रेत हो जैसे
लाख कोशिशों के बाद भी
फिसलता जाता है मुट्ठी से ऐसे
की ,
लगता है सब रीत गया
पर,जब रेत पर पड़ती है फुहार
तो वो भी ठहर जाता है
मुट्ठी में .
कुछ ऐसा ही हुआ
जब ,मेरे इस रेत से जीवन में
तुम्हारे प्यार ने एक ठहराव ला दिया
वरना तो ,
ज़िन्दगी .......
बीतती जा रही थी ....बेमतलब

बिखरती जा रही थी....बेमकसद 

4 comments:

  1. Replies
    1. पोस्ट पर पहली टिप्पणी हेतु,धन्यवाद!!

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  2. प्यारा एहसास..!!

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    Replies
    1. तुम्हें अच्छा लगा...जान कर अच्छा लगा

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टिप्पणिओं के इंतज़ार में ..................

सुराग.....

मेरी राह के हमसफ़र ....

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